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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पेट्रोलियम-कोक का आयात और प्रदूषण की समस्या

  • 07 Dec 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों ?

पर्यावरण विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि भारत में पेट्रोलियम कोक या Pet-Coke का बढ़ता आयात देश में वायु-प्रदूषण की समस्या को और अधिक बढ़ा देगा। वर्तमान में चिंताजनक तथ्य यह भी है कि भारत पेट-कोक का न सिर्फ आयात कर रहा है, बल्कि घरेलू स्तर पर भी इसका उत्पादन और विक्रय कर रहा है। पेट-कोक का सर्वाधिक इस्तेमाल सीमेंट-कारखानों द्वारा किया जाता है।

नवंबर-2017 में राजधानी दिल्ली क्षेत्र में स्मॉग के कारण वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति के चलते सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में एक नवंबर से उ.प्र., हरियाणा और राजस्थान में औद्योगिक इकाइयों में पेट कोक और फर्नेस ऑयल के उपयोग पर पाबंदी लगा दी थी।

पेट कोक क्या है?

पेट-कोक पेट्रोलियम रिफाइनिंग की प्रक्रिया में उत्पन्न हुआ उच्च-सल्फर और उच्च कार्बन कंटेंट वाला सह-उत्पाद है। पेट्रोलियम की रिफाइनिंग के दौरान जो सल्फर, ईंधन से अलग किया जाता है, वह पेट-कोक जैसे अपशिष्ट उत्पादों में पहुँच जाता है।

पेट-कोक की विशेषताएँ

  • यह उच्च-कार्बन, उच्च-सल्फर और निम्न राख (ash) कंटेंट वाला उत्पाद है।
    ► इसका कैलोरिफिक मान अधिक होता है और लागत कम होती है
    ► इसकी हैंडलिंग लागत भी कम होती है।
    ► पेट कोक और साधारण कोयले की समान मात्रा के दहन के बाद पेट-कोक से कहीं ज़्यादा ऊष्मा उत्पन्न होती है
    ► पेट कोक के दहन में अपेक्षाकृत कम वायु की आवश्यकता होती है।

उपरोक्त विशेषताओं के कारण उद्योगों में ऊष्मीय उर्जा के उत्पादन के लिये पेट-कोक काफी प्रचलित ईंधन है। भारत में इसका सर्वाधिक उपयोग सीमेंट-फैक्ट्रियों द्वारा किया जाता है।

निहित चिंता

जहाँ ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के लिये सर्वाधिक ज़िम्मेदार साधारण कोयले में सल्फर कंटेंट 4000 ppm होता है, वहीं पेट्रोलियम-कोक में इसकी मात्रा 75000 ppm होती है, जो कि इसे सर्वाधिक प्रदूषण फैलाने वाले इंधनों में से एक बना देती है।

प्रमुख बिंदु

  • अमेरिका की वर्तमान तेल-शोधन क्षमता विश्व में सर्वाधिक है और अमेरिका ही सर्वाधिक पेट-कोक का उत्पादन करता है। वहाँ अब कैनेडियन टार जैसे भारी खनिज तेलों का शोधन किया जाने लगा है, जो और अधिक मात्रा में पेट-कोक उत्पन्न करता है।
  • कुछ समय पहले तक चीन अमेरिका से सर्वाधिक पेट-कोक आयात करने वाला देश था। लेकिन अपने यहाँ बढ़ रहे वायु प्रदूषण को देखते हुए उसने उच्च-सल्फर ईंधन के आयात को सीमित करने का प्रयास किया।
  • वर्तमान में भारत अमेरिका से बड़ी मात्रा में पेट-कोक का आयात करता है।  हालाँकि भारत ने कुछ पेट-कोक का आयात सऊदी अरब की रिफाइनरियों से भी किया है, परंतु वर्ष 2016 में  पेट-कोक के कुल आयात का 65% अमेरिका से ही था
  • पेट-कोक से फैलने वाले प्रदूषण को लेकर अमेरिका भी चिंतित है। अमेरिका अपेक्षाकृत साफ-सुथरी प्राकृतिक और शेल गैस की तरफ बढ़ रहा है। अतः वह अपने इस अपशिष्ट को भारत जैसे विकासशील देशों में डंप करने के लिये प्रयासरत है
  • चीन द्वारा भी वायु-प्रदूषण से निपटने के लिये कड़े कदम उठाने के बाद पेट-कोक के सबसे बड़े ग्राहक के रूप में भारत, अपनी आबो-हवा को और अधिक प्रदूषित करने का काम कर रहा है।
  • BS-IV और BS-VI मानकों के लागू होने पर रिफाइंड पेट्रोल में सल्फर की मात्रा और कम हो जाएगी। इससे अंतर सिर्फ यह पड़ेगा कि सल्फर वाहनों से न निकलकर, कारखानों की चिमनियों से निकलेगा, क्योंकि उच्च गुणवत्ता वाले पेट्रोल के उत्पादन का अर्थ है उच्च-सल्फर कंटेंट वाले अपशिष्ट का उत्पादन।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का विचार है कि पेट कोक और फर्नेस ऑयल से होने वाली समस्या सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि इस संकट का सामना लगभग सभी राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश कर रहे हैं। भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वह अपने घरेलू पेट कोकका ही उपयोग करे। इसके लिये सस्ते पेट कोकके आयात को बंद करना होगा। दूसरा, घरेलू पेट कोकका इस्तेमाल केवल उन उद्योगों में हो, जहाँ उत्सर्जन को नियंत्रित किया जा सके। नीति-निर्माताओं को ध्यान देने की आवश्यकता है कि सस्ते ईंधन के बदले में देश कहीं डंपयार्ड न बन जाए।

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