चुनाव याचिका | 21 Jun 2021
प्रिलिम्स के लियेचुनाव याचिका, जनप्रतिनिधि अधिनियम मेन्स के लियेचुनाव याचिका का महत्त्व और उससे संबंधित विभिन्न पक्ष |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने नंदीग्राम निर्वाचन क्षेत्र के विधानसभा चुनाव परिणाम को चुनौती देते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक निर्वाचन अथवा चुनाव याचिका दायर की है।
प्रमुख बिंदु
निर्वाचन याचिका
- चुनाव परिणामों की घोषणा के पश्चात् चुनाव आयोग की भूमिका समाप्त हो जाती है, इसके पश्चात् यदि कोई उम्मीदवार मानता है कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान भ्रष्टाचार अथवा कदाचार हुआ था तो चुनाव अथवा निर्वाचन याचिका उस मतदाता या उम्मीदवार के लिये उपलब्ध एकमात्र कानूनी उपाय है।
- ऐसा उम्मीदवार संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय में निर्वाचन याचिका के माध्यम से परिणामों को चुनौती दे सकता है।
- ऐसी याचिका चुनाव परिणाम की तारीख से 45 दिनों के भीतर दायर करनी होती है; इस अवधि की समाप्ति के पश्चात् न्यायालय द्वारा मामले की सुनवाई नहीं की जाती है।
- यद्यपि वर्ष 1951 के जनप्रतिनिधि अधिनियम (RPA) के मुताबिक, उच्च न्यायालय को छह माह के भीतर मुकदमे को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिये, हालाँकि इस प्रकार के मुकदमे प्रायः वर्षों तक चलते रहते हैं।
जिन आधारों पर निर्वाचन याचिका दायर की जा सकती है (RPA की धारा 100)
- चुनाव के दिन जीतने वाला उम्मीदवार चुनाव लड़ने के लिये योग्य नहीं था।
- चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार, उसके पोल एजेंट या जीतने वाले उम्मीदवार की सहमति से किसी अन्य व्यक्ति ने भ्रष्ट आचरण किया है।
- विजेता उम्मीदवार के नामांकन की अनुचित स्वीकृति या नामांकन की अनुचित अस्वीकृति।
- मतगणना प्रक्रिया में कदाचार, जिसमें अनुचित तरीके से मत प्राप्त करना, किसी भी मान्य वोट को अस्वीकार करना या किसी भी अमान्य वोट को स्वीकार करना शामिल है।
- संविधान या जनप्रतिनिधि अधिनियम के प्रावधानों या आरपी अधिनियम के तहत बनाए गए किसी भी नियम या आदेश का पालन न करना।
यदि निर्णय याचिकाकर्त्ता के पक्ष में है (RPA की धारा 84)
- याचिकाकर्त्ता जीतने वाले उम्मीदवार के परिणाम को शून्य घोषित किये जाने की मांग कर सकता है।
- इसके अलावा याचिकाकर्त्ता न्यायालय से स्वयं को (यदि याचिका उसी उम्मीदवार द्वारा दायर की गई है) या किसी अन्य उम्मीदवार को विजेता या विधिवत निर्वाचित घोषित करने की मांग कर सकता है।
- इस तरह यदि चुनाव याचिका का निर्णय याचिकाकर्त्ता के पक्ष में होता है तो न्यायालय द्वारा नए सिरे से चुनाव आयोजित करने या एक नए विजेता की घोषणा की जा सकती है।
निर्वाचन याचिका का इतिहास
- इस संबंध में सबसे प्रसिद्ध मामला वर्ष 1975 का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय है, जिसके तहत चार वर्ष पूर्व (वर्ष 1971) रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से इंदिरा गांधी के चुनाव को भ्रष्ट आचरण के आधार पर रद्द कर दिया गया था।
जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951
- यह चुनावों और उपचुनावों के वास्तविक संचालन को नियंत्रित करता है।
- यह चुनाव आयोजित कराने के लिये प्रशासनिक मशीनरी भी प्रदान करता है।
- यह राजनीतिक दलों के पंजीकरण को भी नियंत्रित करता है।
- जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धारा 123 में भ्रष्ट आचरण की एक विस्तृत सूची प्रदान की गई है, जिसमें रिश्वतखोरी, बल प्रयोग या ज़बरदस्ती अथवा धर्म, जाति, समुदाय और भाषा के आधार पर वोट की अपील करना आदि शामिल हैं।
- यह सदनों की सदस्यता के लिये योग्यता और अयोग्यता को भी निर्दिष्ट करता है।
- यह भ्रष्ट आचरण और अन्य अपराधों को रोकने का प्रावधान करता है।
- यह चुनावों से उत्पन्न होने वाले संदेहों और विवादों को निपटाने की प्रक्रिया निर्धारित करता है।