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जैव विविधता और पर्यावरण

ESA असंवैधानिक घोषित करने के लिये याचिका

  • 12 Nov 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जैवविविधता, पश्चिमी घाट पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र, माधव गाडगिल, कस्तूरीरंगन समिति, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र, लाल उद्योग, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986

मेन्स के लिये: 

जैवविविधता बनाम आजीविका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, किसानों के लिये केरल स्थित एक NGO ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 2018 के मसौदा अधिसूचना (Draft Notification) को चुनौती दी गई है। इसके जरिये छह राज्यों के 56,825 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पश्चिमी घाट पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Sensitive Areas in Western Ghats) घोषित किया गया है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:

  • पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (Western Ghats Ecology Expert Panel), जिन्हें गाडगिल समिति और उच्च-स्तरीय कार्य समूह भी कहा जाता है। जिसको कस्तूरीरंगन समिति भी कहा जाता है। जिन्हें क्षेत्र के सतत् और समावेशी विकास की अनुमति देते हुए पश्चिमी घाटों की जैव विविधता के संरक्षण तथा सुरक्षा के लिये गठित किया गया था।
  • उन्होंने सिफारिश की कि छह राज्यों केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु में पड़ने वाले भौगोलिक क्षेत्रों को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Sensitive Area) घोषित किया जाना चाहिये।
  • ESA में अधिसूचित क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए वर्ष 2018 में एक मसौदा अधिसूचना जारी की गई थी।

याचिका के मुख्य बिंदु:

  • मसौदा अधिसूचना केरल में 123 कृषि क्षेत्रों को ESA घोषित करेगा। यह 22 लाख लोगों को प्रभावित करेगा और केरल की अर्थव्यवस्था को पंगु बना देगा।
  • केंद्र ने पश्चिमी घाट क्षेत्र में रहने वाले लोगों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया था, जो "जैव विविधता के विध्वंसक और पारिस्थितिक क्षति के एजेंटों" के रूप में था।
  • इसके अलावा, यह सुझाव दिया कि केरल में ESA को आरक्षित वनों और संरक्षित क्षेत्रों तक सीमित रखा जाना चाहिये।

गाडगिल समिति:

  • इसने प्रस्तावित किया कि इस पूरे क्षेत्र को ‘पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र’ के रूप में नामित किया जाए।
  • साथ ही इस क्षेत्र के भीतर छोटे क्षेत्रों को उनकी मौजूदा स्थिति और खतरे की प्रकृति के आधार पर पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्रों को I, II या III के रूप में पहचाना जाना था।
  • इसने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) के तहत वैधानिक प्राधिकरण के रूप में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा-3 के तहत पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण  के गठन की सिफारिश की।
  • अधिक पर्यावरण के अनुकूल होने और जमीनी वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं होने के कारण इसकी आलोचना की गई।

कस्तूरीरंगन समिति:

  • इसने गाडगिल रिपोर्ट द्वारा प्रस्तावित प्रणाली के विपरीत विकास और पर्यावरण संरक्षण को संतुलित करने की मांग की।
  • समिति की प्रमुख सिफारिश:
    • पश्चिमी घाटों के कुल क्षेत्रफल के बजाय, कुल क्षेत्रफल का केवल 37% ESA के तहत लाया जाना है।
    • ESA में खनन, उत्खनन और रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध।
    • किसी नई ताप विद्युत परियोजना की अनुमति न दी जाए किंतु प्रतिबंधों के साथ पनबिजली परियोजनाओं की अनुमति दी जाए।
    • लाल उद्योगों (अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों) को सख्ती से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये।
    • रिपोर्ट में ESA के दायरे में बसे क्षेत्रों और खेती को बाहर निकालने की सिफारिश की गई है, जिससे यह किसान समर्थक दृष्टिकोण है।

आगे की राह

  • यह मामला ‘विकास बनाम संरक्षण’ की बहस से संबंधित है, जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि विकास के नाम पर विनाश को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिये तथा सतत् विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • विभिन्न पक्षों के बीच सहमति से संबंधित चिंताओं का समाधान करके वैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित एक उचित विश्लेषण, समय पर ढंग से मतभेदों को हल करने के लिये आवश्यक है।
  • कार्यान्वयन में देरी केवल देश के बेशकीमती प्राकृतिक संसाधनों को कम करेगा। इसलिये वन भूमि, उत्पादों और सेवाओं पर खतरों और मांगों के समग्र दृष्टिकोण के साथ, उन्हें संबोधित करने के लिये विकासशील रणनीतियों को विकसित किया जाना चाहिये।

स्रोत:द हिंदू

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