शासन व्यवस्था
नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरुद्ध याचिका
- 15 Jan 2020
- 5 min read
प्रीलिम्स के लिये:अनुच्छेद- 131 व 256 से संबंधित प्रावधान मेन्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता व इसके निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केरल सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act) की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है।
प्रमुख बिंदु:
- यह याचिका संविधान के अनुच्छेद- 131 के प्रावधानों को आधार बनाकर दायर की गई है।
- केरल सरकार द्वारा दायर की गई इस याचिका में सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद- 14 (विधि के समक्ष समता), अनुच्छेद- 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता) और अनुच्छेद- 25 (अंतःकरण और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रसार करने की स्वतंत्रता) के सिद्धांतो का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाए।
- केरल ने याचिका दायर करते हुए कहा कि CAA का अनुपालन करने के लिये अनुच्छेद- 256 के तहत राज्यों को बाध्य किया जाएगा, जो "स्पष्ट रूप से एकपक्षीय, अनुचित, तर्कहीन और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला कृत्य होगा।
क्या हैं अनुच्छेद- 131 के प्रावधान?
- इस अनुच्छेद के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को भारत के संघीय ढाँचे की विभिन्न इकाइयों के बीच किसी विवाद पर आरंभिक अधिकारिता की शक्ति प्राप्त है। ये विवाद निम्नलिखित हैं-
- केंद्र व एक या अधिक राज्यों के बीच, या
- केंद्र और कोई राज्य या राज्यों का एक ओर होना एवं एक या अधिक राज्यों का दूसरी ओर होना, या
- दो या अधिक राज्यों के बीच।
- किसी विवाद में, यदि और जहाँ तक उस विवाद में (विधि का या तथ्य का ) ऐसा कोई प्रश्न निहित है जिस पर किसी विधिक अधिकार का अस्तित्व या विस्तार निर्भर है तो वहाँ अन्य न्यायालयों का अपवर्जन करके सर्वोच्च न्यायालय को आरंभिक अधिकारिता होगी। [परंतु उक्त अधिकारिता का विस्तार उस विवाद पर नहीं होगा जो किसी ऐसी संधि, करार, प्रसंविदा, वचनबंध, सनद या वैसी ही अन्य लिखत से उत्त्पन्न हुआ है जो इस संविधान के प्रारंभ से पहले की गई थी या निष्पादित की गई थी और ऐसे प्रारंभ के पश्चात प्रवर्तन में है या जो यह उपबंध करती है की उक्त अधिकारिता का विस्तार ऐसे विवाद पर नहीं होगा।]
अनुच्छेद- 256 के अंतर्गत प्रावधान
- प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का इस प्रकार प्रयोग किया जाएगा जिससे संसद द्वारा बनाई गई विधियों का और ऐसी विद्यमान विधियों का, जो उस राज्य में लागू हैं, अनुपालन सुनिश्चित रहे और संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को ऐसे निदेश देने तक होगा जो भारत सरकार को उस प्रयोजन के लिये आवश्यक प्रतीत हो।
अनुच्छेद- 131 के प्रयोग से संबंधित पूर्ववर्ती निर्णय:
- वर्ष 2012 में अनुच्छेद- 131 के प्रयोग से संबंधित मध्य प्रदेश राज्य बनाम भारत संघ वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि राज्य अनुच्छेद- 131 के अंतर्गत उपबंधित प्रावधानों का प्रयोग करते हुए केंद्र द्वारा निर्मित विधि की संवैधानिकता को चुनौती नहीं दे सकता।
- वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने झारखंड राज्य बनाम बिहार राज्य वाद में निर्णय देते हुए अपने पूर्ववर्ती निर्णय से असहमति व्यक्त की और विधि के सारवान प्रश्न से संबंधित इस वाद को सर्वोच्च न्यायालय की एक बड़ी पीठ को स्थानांतरित कर दिया।
- केरल ने यह याचिका वर्ष 2013 के झारखंड राज्य बनाम बिहार राज्य वाद पर आए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को आधार बनाते हुए दायर की है।