त्रिपुरा में शांति समझौता | 06 Sep 2024
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार, त्रिपुरा की राज्य सरकार और दो प्रमुख उग्रवादी समूहों अर्थात् नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT) व ऑल त्रिपुरा टाइगर फ़ोर्स (ATTF) ने राज्य में हिंसा को समाप्त करने के लिये एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- इस समझौते से राज्य का 35 साल पुराना संघर्ष समाप्त हो जाएगा और हिंसा का परित्याग कर समृद्ध त्रिपुरा के निर्माण की प्रतिबद्धता व्यक्त की जाएगी।
शांति समझौते की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- सशस्त्र कैडरों का पुनः एकीकरण: NLFT और ATTF के 328 से अधिक सशस्त्र कैडर आत्मसमर्पण करेंगे और समाज में पुनः एकीकृत होंगे।
- वित्तीय पैकेज: त्रिपुरा की जनजातीय आबादी के विकास के लिये 250 करोड़ रुपए के विशेष वित्तीय पैकेज को स्वीकृति दी गई है।
- व्यापक पहल: यह एक बड़े प्रयास का हिस्सा है, जिसके तहत वर्ष 2014 से 2024 के दौरान पूर्वोत्तर में 12 महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए, जिनमें से 3 समझौते त्रिपुरा से संबंधित हैं।
NLTF और ATTF
- नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT) का गठन वर्ष 1989 में हुआ था।
- NLFT का कथित उद्देश्य 'भारतीय नव-उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद' से मुक्ति के बाद सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से एक 'स्वतंत्र त्रिपुरा' की स्थापना करना तथा एक 'विशिष्ट एवं स्वतंत्र पहचान' को आगे बढ़ाना है।
- नेताओं की व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाओं और संकीर्ण धार्मिक विचारों के कारण NLFT के भीतर कई विभाजन हुए।
- इसे अप्रैल 1997 में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था और आतंकवाद निरोधक अधिनियम (Prevention of Terrorism Act- POTA) , 2002 के तहत भी प्रतिबंधित किया गया है।
- NLFT फरवरी 2001 में दो समूहों में विभाजित हो गया, एक का नेतृत्व बिस्वमोहन देबबर्मा और दूसरे का नयनबासी जमातिया ने किया।
- त्रिपुरा टाइगर फोर्स (ATTF) की स्थापना वर्ष 1990 में हुई थी।
- यह मतदाता सूची से अवैध प्रवासियों को हटाने और वर्ष 1949 के त्रिपुरा विलय समझौते को लागू करने की मांग करता है।
- यह उत्तर और दक्षिण त्रिपुरा ज़िलों में सक्रिय था तथा वर्ष 1991 तक एक दुर्जेय आतंकवादी समूह के रूप में उभरा।
- इसे अप्रैल 1997 में गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया था।
त्रिपुरा में सरकार और विद्रोही समूहों के बीच शांति समझौते का क्या महत्त्व है?
- शांति और स्थिरता की पुनर्स्थापना: हिंसा को समाप्त करने का संकल्प लेने वाले सशस्त्र समूह व हिंसा के चक्र को तोड़ने के साथ ही विकास के लिये एक सुरक्षित वातावरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से त्रिपुरा में शांति एवं स्थिरता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- मुख्यधारा में एकीकरण: यह समझौता जनजातीय समुदायों के बीच अलगाव के मुद्दों को हल करते हुए पूर्व विद्रोहियों को मुख्यधारा में एकीकृत करने की सुविधा प्रदान करता है। यह इन व्यक्तियों को समाज में सकारात्मक योगदान देने का अवसर प्रदान करता है।
- विकास पहल: केंद्र सरकार ने त्रिपुरा में जनजातीय आबादी के लिये एक विशेष विकास पैकेज को मंजूरी दी है। यह वित्तीय प्रतिबद्धता भविष्य में संघर्षों को रोकने की रणनीति के रूप में सामाजिक-आर्थिक विकास पर सरकार के विचार को उजागर करती है।
- सांस्कृतिक संरक्षण: यह समझौता पूर्वोत्तर के जनजातीय समूहों की सांस्कृतिक विरासत, भाषाओं और पहचान के संरक्षण का समर्थन करता है। यह इन आबादी के बीच अपनेपन और समुदाय की दृढ भावना को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
त्रिपुरा सहित पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद के क्या कारण हैं?
- अंतर-जनजातीय संघर्ष: जनजातीय समूहों, विशेष रूप से जमातिया की धार्मिक संरचना में परिवर्तन ने नए अंतर-जनजातीय तनावों को बढ़ावा दिया, जिससे मौजूदा जनजातीय-गैर आदिवासी संघर्ष और भी जटिल हो गए।
- जनसांख्यिकीय परिवर्तन: वर्ष 1947 के बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से बड़े पैमाने पर पलायन ने त्रिपुरा की जनसांख्यिकीय स्वरूप को बदल दिया, जिससे मुख्य रूप से आदिवासी क्षेत्र बंगाली भाषी मैदानी लोगों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में बदल गया। इस जनसांख्यिकीय उलटफेर ने स्थानीय जनजातियों के बीच असंतोष को बढ़ावा दिया।
- मिज़ोरम उग्रवाद से निकटता: मिज़ोरम से त्रिपुरा की भौगोलिक निकटता के कारण राज्य को उग्रवाद के "दुष्प्रभावों" का सामना करना पड़ा, जिससे स्थानीय तनाव और बढ़ गया।
- विद्रोही समूहों का गठन: भूमि और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर असंतोष के कारण वर्ष 1971 में त्रिपुरा उपजाति जुबा समिति (TUJS), 1981 में त्रिपुरा नेशनल वॉलंटियर्स (TNV) और वर्ष 1989 में नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT) जैसे विद्रोही समूहों का गठन हुआ, जिसने उग्रवाद को तीव्र कर दिया।
- आर्थिक कारक: पूर्वोत्तर भारत में विकास की कमी और सीमित आर्थिक अवसरों, विशेष रूप से युवाओं के लिये, ने व्यापक गरीबी और बेरोज़गारी को उत्पन्न किया है, जिसने विद्रोही संगठनों को आकर्षित किया है, जो सामाजिक स्थिति व निर्वाह के साधन प्रदान करते हैं।
- भौगोलिक कारक: त्रिपुरा सहित उत्तर-पूर्वी क्षेत्र अपनी 98% सीमाओं को अन्य देशों के साथ साझा करता है, जो शेष भारत के साथ कमज़ोर भौगोलिक संबंधों को उजागर करता है।
- उत्तर पूर्वी क्षेत्र की जनसंख्या, राष्ट्रीय जनसंख्या का केवल 3% है, वर्ष 1951 से वर्ष 2001 तक इसमें 200% से अधिक की वृद्धि हुई, जिससे आजीविका और भूमि संसाधनों पर दबाव पड़ा।
- जनजातीय भूमि का नुकसान: आदिवासियों को उनकी कृषि भूमि से वंचित किया गया, अक्सर उन्हें बहुत कम कीमत पर बेचा गया और वनों में भेज दिया गया, जिससे व्यापक आक्रोश और तनाव उत्पन्न हुआ। भूमि का वंचन उग्रवाद का एक प्रमुख चालक बन गया।
- राजनीतिक कारक: त्रिपुरा जातीय समुदायों सहित पूर्वोत्तर भारत कभी-कभी भौगोलिक दूरी और सीमित राजनीतिक प्रतिनिधित्व के कारण केंद्र सरकार द्वारा उपेक्षित महसूस करता है, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान और संसाधनों की रक्षा के लिए स्वायत्तता की मांग बढ़ जाती है।
त्रिपुरा सहित उत्तर पूर्व भारत में शांति स्थापित करने के लिये सरकार की पहल क्या हैं?
- संवाद और समझौता वार्ता: सरकार ने विभिन्न उग्रवादी समूहों के साथ कई शांति समझौतों पर समझौता वार्ता की और हस्ताक्षर किये, जिससे उग्रवादियों के आत्मसमर्पण एवं स्वायत्त परिषदों का गठन हुआ। उदाहरण: हाल ही में सरकार और उग्रवादी समूहों NLFT एवं ATTF के बीच हस्ताक्षरित शांति समझौता।
- महत्त्वपूर्ण समझौते:
- नगा शांति समझौता: भारत सरकार और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (के)/निकी समूह के बीच संघर्ष विराम समझौते को एक वर्ष के लिये, सितंबर, 2024 से सितंबर, 2025 तक बढ़ा दिया गया है, जिससे नगा शांति समझौते को और आगे बढ़ाया जा सकेगा।
- असम-मेघालय सीमा समझौता, 2022: 6 क्षेत्रों में विवादों का समाधान, असम को 18.51 वर्ग किलोमीटर और मेघालय को 18.28 वर्ग किलोमीटर आवंटित किया गया।
- कार्बी आंगलोंग समझौता, 2021
- बोडो समझौता, 2020
- ब्रू-रियांग समझौता, 2020
- NLFT-त्रिपुरा समझौता, 2019
- विकास पहल: सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे, आर्थिक और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसमें कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट प्रोजेक्ट एवं कनेक्टिविटी में सुधार के उद्देश्य से विभिन्न रेलवे व राजमार्ग पहल शामिल हैं।
- पूर्वोत्तर औद्योगिक विकास योजना और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये प्रधानमंत्री विकास पहल (पीएम-डीवाइन) सहित आर्थिक योजनाएँ, विकास को बढ़ावा देने के लिये बनाई गई हैं।
- इसके अतिरिक्त पूर्वोत्तर विशेष शिक्षा क्षेत्र और कौशल भारत मिशन जैसे प्रयास शिक्षा और रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने की दिशा में हैं।
- सांस्कृतिक और सामाजिक पहल: सरकार क्षेत्रीय भाषाओं और सांस्कृतिक उत्सवों को बढ़ावा देती है और विरासत को संरक्षित करने के लिये सांस्कृतिक केंद्रों का समर्थन करती है। पूर्वोत्तर परिषद, संयुक्त विकास परियोजनाओं और बेहतर कनेक्टिविटी के माध्यम से अंतरराज्यीय सहयोग को बढ़ाया जाता है, साथ ही सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों से आपसी समझ को बढ़ावा मिलता है।
- उत्तर पूर्व विकास के लिये अन्य पहल
- बुनियादी ढाँचा:
- भारतमाला परियोजना
- क्षेत्रीय संपर्क योजना (RCS)-उड़ान
- संपर्क:
- भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग
- पर्यटन:
- स्वदेश दर्शन योजना
- अन्य:
- डिजिटल नॉर्थ ईस्ट विज़न 2022
- राष्ट्रीय बाँस मिशन
- बुनियादी ढाँचा:
त्रिपुरा सहित पूर्वोत्तर राज्यों में शांति बहाली की चुनौतियाँ क्या हैं?
- विश्वास निर्माण: सरकार और पूर्व विद्रोहियों के बीच विश्वास स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है। ऐतिहासिक शिकायतें और अविश्वास सहयोग एवं एकीकरण प्रयासों में बाधा डाल सकते हैं।
- निगरानी और अनुपालन: सशस्त्र समूहों को समाप्त करने और हिंसा को रोकने सहित समझौते की शर्तों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत निगरानी तंत्र की आवश्यकता होगी।
- सामाजिक-आर्थिक एकीकरण: पूर्व विद्रोहियों को सामाजिक-आर्थिक ढाँचे में एकीकृत करना चुनौतियों से भरा है, जिसमें पर्याप्त रोज़गार के अवसर, व्यावसायिक प्रशिक्षण और मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना शामिल है।
- राजनीतिक गतिशीलता: त्रिपुरा सहित पूर्वोत्तर राज्य में राजनीतिक परिदृश्य जटिल है, जिसमें विभिन्न हितधारक शामिल हैं। समावेशी शासन सुनिश्चित करते हुए इन गतिशीलता को नियंत्रित करना स्थायी शांति के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
- निरंतर उग्रवाद: क्षेत्र में जारी उग्रवाद के कारण अलग-अलग समूहों या अन्य विद्रोही गुटों द्वारा शांति समझौते का पालन करने से इंकार करने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे हिंसा और अस्थिरता बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है।
आगे की राह
- प्रभावी पुलिसिंग: प्रभावी कानून प्रवर्तन की अनुपस्थिति ने सशस्त्र हिंसा को बढ़ावा दिया है। सुशासन और नागरिक अधिकारों द्वारा समर्थित कुशल पुलिसिंग व्यवस्था एवं सुरक्षा बहाल करने हेतु आवश्यक है।
- उदाहरण के लिये त्रिपुरा में स्थानीय नेताओं को शामिल करके सामुदायिक पुलिसिंग पहल से विश्वास का निर्माण हो सकता है तथा सुरक्षा में सुधार हो सकता है।
- संवाद और बातचीत: शांतिपूर्ण समाधान केवल विद्रोही समूहों के साथ संवाद और बातचीत के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।
- त्रिपुरा सरकार जातीय समूहों के साथ संवाद कायम रख सकती है तथा नागरिक समाज के साथ एक औपचारिक मंच स्थापित कर सकती है ताकि हाशिये पर पड़े लोगों की आवश्यकताएँ पूरी की जा सके।
- आर्थिक विकास: आर्थिक विकास में निवेश और रोज़गार सृजन के अवसर उत्पन्न करने से वैकल्पिक आजीविका उपलब्ध कराकर तथा गरीबी को कम करके उग्रवाद के मूल कारणों का समाधान किया जा सकता है।
- त्रिपुरा बाँस मिशन जैसी पहलों का विस्तार करने और बुनियादी ढाँचे में सुधार करने से रोज़गार सृजित हो सकते हैं, युवाओं को वैकल्पिक आजीविका प्रदान की जा सकती है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है, जिससे उग्रवादी भर्ती की प्रवृत्ति कम हो सकती है।
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व: जातीय समुदायों के लिये पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने से, विश्वास का निर्माण करने और उनकी चिंताओं को दूर करने में सहायता मिल सकती है।
- त्रिपुरा की स्वायत्त ज़िला परिषदों की तरह स्थानीय शासन में स्थानीय नेताओं को शामिल करने से समुदाय का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है। निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया और राज्य विधानसभा में प्रतिनिधित्व भी समुदायों को सशक्त बनाता है।
- सांस्कृतिक संरक्षण: पूर्वोत्तर के जातीय समुदायों की विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करने और उसे बढ़ावा देने से उनमें अपनेपन की भावना बढ़ेगी तथा हाशिये पर होने की भावना कम होगी।
- खर्ची महोत्सव जैसे उत्सवों को बढ़ावा देना तथा स्थानीय इतिहास और संस्कृति को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करना।
निष्कर्ष
त्रिपुरा में हाल ही में हुआ शांति समझौता क्षेत्र में स्थिरता और विकास की दिशा में एक आशाजनक मोड़ दर्शाता है। हालाँकि इसके कार्यान्वयन के लिये उन अंतर्निहित चिंताओं का समाधान करना आवश्यक होगा, जिन्होंने दशकों से उग्रवाद को बढ़ावा दिया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के संविधान की किस अनुसूची में कुछ राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और नियंत्रण के लिये विशेष प्रावधान हैं? (2008) (a) तीसरा उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न 1. मानवाधिकार सक्रियतावादी लगातार इस विचार को उज़ागर करते हैं कि सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 (AFSP) एक क्रूर अधिनियम है, जिससे सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकार के दुरुपयोगों के मामले उत्पन्न होते हैं। इस अधिनियम की कौन-सी धाराओं का सक्रियतावादी विरोध करते हैं? उच्चतम न्यायालय द्वारा व्यक्त विचार के संदर्भ में इसकी आवश्यकता का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2015) प्रश्न 2. भारत का उत्तर-पूर्वीय प्रदेश बहुत लम्बे समय से विद्रोह-ग्रसित है। इस प्रदेश में सशस्त्र विद्रोह की अतिजीविता के मुख्य कारणों का विश्लेषण कीजिए। (2017) |