अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता | 28 Feb 2020
प्रीलिम्स के लिये:अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौता मेन्स के लिये:अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते के भारत पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
अफगानिस्तान में करीब दो दशकों से जारी हिंसा को रोकने के लिये 29 फरवरी, 2020 को खाड़ी देश कतर की राजधानी दोहा में होने वाले अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते के लिये कतर द्वारा भारत को भी आमंत्रित किया गया है।
मुख्य बिंदु:
- भारत ने दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिये अपना प्रतिनिधि भेजने का फैसला किया है। भारत सरकार ने इस कार्यक्रम के लिये कतर में भारत के राजदूत ‘पी. कुमारन’ को भेजने का फैसला किया है।
- यह पहला अवसर होगा कि भारत का कोई आधिकारिक प्रतिनिधि एक ऐसे समारोह में भाग लेगा जहाँ तालिबान के प्रतिनिधि भी मौजूद रहेंगे।
- वर्ष 1996 और 2001 के बीच जब अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में था, तब भारत ने इसे कूटनीतिक और आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी थी।
पृष्ठभूमि:
- तालिबान का उदय 90 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में अफगानिस्तान से सोवियत संघ सेना की वापसी के पश्चात् हुआ। उत्तरी पाकिस्तान के साथ-साथ तालिबान ने पश्तूनों के नेतृत्व में अफगानिस्तान में भी अपनी मज़बूत पृष्ठभूमि बनाई।
- विदित है कि तालिबान की स्थापना और प्रसार में सबसे अधिक योगदान धार्मिक संस्थानों एवं मदरसों का था जिन्हें सऊदी अरब द्वारा वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता था।
- अफगानिस्तान से सोवियत संघ की वापसी के पश्चात् वहाँ कई गुटों में आपसी संघर्ष शुरू हो गया था और इससे जन-सामान्य बुरी तरह से परेशान था ऐसी परिस्थिति में राजनीतिक स्थिरता को ध्यान में रखकर अफगानिस्तान में भी तालिबान का स्वागत किया गया।
- प्रारंभ में तालिबान को भ्रष्टाचार और अव्यवस्था पर अंकुश लगाने तथा विवादित क्षेत्रों में अपना नियंत्रण स्थापित कर शांति स्थापित करने जैसी गतिविधियों के कारण सफलता मिली।
- प्रारंभ में दक्षिण-पश्चिम अफगानिस्तान में तालिबान ने अपना प्रभाव बढ़ाया तथा इसके पश्चात् ईरान सीमा से लगे हेरात प्रांत पर अधिकार कर लिया।
- धीरे-धीरे तालिबान पर मानवाधिकार का उल्लंघन और सांस्कृतिक दुर्व्यवहार के आरोप लगने लगे। तालिबान द्वारा विश्व प्रसिद्ध बामियान बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट करने की विशेष रूप से आलोचना की गई।
- तालिबान द्वारा न्यूयॉर्क पर किये गए हमले के पश्चात् इसका वैश्विक स्तर पर प्रभाव बढ़ा इसके शीर्ष नेता ओसामा बिन लादेन को इन हमलों का दोषी बताया गया।
- पिछले कुछ समय से अफगानिस्तान में तालिबान का दबदबा फिर से बढ़ा है और पाकिस्तान में भी उसकी स्थिति मज़बूत हुई है।
- अमेरिका द्वारा किसी भी शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने से पहले संघर्ष विराम की मांग की गई थी। शांति समझौते के बाद अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में 19 वर्ष से सक्रिय सैन्य अभियान को समाप्त कर अपने सैनिकों को वापस लाया जा सकेगा।
समझौते के बारे में:
- 21 फरवरी, 2020 को अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने कहा था कि अफगानिस्तान में लंबी अवधि से हिंसा में कमी को देखते हुए 29 फरवरी को अमेरिका और तालिबान शांति समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे।
- वर्ष 1999 में IC-814 विमान के अपहरण के बाद यह पहला मौका होगा जब भारत सरकार के प्रतिनिधि सार्वजनिक रूप से तालिबान से जुड़े मामलों में शामिल होंगे।
- माना जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया भारत दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई वार्ता के बाद यह नीतिगत बदलाव आया है। वैसे मॉस्को में वर्ष 2018 में तालिबान की मौजूदगी वाली वार्ता में भारत ने अनौपचारिक शिरकत की थी।
नए परिप्रेक्ष्य में पहला कदम:
- अफगानिस्तान में नई वास्तविकताओं को देखते हुए, भारत अब तालिबान के साथ राजनयिक रूप से जुड़ने के लिये आगे बढ़ रहा है।
- समझौता-हस्ताक्षर समारोह में भारत की उपस्थिति संभवतः कूटनीतिक संबंधों के उदघाटन का पहला संकेत है।
- भारत के अफगानिस्तान में कई महत्त्वपूर्ण रणनीतिक हित हैं, यहाँ भारत ने कई विकास परियोजनाओं पर काम किया है।
क्या हैं भारतीय चिंताएँ?
- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान जारी किये गए संयुक्त बयान में अफगानिस्तान पर भारत की चिंताओं को बहुत अच्छी तरह से दर्शाया गया था।
- यह संयुक्त बयान अफगान के नेतृत्व वाली और अफगान के स्वामित्व वाली शांति प्रक्रिया के बारे में बात करता है लेकिन यह अफगान को नियंत्रित करने वाली प्रक्रिया का उल्लेख नहीं करता है, क्योंकि वास्तविकता यह है कि यह प्रक्रिया अमेरिका सहित अन्य देशों द्वारा नियंत्रित की जाती है।
- तालिबान का अफगानिस्तान में फिर से स्थापित होने से क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये भी एक बड़ा खतरा है। ऐसे में भारत को ये सुनिश्चित करना होगा कि यदि ये समझौता होता है तो क्षेत्रीय सुरक्षा खतरे में न पड़ने पाए।
- भारत की चिंता यह भी है कि अगर अमेरिका अपनी सेना को अफगानिस्तान से हटा लेता है पाकिस्तान अपने यहाँ उत्पन्न हो रहे आतंकवाद को तालिबान और अफगानिस्तान को ज़िम्मेदार ठहरा सकता है।
- कई पश्चिमी पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह समझौता अफगानिस्तान में शांति के लिये एक मौका का प्रतिनिधित्व कर सकता है, परंतु भारत और अधिक सतर्क है क्योंकि इससे पाकिस्तान को बल मिलने की संभावना है।
भारत-अमेरिका और अफगानिस्तान:
- भारत और अमेरिका एकजुट, संप्रभु, लोकतांत्रिक, समावेशी, स्थिर और समृद्ध अफगानिस्तान में अपने-अपने हित रखते हैं।
- ये दोनों देश अफगान के नेतृत्व वाली और अफगान के स्वामित्व वाली शांति और सुलह प्रक्रिया का समर्थन करते हैं जिसके परिणामस्वरूप अफगानिस्तान में स्थायी शांति स्थापित हो जिसके फलस्वरूप हिंसा की समाप्ति हो तथा आतंकवादी ठिकानों का विनाश किया जा सके।
- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान को स्थिर बनाने में सहायता करने के लिये विकास और सुरक्षा सहायता प्रदान करने में भारत की भूमिका का स्वागत किया।
- वर्ष 2017 में नरेंद्र मोदी की व्हाइट हाउस की यात्रा के दौरान जारी अंतिम संयुक्त बयान में भी डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान में लोकतंत्र, स्थिरता, समृद्धि और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये भारतीय योगदान का स्वागत किया था।
- अफगानिस्तान के साथ अपने संबंधित सामरिक भागीदारी के महत्त्व को समझते हुए दोनों देशों ने अफगानिस्तान के भविष्य के समर्थन में परामर्श और सहयोग जारी रखने के लिये प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है।
- इस मुद्दे पर भारत अमेरिका के अलावा, अफगानिस्तान, रूस, ईरान, सऊदी अरब और चीन जैसे सभी राजनीतिक सक्रिय पक्षों के साथ नियमित रूप से बातचीत कर रहा है।
आगे की राह:
- अफगानिस्तान के संदर्भ में भारत के स्थायी लक्ष्य स्पष्ट हैं- अफगानिस्तान में विकास में लगे करोड़ों डॉलर व्यर्थ न जाने पाएँ, काबुल में मित्र सरकार बनी रहे, ईरान-अफगान सीमा तक निर्बाध पहुँच बनी रहे और वहाँ के पाँचों वाणिज्य दूतावास बराबर काम करते रहें। इस एजेंडे की सुरक्षा के लिये भारत को अपनी कूटनीति में कुछ बदलाव करने भी पड़ें तो उसे पीछे नहीं हटना चाहिये, क्योंकि यही समय की मांग है।