चिंताजनक है पीडीएस डिजिटलीकरण की धीमी गति | 18 Sep 2017

चर्चा में क्यों?

सरकार ने तीन वर्ष पहले सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के डिजिटलीकरण का अभियान मिशन मोड में आरंभ किया था, लेकिन यह चिंतित करने वाला है कि 11 राज्यों ने इस संबंध में अभी तक आरंभिक प्रयास भी शुरू नहीं किये हैं।

राज्यवार स्थिति

  • डिजिटलीकरण को लेकर सबसे चिंताजनक आँकड़े उत्तर पूर्व के राज्यों से संबंधित हैं।
  • गौरतलब है कि अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम और नागालैंड ने डिजिटलीकरण की प्रक्रिया शुरू करने में असमर्थता के लिये कनेक्टिविटी के मुद्दों का हवाला दिया है।
  • बिहार में 1% से कम राशन दुकानों को डिजिटल किया गया है। यह आँकड़ा त्रिपुरा, दिल्ली और उत्तराखंड के लिये भी 1%  ही है।
  • उत्तर प्रदेश में 16% राशन दुकानों को डिजिटल कर दिया गया है, जो कि अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर स्थिति में है।

क्या है मामला?

  • उल्लेखनीय है कि केंद्र ने सार्वजनिक जन वितरण योजना के तहत कालाबाज़ारी रोकने के लिये राज्य सरकारों से राशन की दुकानों को आधुनिक रूप देने तथा उसे ग्राहकों के अनुकूल बनाने को कहा था।
  • यही कारण है कि विभिन्न राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का कंप्यूटरीकरण, राशन-कार्ड का डिजिटलीकरण तथा बायोमेट्रिक उपकरण लगाए जाने की प्रक्रिया पूरी होने के अलग-अलग चरण में है।
  • दरअसल, केंद्र राज्य सरकारों से पीडीएस को आधुनिक रूप देने तथा उपभोक्ताओं के अनुकूल बनाने के लिये लगातार कह रहा है। कंप्यूटरीकरण के लिये 884 करोड़ रुपए की लागत से एक परियोजना शुरू की गई थी, हालाँकि अब तक इस संदर्भ में उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है।

निष्कर्ष

  • दरअसल, पीडीएस में अभी भी गंभीर कमियाँ और भ्रष्टाचार है और इसके डिजिटलीकरण द्वारा इन पर अंकुश लगाया जा सकता है।
  • हालाँकि पीडीएस के कंप्यूटरीकरण और डिजिटलीकरण की दिशा में कोई उत्साहजनक प्रगति नहीं हुई है।
  • यदि एक बार 100 प्रतिशत डिजिटलीकरण का लक्ष्य यदि प्राप्त हो जाए तो इससे अनाज की बर्बादी और कालाबाज़ारी पर काफी हद तक रोक लगाई जा सकती है।
  • साथ ही ‘खाद्य सुरक्षा’ से संबंधित योजनाओं को भी उचित तरीके लागू किया जा सकता है।