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भारतीय अर्थव्यवस्था

पूर्वव्यापी कर पर PCA का निर्णय

  • 26 Dec 2020
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्यस्थता के स्थायी न्यायालय (Permanent Court of Arbitration- PCA) ने अपने एक फैसले में कहा कि भारत सरकार द्वारा ऊर्जा क्षेत्र की दिग्गज कंपनी केयर्न पी.एल.सी. (Cairn Plc) पर पूर्वव्यापी कर (Retrospective Tax) आरोपित करना गलत था।

  • यह फैसला भारत सरकार और वोडाफोन Plc के पूर्वव्यापी कर कानून संशोधन संबंधी मामले, जिसमें निर्णय वोडाफोन Plc के पक्ष में आया था,  के लगभग तीन महीने के बाद आया है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 2006-07 में केयर्न UK ने केयर्न इंडिया को केयर्न इंडिया होल्डिंग के शेयर हस्तांतरित किये थे। आयकर अधिकारियों का मानना था कि इस हस्तांतरण से केयर्न UK को पूंजीगत लाभ प्राप्त हुआ है  जिस कारण कंपनी पर 24,500 करोड़ रुपए का कर लगाया गया।
    • कंपनी द्वारा पूंजीगत लाभ की अलग-अलग व्याख्या होने के कारण कर का भुगतान करने से इनकार कर दिया गया, जिससे कंपनी द्वारा आयकर अपीलीय अधिकरण (Income Tax Appellate Tribunal) और उच्च न्यायालय में मामला दर्ज कराया गया।
  • वर्ष 2012 में भारत सरकार ने पूर्वव्यापी कर संहिता में संशोधन किया। यह संशोधन सरकार को लेन-देन के स्वत: विलय और अधिग्रहण की शक्ति प्रदान करता है
  • वर्ष 2015 में केयर्न एनर्जी Plc द्वारा भारत सरकार के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता हेतु कार्यवाही शुरू की गई।

PCA का निर्णय:

  • भारत सरकार को हर्जाना राशि के रूप में केयर्न को लगभग 8,000 करोड़ रुपए का भुगतान करना होगा।
  • केयर्न टैक्स मुद्दा सिर्फ टैक्स से संबंधित नहीं था बल्कि यह निवेश से जुड़ा विवाद भी था, इसलिये यह मुद्दा न्याय सीमा के अंतर्गत आता है।
  • भारत सरकार द्वारा की गई पूर्वव्यापी मांग उचित और न्यायसंगत उपचार की गारंटी का उल्लंघन थी।
  • केंद्र, ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश संधि के तहत अपने दायित्वों के निर्वहन और कंपनी द्वारा देश के भीतर अपने व्यापार के पुनर्गठन के लिये कर भुगतान की मांग हेतु अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करने में विफल रहा।

भारत का रुख:

  • सरकार अपने वकील के परामर्श से पूर्व में दिये गए निर्णयों एवं उसके सभी पहलुओं का ध्यानपूर्वक अध्ययन करेगी।
  • परामर्श के बाद सरकार सभी विकल्पों पर विचार करेगी और आगे की कार्रवाई के बारे में निर्णय लेगी जिसमें न्यायालयों/न्यायाधिकरण द्वारा पूर्व में सुझाए गए कानूनी उपाय भी शामिल होंगे।

पूर्वव्यापी कराधान

  • यह एक देश को कुछ उत्पादों, वस्तुओं या सेवाओं और सौदों पर पूर्वव्यापी कर लगाने तथा कंपनियों पर पूर्वव्यापी दंड लगाने की अनुमति प्रदान करता है।
  • इस कानून के माध्यम से अनेक देशों ने अपने कराधान नीतियों की विसंगतियों को ठीक किया है जो किसी कंपनी को कमी का फायदा उठाने का अवसर प्रदान करती थी।
  • पूर्वव्यापी कराधान उन कंपनियों को नुकसान पहुँचाता है जिनके द्वारा जानबूझकर या अनजाने में कर नियमों की अलग-अलग व्याख्या की गई थी।
  • भारत के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया और इटली सहित कई देशों में पूर्वव्यापी टैक्स को लगाने वाली कंपनियाँ विद्यमान हैं।

मध्यस्थता का स्थायी न्यायालय (PCA)

  • PCA की स्थापना वर्ष 1899 में की गई थी। इसका मुख्यालय  नीदरलैंड्स के हेग में स्थित है।
  • उद्देश्य: यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जो राज्यों के बीच मध्यस्थता एवं विवाद समाधान हेतु समर्पित है।
  • इसकी संगठनात्मक संरचना तीन-भागों में विभक्त है:
    • प्रशासनिक परिषद- यह स्वयं के नीतियों और बजट के देखरेख हेतु समर्पित है।
    • न्यायालय सदस्य- यह स्वतंत्र संभावित मध्यस्थों का एक पैनल है।
    • अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो- यह परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन का सचिवालय है, जिसकी अध्यक्षता महासचिव द्वारा की जाती है।
  • वित्त: इसके पास एक वित्तीय सहायता कोष है जो विकासशील देशों को परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन द्वारा विवाद निपटान में शामिल लागत को पूरा करने में मदद करता है।

आगे की राह

  • यह उम्मीद की जानी चाहिये कि कर अधिकारी कानूनी रूप से अस्थिर राजस्व प्राप्त करने के लिये वित्त मंत्रालय में राजनेताओं की सिफारिशों से प्रभावित हुए बिना कार्य करने का प्रयास करें।
  • निवेश के अनुकूल कारोबारी माहौल आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देगा और समय के साथ सरकार के लिये अधिक राजस्व जुटाने में सहायक होगा।
  • भारत के सीमा पार लेन-देन से संबंधित विवादों को अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में जाने से रोकने के साथ -साथ लागत और समय को बचाने हेतु सार्थक तथा स्पष्ट विवाद समाधान तंत्र तैयार करने की आवश्यकता है। ऐसे सुधारों से व्यापार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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