भारतीय अर्थव्यवस्था के बचाव हेतु भारत सरकार की रणनीति | 30 Oct 2017

संदर्भ

भारत सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था को मंदी से बचाने के लिये एक ‘दो-आयामी रणनीति’ (two-pronged strategy) पर कार्य कर रही है।  अतः सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के साथ ही इसने एक बड़ी सड़क परियोजना की भी घोषणा की है। यह सड़क परियोजना यातायात को सुगम बनाने के साथ-साथ रोज़गार सृजन और विकास में योगदान करेगी।   

प्रमुख बिंदु

  • सरकार की योजना यह है कि मार्च 2022 तक देश के मुख्यतः उत्तरी और पूर्वी भागों में 83,677 किलोमीटर दूरी के राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण के लिये लगभग 7 लाख करोड़ रुपए खर्च किये जाएँ।   
  • अनुमान है कि भारतमाला परियोजना (जो कि इस रणनीति का एक मुख्य अवयव है) स्वयं ही प्रत्यक्ष रूप से 14.2 करोड़ व्यक्तियों के लिये रोज़गारों का सृजन करेगी, क्योंकि इसे अंतिम रूप देने के पश्चात् इन व्यक्तियों को स्थायी रोज़गार दे दिये जाएंगे।    
  • यदि यह कार्यक्रम 550 ज़िलों और तटीय बंदरगाहों से राष्ट्रीय राजमार्गों को सफलतापूर्वक जोड़ लेता है तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होगा।     
  • यदि इस परियोजना से होने वाले आर्थिक लाभों की बात की जाए तो यह अपेक्षा है कि इसका देश के जीडीपी में महत्त्वपूर्ण योगदान होगा। इसके लिये धन सरकार तथा बाज़ार उधारियों के माध्यम से जुटाया जाएगा। अतः इस परियोजना के संदर्भ में वित्त संबंधी समस्या का उभरना लगभग नगण्य है।   
  • इस वृहत सड़क परियोजना के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की  ‘राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजनाओं’ के बेहतर क्रियान्वयन पर बल दे रहे हैं।   
  • यद्यपि इस परियोजना की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार इसके मार्ग में आने वाली समस्याओं का सामना किस प्रकार करती है, क्योंकि पिछले कुछ दशकों में अवसंरचना प्रोजेक्टों के क्रियान्वयन को लेकर कई समस्याएँ उपजी हैं।
  • भारतमाला परियोजना में किये जाने वाले 5.35 लाख करोड़ रुपए के निवेश के लिये 2.09 लाख करोड़ रुपए बाज़ार उधारियों के माध्यम से जुटाए जाएंगे। जबकि इसके लिये 1 लाख करोड़ से अधिक रुपए निजी निवेशों के तौर पर प्राप्त किये जाएंगे।   
  • हालाँकि, निजी अवसंरचना कम्पनियाँ पूर्व के प्रोजेक्टों के खराब क्रियान्वयन के कारण वित्त संबंधी समस्याओं का सामना कर रही हैं।  अतः ऐसी परियोजनाओं में निवेश करने के लिये इनकी बैलेंस सीट में अधिक स्पष्टता की आवश्यकता होगी।
  • यह सरकार के लिये एक सुनहरा अवसर है क्योंकि इसके ज़रिये वह सार्वजनिक-निजी भागीदारी को पुनर्जीवित करने वाले ढाँचे को काम में ला सकती है। इस ढाँचे को दो वर्ष पूर्व वित्त सचिव विजय केलकर की अध्यक्षता में गठित पैनल द्वारा तैयार किया गया था।
  • चूँकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि बैंकिंग क्षेत्र में बैड लोन संबंधी समस्याओं के निराकरण में सरकार ने तीन वर्ष का समय क्यों लगाया। अतः यह समझना भी मुश्किल ही होगा कि वर्ष 2015 में केलकर रिपोर्ट आने के बाद भी कुछ ही लोगों ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी की ओर क्यों रुख किया हैं।
  • एनडीए सरकार के पहले बजट में एक नए निकाय (जिसे 3 पी इंडिया निकाय कहा गया था) के सृजन के लिये 500 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था, ताकि इसके माध्यम से पूर्व के सार्वजनिक-निजी भागीदारी ढाँचे में सुधर किया जा सके, जिसके कारण अनेक प्रोजेक्टों का क्रियान्वयन नहीं हो पाया था।
  • वर्तमान में एनडीए सरकार द्वारा पहले वर्ष में किये गए भूमि अधिग्रहण सुधारों को भी त्याग दिया गया है। अतः इन मोर्चों पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है ताकि इस आधारभूत ढांचे को समय पर तैयार किया जा सके।