भारतीय समाज
राज्य विधानसभाओं में महिलाओं एवं युवाओं की भागीदारी
- 05 May 2021
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चर्चा में क्यों?
तीन नई राज्य विधानसभाओं (पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु) से संबंधित हालिया आँकड़े विधानसभा सदस्यों (MLAs) के बीच महिलाओं और युवाओं की कम संख्या को दर्शाते हैं।
- वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के आंँकड़े भी महिलाओं की कम भागीदारी को दर्शाते हैं। वर्ष 2019 में अंतर-संसदीय संघ (Inter-Parliamentary Union) द्वारा संकलित सूची के अनुसार, निम्न सदन में महिलाओं के प्रतिशत के मामले में भारत विश्व में 190 देशों में से 153वें स्थान पर है।
- भारत युवाओं का देश है, परंतु देश में युवा नेताओं का अभाव है। भारत में औसत आयु लगभग 29 वर्ष है, जबकि देश में सांसदों की औसत आयु 55 वर्ष है।
प्रमुख बिंदु:
महिला विधायकों की कम संख्या के कारण:
- निरक्षरता- यह महिलाओं को राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने में मुख्य बाधाओं में से एक है।
- कार्य और परिवार- पुरुषों और महिलाओं के बीच घरेलू काम का असमान वितरण भी इस संबंध में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
- राजनीतिक नेटवर्क का अभाव- राजनीतिक निर्णयन में खुलेपन तथा स्पष्टता का अभाव और अलोकतांत्रिक आंतरिक प्रक्रियाओं के कारण अक्सर नए लोगों के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं, लेकिन ये चुनौतियाँ विशेष रूप से महिलाओं के समक्ष अधिक समस्या उत्पन्न करती हैं, क्योंकि महिलाओं के पास राजनीति की गहरी समझ या राजनीतिक नेटवर्क की कमी अधिक देखी जाती है।
- संसाधनों की कमी- राजनीतिक दलों के आंतरिक ढाँचे में महिलाओं का कम अनुपात महिला प्रतिनिधियों के लिये अपने राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्रों हेतु आवश्यक संसाधन जुटाना और समर्थन प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण बना देता है।
- वित्तीय सहायता का अभाव- महिलाओं को चुनाव लड़ने हेतु राजनीतिक दलों से पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिलती है।
- सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंड- महिलाओं पर लगाए गए सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंड उन्हें राजनीति में प्रवेश करने से रोकते हैं।
- अनुकूल परिवेश का अभाव: कुल मिलाकर राजनीतिक दलों का वातावरण महिलाओं के अनुकूल नहीं है, उन्हें पार्टी में जगह बनाने हेतु कठिन संघर्ष करना पड़ता है और बहुआयामी मुद्दों का सामना करना पड़ता है।
युवा विधायकों की कम संख्या के कारण:
- गलत धारणा- राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि और नीति निर्माता अक्सर यह मानते हैं कि चूँकि युवाओं ने जीवन को पर्याप्त रूप में नहीं देखा है, इसलिये वे शीर्ष राजनीति के लिये तैयार नहीं हैं।
- युवाओं को गंभीरता से नहीं लिया जाना- राजनीतिक दलों को इस बात का डर होता है कि पुराने नेताओं का सम्मान करने वाले भारतीय मतदाता युवा उम्मीदवारों को गंभीरता से नहीं लेंगे।
- दिग्गजों को नहीं छोड़ना- आमतौर पर पार्टी के प्रमुख निर्णय निर्माता, पार्टी के दिग्गजों को नज़रंदाज़ नहीं कर पाते हैं उन्हें इस बात की भय होता है कि इससे पार्टी के अंदर अंतरिक्ष कहल की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- बल की राजनीति- राजनेताओं द्वारा राजनीति में अच्छे लोगों के प्रवेश को रोकने हेतु बल और धन शक्ति का उपयोग किया जाता है।
- सफलता की कम संभावना- युवाओं के प्रति असफलता की संभावना का भय अधिक रहता है।
- अच्छे लोग द्वारा राजनीति में आने से परहेज़ - एक राजनीतिज्ञ के बारे में आम आदमी की सामान्य धारणा है कि अधिकांश राजनीतिज्ञ धोखेबाज और भ्रष्ट होते हैं, इसलिये प्रायः ज़मीनी स्तर से जुड़े लोग स्वयं को राजनेताओं की श्रेणियों में सूचीबद्ध होने से बचाते हैं।
- अनैतिक आचरण- कई लोग गंदी राजनीति के कारण अपनी अच्छी छवि को नुकसान पहुँचने से बचाने हेतु राजनीति में प्रवेश करने से कतराते हैं। वस्तुतः भारतीय राजनीति में अनैतिक आचरण, एक आदर्श के रूप में स्थापित हो गया है।
- भाई-भतीजावाद- यह एक महत्त्वपूर्ण कारक है और इसी वजह से अक्सर यह देखा जाता है कि कई युवा जो सफल राजनीतिज्ञ बन जाते हैं वे प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों से ही संबंध रखते हैं।
- अन्य कारण- नगरपालिका, पंचायत और महापौर चुनावों अभियान में बढ़ते खर्च और आरक्षण आदि कारणों ने भी युवा राजनेताओं की सफलता में चुनौतियाँ पैदा की हैं।
संबंधित पहल:
- महिला आरक्षण विधेयक, 2008:
- यह विधेयक भारतीय संसद के निचले सदन अर्थात् लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं हेतु 1/3 सीटें आरक्षित करने के लिये भारतीय संविधान में संशोधन करने का प्रस्ताव करता है।
- पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिये आरक्षण:
- संविधान के अनुच्छेद 243D का खंड (3) पंचायत स्तर पर प्रत्यक्ष चुनाव से भरी जाने वाली सीटों और पंचायत अध्यक्षों के कार्यालयों में कम-से-कम एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित करके पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
- राष्ट्रीय युवा संसद महोत्सव:
- राष्ट्रीय सेवा योजना ( National Service Scheme- NSS) और नेहरू युवा केंद्र संगठन (Nehru Yuva Kendra Sangathan- NYKS) द्वारा युवा मामलों और खेल मंत्रालय के तत्त्वाधान में इस महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इसके उद्देश्यों में शामिल है:
- 18-25 आयु वर्ग के युवाओं के विचारों को जानना, जिन्हें वोट देने की अनुमति तो है, लेकिन वे चुनाव में नहीं लड़ सकते।
- युवाओं को सार्वजनिक मुद्दों से जुड़ने, आम आदमी की बात को समझने, अपनी राय बनाने और इन्हें एक स्पष्ट तरीके से व्यक्त करने के लिये प्रोत्साहित करना।
- राष्ट्रीय सेवा योजना ( National Service Scheme- NSS) और नेहरू युवा केंद्र संगठन (Nehru Yuva Kendra Sangathan- NYKS) द्वारा युवा मामलों और खेल मंत्रालय के तत्त्वाधान में इस महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इसके उद्देश्यों में शामिल है:
- राष्ट्रीय युवा संसद योजना:
- संसदीय कार्य मंत्रालय द्वारा वर्ष 1966 से युवा संसद कार्यक्रम का क्रियान्वयन किया रहा है।
- इसका उद्देश्य लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत करना, अनुशासन की आदतों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना, दूसरों के दृष्टिकोण को समझने में सहायता करना और छात्र समुदाय को संसद की प्रथाओं और प्रक्रियाओं के बारे में जानने में मदद करना है।
- संसदीय कार्य मंत्रालय द्वारा वर्ष 1966 से युवा संसद कार्यक्रम का क्रियान्वयन किया रहा है।
आगे की राह:
- भारत जैसे देश में यह आवश्यक है कि मुख्यधारा की राजनीतिक गतिविधि में समाज के सभी वर्गों की समान भागीदारी हो, अत: इस लक्ष्य को प्राप्त करने लिये आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये।
- संवैधानिक रूप से युवा और महिला कोटा को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक दलों को भी एक रोटेशन क्रम में युवाओं और महिलाओं हेतु आरक्षित सीटों पर विचार करना चाहिये।
- नगरपालिका और पंचायत चुनावों में उन नेताओं को मौका मिलना चाहिये देना चाहिये जिनके पास ज़मीनी स्तर पर अनुभव है। ऐसे नेताओं को कुछ और अनुभव के बाद, राज्य और अंततः केंद्रीय विधायी सीटों हेतु आगे आने का अवसर दिया जाना चाहिये।
- पार्टी में आंतरिक स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा देना चाहिये, जहांँ एक लोकतांत्रिक राजनीतिक दल में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष आदि जैसे विभिन्न पद चुनाव प्रक्रिया द्वारा भरे जाते हैं।