डेटा सरंक्षण बिल का ड्राफ्ट तैयार करने के लिये पैनल का गठन | 02 Aug 2017

चर्चा में क्यों?

  • विदित हो कि डेटा संरक्षण के विशेष महत्त्व को ध्‍यान में रखने के साथ-साथ देश के नागरिकों के व्‍यक्तिगत डेटा को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने के लिये भारत सरकार के इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने उच्‍चतम न्‍यायालय के भूतपूर्व न्‍यायमूर्ति बी. एन.  श्रीकृष्‍ण की अध्‍यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति गठित की है।
  • इस समिति में शिक्षाविद् एवं उद्योग जगत के सदस्यों को भी शामिल किया गया है। इस समिति को डेटा संरक्षण से जुड़े महत्त्वपूर्ण मसलों की पहचान एवं अध्‍ययन करने और उन्‍हें सुलझाने के तरीके सुझाने की ज़िम्‍मेदारी सौंपी गई है।
  • इसके साथ ही समिति डेटा संरक्षण विधेयक के मसौदे के बारे में भी सुझाव देगी। डेटा के संरक्षण से देश में डिजिटल अर्थव्‍यवस्‍था को काफी बढ़ावा मिलने की आशा है।
  • राइट टू प्राइवेसी मामले में नौ जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान सरकार से पूछा था कि क्या केंद्र सरकार के पास डेटा को सुरक्षित रखने के लिये कोई ठोस प्रणाली है? 
  • कोर्ट ने यह भी कहा था कि ‘सरकार के पास डेटा को संरक्षित करने लिये ठोस प्रक्रिया होनी चाहिये। बेशक सरकार कल्याणकारी योजनाओं के लिये आधार डेटा इकट्ठा कर रही है, लेकिन यह भी सुनिश्चित हो कि डेटा सुरक्षित रहे’।

डेटा सरंक्षण विधेयक की आवश्यकता क्यों ?

  • ध्यातव्य है कि वर्तमान समय को निजी कंपनियों के “आँकड़ों का युग” नाम दिया गया है। ऐसा कहने का कारण यह है कि सोशल मीडिया से लेकर ई-मेल सेवाओं और संदेश भेजने वाले एप्लीकेशनों के माध्यम से बहुत बड़े स्तर पर सूचनाओं के प्रचार-प्रसार का कार्य संपन्न होता है।
  • उल्लेखनीय है कि वर्तमान में भारत में फेसबुक एवं वाट्सअप से तक़रीबन 200 मिलियन लोग जुड़े हुए हैं। विदित हो कि आँकड़ों का संचयन करने वाली कंपनियाँ इस कार्य के लिये कोई एक मार्ग न अपनाकर असंख्य तरीके अपनाती है। जिस कारण किसी एक व्यक्ति का इन आँकड़ों के संबंध में बहुत ही सीमित अधिकार होता है।
  • यही कारण है कि किसी निजी सूचना के लीक होने पर लोग खुद के व्यक्तिगत आँकड़ों के संबंध में स्वामित्त्व का दावा तक नहीं कर सकते हैं। इसके साथ-साथ कंपनियों का अपना डेटा भी साइबर हमलों से सुरक्षित नहीं होता है। अत: ऐसी स्थिति में व्यक्ति की निजता संबंधी सुरक्षा का मुद्दा और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। 
  • स्पष्ट रूप से इन सभी समस्याओं से बचने के लिये हमें ऐसी प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है, जो हमारी खुफिया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की प्रभावशीलता को और अधिक असरकारक बनाने में कारगर साबित हो सके।
  • ऐसी व्यवस्था का निर्माण करने के पश्चात् ही हम उपरोक्त चुनौतियों का सामना कर सकते हैं क्योंकि ऐसी चुनौतियाँ केवल समाज के लिये ही नहीं वरन् हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी चिंता का कारण है। अतः यह डेटा सरंक्षण विधेयक लाने का उपयुक्त समय है।