भारतीय अर्थव्यवस्था
घाटे का प्रत्यक्ष मुद्रीकरण
- 12 Sep 2020
- 7 min read
प्रिलिम्स के लियेराजकोषीय घाटा, प्रत्यक्ष मुद्रीकरण मेन्स के लियेएक विकल्प के तौर पर प्रत्यक्ष मुद्रीकरण और उसकी सीमाएँ |
चर्चा में क्यों?
कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण प्रभावित हुई भारतीय अर्थव्यवस्था में राजस्व की कमी केंद्र सरकार को और अधिक उधार लेने के लिये मजबूर कर सकती है, किंतु सरकार के लिये घाटे का मुद्रीकरण (Monetising) करना अंतिम उपाय के तौर पर भी देखा जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- आधिकारिक बयान के अनुसार, मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी छमाही के लिये उधार संबंधी कार्यक्रमों की समीक्षा भारत सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अधिकारियों द्वारा इस माह के अंत में की जाएगी, वहीं अधिकारियों द्वारा घाटे के प्रत्यक्ष मुद्रीकरण की संभावना पर भी चर्चा की गई है।
अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति
- तकरीबन चार माह तक देशव्यापी लॉकडाउन के कारण बावजूद भी भारत कोरोना वायरस (COVID-19) संक्रमण के मामले में विश्व में दूसरे स्थान पर बना हुआ है, और इस महामारी तथा लॉकडाउन के परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधियाँ रुक गई हैं, जिससे सरकार के राजस्व को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
- हालिया आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में रिकॉर्ड 23.9 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया है, जो कि बीते एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे खराब प्रदर्शन है।
- अर्थव्यवस्था में विकास के लगभग सभी प्रमुख संकेतक गहरे संकुचन की ओर इशारा कर रहे हैं। जहाँ एक ओर मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही के दौरान कोयले के उत्पादन में 15 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया, वहीं इसी अवधि के दौरान सीमेंट के उत्पादन और स्टील के उपभोग में क्रमशः 38.3 प्रतिशत और 56.8 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया।
- इसके अलावा देश में रोज़गार की स्थिति भी अच्छी नहीं है, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, इस वर्ष अप्रैल-अगस्त माह के दौरान लगभग 21 मिलियन वेतनभोगी कर्मचारियों ने अपनी नौकरी खो दी है।
घाटे का प्रत्यक्ष मुद्रीकरण
- इस प्रकार की व्यवस्था के अंतर्गत सरकार प्रत्यक्ष तौर पर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के साथ व्यवहार करती है और उसे सरकारी बाॅॅण्ड्स (Government Bonds) के बदले में नई मुद्रा छापने के लिये कहती है।
- नई मुद्रा छापने के बदले में RBI को सरकारी बाॅॅण्ड्स प्राप्त होते हैं जो कि RBI की परिसंपत्ति हैं।
- इस प्रकार सरकार के पास खर्च करने के लिये आवश्यक नकदी आ जाती है, जिसे वह विभिन्न जन कल्याण कार्यक्रमों पर प्रयोग कर सकती है।
- मौजूदा महामारी के दौर में कई विश्लेषण सरकार के घाटे को पूरा करने के लिये प्रत्यक्ष मुद्रीकरण को एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, किंतु सरकार इस विकल्प को सबसे अंतिम उपाय के रूप में ही देखेगी, क्योंकि इसके साथ निहित समस्याएँ सरकार को इसका प्रयोग न करने के लिये मजबूर कर रही हैं।
निहित समस्याएँ
- सैद्धांतिक तौर पर निजी मांग में गिरावट की स्थिति में घाटे के प्रत्यक्ष मुद्रीकरण की व्यवस्था सरकार को समग्र मांग बढ़ाने का अवसर प्रदान करती है, जिससे इस व्यवस्था से मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलता है।
- यद्यपि कुछ हद तक मुद्रास्फीति को अर्थव्यवस्था के लिये सही माना जाता है, किंतु यदि सही ढंग से निगरानी न की जाए तो इस व्यवस्था से अर्थव्यवस्था में उच्च मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- इस प्रकार उच्च मुद्रास्फीति और उच्च सार्वजनिक ऋण अर्थव्यवस्था में व्यापक स्तर पर अस्थिरता उत्पन्न कर सकते हैं।
- प्रायः सरकारी तंत्र को खर्च करने के मामले में अप्रभावी और भ्रष्ट माना जाता है, जिसके कारण सरकार के पास राजस्व होने के बावजूद भी यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि उसका लाभ देश के सभी आम नागरिकों को मिल सकेगा।
निष्कर्ष
महामारी के प्रभाव के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर काफी अधिक प्रभाव पड़ा है, और अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्र उत्पादन और राजस्व की भारी कमी का सामना कर रहे हैं, ऐसे में उन्हें अधिक-से-अधिक खर्च करने के लिये मजबूर नहीं किया सकता है, ऐसे में सरकार द्वारा किये जाने वाला निवेश अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देने के लिये एकमात्र साधन प्रतीत होता है, किंतु सरकार के पास इतनी राशि नहीं है कि वह खर्च कर सके, इसलिये प्रत्यक्ष मुद्रीकरण को एक विकल्प के रूप में देखा जा सकता है, हालाँकि इसके साथ निहित समस्याएँ काफी गंभीर हैं और उन पर सही ढंग से विचार करना आवश्यक है। अन्य विकल्पों के तौर पर सरकार अप्रत्यक्ष मुद्रीकरण जैसे ओपन मार्केट ऑपरेशन्स (OMOs) का प्रयोग कर रही है।