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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

उड़ीसा का पाइक विद्रोह

  • 20 Jul 2017
  • 4 min read

संदर्भ
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने केंद्र से आग्रह किया है कि वह 1817 के पाइक विद्रोह को भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम घोषित करे। यह पाइक विद्रोह की 200 वीं वर्षगाँठ मनाने के लिये एक उचित श्रद्धांजलि होगी।

प्रमुख बिंदु 

  • ओडिशा की मंत्रिपरिषद द्वारा 1817 के पाइक विद्रोह को भारत की आज़ादी का प्रथम  संग्राम घोषित करने के लिये केंद्र से आग्रह करने के प्रस्ताव के बाद राज्य के मुख्यमंत्री ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह को इस पर सकारात्मक रूप से विचार करने के लिये एक पत्र लिखा है।
  • मुख्यमंत्री के अनुसार इसे स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम कहने में कोई समस्या नहीं आनी चाहिये। इसका महत्त्व इस तथ्य से नहीं है कि यह 1857 के सिपाही विद्रोह से चालीस वर्ष पहले हुआ था, बल्कि इसका महत्त्व इसकी प्रकृति एवं विस्तार से है। 
  • गौरतलब है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी गुरुवार को नई दिल्ली में इस विद्रोह के साल भर चलने वाले एक समारोह का अभिषेक करने जा रहे हैं। 

क्या था पाइक विद्रोह ? 

  • पाइक विद्रोह 1817 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की शोषणकारी नीतियों के विरुद्ध उड़ीसा में पाइक जाति के लोगों द्वारा किया गया एक सशस्त्र, व्यापक आधार वाला और संगठित विद्रोह था। 
  • पाइक उड़ीसा के पारंपरिक भूमिगत रक्षक सेना थे, तथा वे योद्धाओं के रूप में वहाँ के लोगों की सेवा भी करते थे। पाइक विद्रोह का नेता बक्शी जगबंधु था। पाइक जाति भगवान जगन्नाथ को उड़ीया एकता का प्रतिक मानती थी। 

विद्रोह का कारण 

  • पाइक विद्रोह के कई सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारण थे। 
  • 1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा खुर्दा (उड़ीसा) की विजय के बाद पाइकों की शक्ति एवं प्रतिष्ठा घटने लगी। 
  • अंग्रेजों ने खुर्दा पर विजय प्राप्त करने के बाद पाइकों की वंशानुगत लगान-मुक्त भूमि हड़प ली तथा उन्हें उनकी भूमि से विमुख कर दिया। इसके बाद कंपनी की सरकार और उसके कर्मचारियों द्वारा उनसे जबरन वसूली और उनका उत्पीड़न किया जाने लगा। 
  • कंपनी की जबरन वसूली वाली भू-राजस्व नीति ने किसानों और ज़मींदारों को एक समान रूप से प्रभावित किया। 
  • नई सरकार द्वारा लगाए गए करों के कारण नमक की कीमतों में वृद्धि आम लोगों के लिये तबाही का स्रोत बनकर आई। 
  • इसके अलावा कंपनी ने कौड़ी मुद्रा व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया था जो कि उड़ीसा में कंपनी के विजय से पहले अस्तित्व में था और जिसके तहत चांदी में कर चुकाना आवश्यक था। यही इस असंतोष का सबसे बड़ा कारण बना।
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