भारतीय इतिहास
पाइका विद्रोह: 1817
- 03 Dec 2021
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प्रिलिम्स के लिये:पाइका विद्रोह मेन्स के लिये:पाइका विद्रोह के कारण एवं महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने कहा है कि पाइका विद्रोह (Paika Rebellion) को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम नहीं कहा जा सकता।
- यह भी सुझाव दिया गया है कि इसे राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की कक्षा 8 की इतिहास की पाठ्यपुस्तक में केस स्टडी के रूप में शामिल किया जाए।
- वर्ष 2017 में पहली बार ओडिशा राज्य मंत्रिमंडल ने पाइका विद्रोह को पहले स्वतंत्रता संग्राम के रूप में घोषित करने हेतु केंद्र से औपचारिक रूप से आग्रह करने का प्रस्ताव पारित किया था।
- वर्ष 2018 में सरकार ने पाइका विद्रोह की याद में स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया।
प्रमुख बिंदु
- पाइका विद्रोह के बारे में:
- पाइका (उच्चारण ‘पाइको’, शाब्दिक रूप से 'पैदल सैनिक') को 16वीं शताब्दी के बाद से ओडिशा में राजाओं द्वारा विभिन्न सामाजिक समूहों से वंशानुगत कर-मुक्त भूमि (निश-कर जागीर) और उपाधियों के बदले सैन्य सेवाएंँ प्रदान करने के लिये भर्ती किया गया वर्ग था।
- जब अंग्रेज़ यहाँ पहुंँचे तो उस समय ओडिशा के गजपति शासक मुकुंद देव द्वितीय किसान मिलिशिया (Peasant Militias) थे।
- ब्रिटिश दमनकारी नीति:
- अंग्रेज़ोंं के नए औपनिवेशिक प्रतिष्ठान और भू-राजस्व बंदोबस्त लागू होने से पाइको ने अपनी संपदा खो दी।
- ओडिशा में ब्रिटिश शासन की स्थापना के बाद ब्रिटिश द्वारा पाइको के खिलाफ दमनकारी नीति अपनाई गई। उन्होंने समाज में अपनी पारंपरिक स्थिति खो दी और उनकी ज़मीन छीन ली गई।
- अर्थव्यवस्था और राजस्व प्रणालियों में निरंतर हस्तक्षेप से किसानों का शोषण और उत्पीड़न हुआ, अंततः अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया।
- ‘खुर्दा’ में पाइको के विद्रोह से पहले और बाद में पारालाखेमुंडी (1799-1814), घुमुसर (1835-36) एवं अंगुल (1846-47); कालाहांडी में कोंधों का विद्रोह (1855); तथा 1856-57 का सबारा में विद्रोह हुए।
- इन विद्रोहों का नेतृत्व संपत्ति वाले ऐसे वर्गों ने किया था जिनकी स्थिति औपनिवेशिक हस्तक्षेपों से कमज़ोर हो गई थी।
- अंग्रेज़ोंं के नए औपनिवेशिक प्रतिष्ठान और भू-राजस्व बंदोबस्त लागू होने से पाइको ने अपनी संपदा खो दी।
- पाइका विद्रोह:
- वर्ष 1817 का पाइका विद्रोह वर्ष 1857 के पहले सिपाही विद्रोह से लगभग 40 वर्ष पूर्व हुआ था।
- बक्शी जगबंधु विद्याधर महापात्र भरमारबार राय, मुकुंद देव द्वितीय के सर्वोच्च सैन्य जनरल और रोडंगा एस्टेट के पूर्व धारक ने कोंधों के विद्रोह में शामिल होकर पाइका की एक सेना का नेतृत्व किया। उन्होंने 2 अप्रैल, 1817 को अंग्रेज़ों का सामना किया।
- पाइको को राजाओं, ज़मींदारों, ग्राम प्रधानों और साधारण किसानों का समर्थन प्राप्त था। यह विद्रोह शीघ्र ही प्रांत के विभिन्न भागों में फैल गया।
- इस घटना में बानापुर में सरकारी भवनों में आग लगा दी गई, पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई और ब्रिटिश खजाने को लूट लिया गया।
- आगामी कुछ महीनों तक विद्रोह जारी रहा, लेकिन अंततः ब्रिटिश सेना ने उन्हें पराजित कर दिया। विद्याधर को वर्ष 1825 में जेल में डाल दिया गया था और चार वर्ष बाद जेल में रहने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।