ओज़ोन गैस : जीवनरक्षक या प्रदूषक? | 11 Jan 2018
नासा के अनुसार क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) नामक क्लोरीन युक्त मानव निर्मित रसायन पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध के कारण ओज़ोन छिद्र में लगभग 20% की कमी हुई है।
प्रमुख बिंदु
- वैज्ञानिकों ने हाइड्रोक्लोरिक एसिड और नाइट्रस ऑक्साइड के माइक्रोवेव लिंब साउंडर माप की प्रत्येक वर्ष तुलना करके यह निर्धारित किया है कि क्लोरीन का कुल स्तर प्रतिवर्ष लगभग 0.8% तक कम हो रहा है।
- अध्ययन के मुताबिक, क्लोरोफ्लोरोकार्बन के वातावरण में कमी से अंटार्कटिक में ओज़ोन छिद्र धीरे-धीरे छोटा होता जाएगा किंतु इसके पूर्णतया स्वस्थ होने में कई दशक लगेंगे।
- माइक्रोवेव लिंब साउंडर (Microwave Limb Sounder) प्रयोग, पृथ्वी के वायुमंडल के किनारों से स्वाभाविक रूप से होने वाले माइक्रोवेव थर्मल उत्सर्जन को मापता है ताकि वायुमंडलीय गैसों, दाब,तापमान इत्यादि की ऊर्ध्वाधर प्रोफाइल को समझा जा सके।
- इन प्रयोगों का समग्र उद्देश्य पृथ्वी के वायुमंडल और वैश्विक स्तर पर इसमें परिवर्तन की हमारी समझ को बेहतर बनाने में सहायता करना है।
क्या है ओज़ोन परत?
- ओज़ोन एक वायुमंडलीय गैस है या ऑक्सीजन का एक प्रकार है। तीन ऑक्सीजन परमाणुओं के जुड़ने से ओज़ोन का एक अणु बनता है।
- जर्मन वैज्ञानिक क्रिश्चियन फ्रेडरिक श्योनबाइन ने 1839 में ओज़ोन गैस की खोज की थी।
- इसका रंग हल्का नीला होता है और इससे तीव्र गंध आती है। इस तीखी विशेष गंध के कारण इसका नाम ग्रीक शब्द 'ओजिन' से बना है, जिसका अर्थ है सूंघना।
- यह अत्यधिक अस्थायी और प्रतिक्रियाशील गैस है।
- ओज़ोन गैस ऊपरी वायुमंडल अर्थात् समतापमंडल (Stratosphere) में अत्यंत पतली एवं पारदर्शी परत के रूप में पाई जाती है।
- वायुमंडल में व्याप्त समस्त ओज़ोन का कुल 90 प्रतिशत भाग समतापमंडल में पाया जाता है।
- ओज़ोन हमारे वायुमंडल में दुर्लभ रूप में पाई जाती है। प्रत्येक दस लाख वायु अणुओं में दस से भी कम ओज़ोन अणु होते हैं।
क्या है क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs)?
- CFCs समतापमंडलीय ओज़ोन क्षरण हेतु ज़िम्मेदार प्रमुख पदार्थ है।
- ये क्लोरिन, फ्लोरिन एवं कार्बन से बने होते हैं। इसका व्यापारिक नाम फ्रेऑन (Freon) है।
- ये क्षोभमंडल में मानव द्वारा मुक्त किये जाते है एवं यादृच्छिक (Random) तरीके से विसरण द्वारा ऊपर की ओर चले जाते हैं।
- यहाँ पर ये 65 से 110 साल तक ओज़ोन अणुओं का क्षरण करते रहते हैं। चूँकि ये उष्मीय रूप से स्थिर होते हैं, अत: ये क्षोभमंडल में उपस्थित रह पाते हैं।
- परंतु समतापमंडल में पराबैंगनी विकिरण द्वारा ये नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार मुक्त क्लोरीन परमाणु ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाते हैं। इसे ओज़ोन क्षरण कहते हैं।
- इनका प्रयोग रेफ्रीजरेटर एवं वातानुकूलन युक्तियो में प्रशीतकों के रूप में, आग बुझाने वाले कारकों के रूप में, फोमिंग एजेंट, प्रणोदक इत्यादि के रूप में किया जाता है।
ओज़ोन क्षरण के प्रभाव
- ओज़ोन परत हमें सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली अत्यधिक ऊर्जा युक्त पराबैगनी किरणों से बचाती है, जिनसे कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है।
- इनसे चर्म कैंसर, मोतियाबिंद के अलावा शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसका असर जैव विविधता पर भी पड़ता है और कई फसलें नष्ट हो सकती हैं।
- यह सागरीय पारितंत्र को भी प्रभावित करती है जिससे मछलियों व अन्य प्राणियों की सख्या कम हो सकती है।
- लेकिन सूर्य से आने वाली इन पराबैगनी किरणों का लगभग 99% भाग ओज़ोन परत द्वारा सोख लिया जाता है। जिससे पृथ्वी पर रहने वाले प्राणी और वनस्पति इसके हानिकारक प्रभावों से बचे हुए हैं। इसीलिये ओज़ोन परत को पृथ्वी का सुरक्षा कवच भी कहते हैं।
ओज़ोन की कुछ मात्रा निचले वायुमंडल (क्षोभमंडल) में भी पाई जाती है। रासायनिक रूप से समान होने पर भी दोनों स्थानों पर ओज़ोन की भूमिका में अंतर पाया जाता है। इस भूमिका के चलते ओज़ोन को कभी-कभार अच्छी ओज़ोन और बुरी ओज़ोन में वर्गीकृत किया जाता है।
प्रदूषक के रूप में ओज़ोन अर्थात बुरी ओज़ोन
- वायुमंडल के निम्नतम स्तर में पाई जाने वाली अर्थात क्षोभमंडलीय ओज़ोन को बुरी ओज़ोन भी कहा जाता है।
- यह ओज़ोन मानव निर्मित कारकों जैसे आंतरिक दहन इंजनों, औद्योगिक उत्सर्जन और बिजली संयंत्रों के कारण होने वाले वायु प्रदूषण का परिणाम है।
- इनसे गैसोलीन और कोयले के संयुक्त दहन के उप-उत्पाद नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs) निकलते हैं।
- ये उत्पाद उच्च तापमान की परिस्थितियों में रासायनिक रूप से ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर ओज़ोन का निर्माण करते हैं। ओज़ोन की उच्च मात्रा आमतौर पर दोपहर और शाम की गर्मी में बनती हैं और ठंडी रातों के दौरान इसका छितराव हो जाता है।
- यह अक्सर समाचारों में रहने वाले ‘स्मॉग’ का अनिवार्य हिस्सा होती है।
- यद्यपि ओज़ोन प्रदूषण मुख्य रूप से शहरी और उपनगरीय इलाकों में अधिक पाया जाता है। किंतु प्रचलित हवाओं के द्वारा तथा ग्रामीण क्षेत्रों में जाने वाली कारों और ट्रकों के कारण यह ग्रामीण इलाकों में भी फैल जाता है।
वर्तमान संदर्भ
- एक प्रदूषक के रूप में सतही ओज़ोन प्राय: उपेक्षित रही है किंतु एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, उत्तर भारत में सतही ओज़ोन स्तर में निरंतर वृद्धि जारी रहेगी।
- शोधकर्त्ताओं ने मानवजनित कारकों एवं अकार्बनिक एरोसोल के कारण PM2.5 और ओज़ोन की उत्पत्ति तथा जलवायु परिवर्तन के कारण उन वायुमंडलीय स्थितियों के प्रभाव का अध्ययन किया है जिनके कारण इन प्रदूषकों का फैलाव हो जाता है।
- 2050 के दशक तक जलवायु परिवर्तन जनित परिवर्तनों के चलते उत्तर भारत के बड़े भाग, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में ओज़ोन स्तर 4.4% तक बढ़ जाएगा, जबकि दक्षिण भारत में पश्चिम घाट के वनीय क्षेत्र में 3.4% तक की कमी आएगी।
- इस प्रदूषक को रोकने के लिये समुचित नीतिगत प्रयासों के अभाव में उत्तर भारत में सतही ओज़ोन में होने वाली वृद्धि में मानव-निर्मित स्रोतों जैसे कि ऑटोमोबाइल्स, विद्युत संयंत्रों या जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने वाली मशीनों आदि का योगदान 45% तक होगा।
- जलवायु परिवर्तन मिट्टी में नमी, वर्षण प्रतिरूप या वनस्पति घनत्व पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा जो ओज़ोन के अवशोषण को और अधिक नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा।
ओज़ोन प्रदुषण का मानव जीवन पर प्रभाव
- ओज़ोन के अंत:श्वसन पर सीने में दर्द, खाँसी और गले में जलन सहित कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
- यह ब्रोन्काइटिस, वातस्फीति और अस्थमा की स्थिति को और खराब कर सकता है।
- इससे फेफड़ों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है और ओज़ोन के बार-बार संपर्क में आने से फेफड़ो के ऊतक स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकते है।
- ओज़ोन प्रदूषण के संपर्क में आने पर स्वस्थ लोगों को भी साँस लेने में कठिनाई का अनुभव होता है।
- सतही ओज़ोन वनस्पति और पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान पहुँचाती है।