ऑक्सीजन संकट: कोविड-19 | 29 Apr 2021
चर्चा में क्यों?
कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान आवश्यक ऑक्सीजन टैंकरों की कमी और इसके प्लांटो के दूरस्थ अवस्थिति होने के कारण लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (Liquid Medical Oxygen- LMO) संकट और भी गंभीर हो गया है।
प्रमुख बिंदु
लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन:
- यह मानव उपयोग के लिये उपयुक्त उच्च शुद्धता ऑक्सीजन है, जिसका उपयोग चिकित्सा उपचार हेतु किया जाता है।
- यह ऑक्सीजन लगभग सभी आधुनिक संवेदनाहारी तकनीकों का आधार है जो ऑक्सीजन की उपलब्धता, हृदय स्थिरता आदि को बढ़ाकर शरीर की ऑक्सीजन माँग को पूरा करता है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) ने इसे अपनी आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल किया है।
- इसे ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर, 2013 के अनुसार आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (National List of Essential Medicine) के अंतर्गत रखा गया है।
भारत में LMO का उत्पादन:
- भारत में इस ऑक्सीजन की लगभग 7,100 मीट्रिक टन (MT) दैनिक उत्पादन क्षमता है, जिसमें औद्योगिक उत्पादन भी शामिल है।
- हालाँकि, कोविड-19 संकट के कारण भारत की उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 8,922 मीट्रिक टन कर दिया गया है, जिसमें से लगभग 7,017 मीट्रिक टन की दैनिक बिक्री होती है।
- इसके घरेलू उत्पादन को अप्रैल 2021 के अंत तक 9,250 मीट्रिक टन तक बढ़ाने की उम्मीद है।
- इस तरह भारत मौज़ूदा माँग को पूरा करने हेतु पर्याप्त ऑक्सीजन का उत्पादन कर रहा है।
संकट के कारण:
- उत्पादन संयंत्रों की दूरी:
- भारत में LMO के अधिकांश संयंत्र पूर्वी क्षेत्रों में स्थित हैं, जिससे इसके परिवहन में 6-7 दिनों का समय लग जाता है। इसके अलावा कई बार राज्यों द्वारा भी इन टैंकरों को रोक लिया जाता है।
- सीमित टैंकर:
- वर्तमान में भारत में 1,224 LMO टैंकर हैं, जिनकी कुल LMO संचयी क्षमता तकरीबन 16,732 मीट्रिक टन है। वर्तमान परिदृश्य में यह संख्या LMO के परिवहन के लिये अपर्याप्त है, क्योंकि इस तरह भारत में LMO की 3,500-4,000 मीट्रिक टन माँग को पूरा करने के लिये केवल 200 टैंकर ही उपलब्ध हैं।
- ‘क्रायोजेनिक टैंकर’ नहीं खरीद रही कंपनियाँ:
- क्रायोजेनिक टैंकरों की कीमत लगभग 50 लाख रुपए है। कंपनियाँ इन टैंकरों को नहीं खरीद रही हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि वर्तमान माँग खत्म होने के बाद यह निवेश घाटे में बदल जाएगा।
- क्रायोजेनिक टैंकर: इन टैंकरों में मेडिकल ऑक्सीजन को -180 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर करके रखा जाता है, इनमें डबल-स्किन वैक्यूम-इंसुलेटेड कंटेनर (Double-Skin Vacuum-Insulated Container) होते हैं, जिनमें स्टेनलेस स्टील से बना एक आंतरिक पात्र होता है।
- क्रायोजेनिक टैंकरों की कीमत लगभग 50 लाख रुपए है। कंपनियाँ इन टैंकरों को नहीं खरीद रही हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि वर्तमान माँग खत्म होने के बाद यह निवेश घाटे में बदल जाएगा।
- लीकेज और दुरुपयोग:
- पिछले दिनों स्वास्थ्य मंत्रालय ने अस्पतालों से ऑक्सीजन के अपव्यय और अनावश्यक उपयोग को कम करने लिये कहा था। औद्योगिक विशेषज्ञों ने ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाले पाइपलाइनों में संभावित रिसाव पर भी चिंता व्यक्त है।
- ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाज़ारी भी एक अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।
सरकार की पहलें:
- ऑक्सीजन एक्सप्रेस:
- वर्तमान संकट से लड़ने के लिये पूरे देश में LMO और ऑक्सीजन सिलेंडरों को पहुँचाने हेतु अनेक ट्रेनें चलाई गई हैं।
- आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005:
- गृह मंत्रालय ने LMO ऑक्सीजन को ले जाने वाले वाहनों के अंतर-राज्य मुक्त परिवहन के लिये आपदा प्रबंधन अधिनियम (Disaster Management Act), 2005 को लागू किया है।
- संयंत्रों को पुनः आरंभ करना:
- सरकार LMO की आपूर्ति बढ़ाने के लिये कई बंद संयंत्रों को फिर से शुरू कर रही है। तमिलनाडु में स्टरलाइट प्लांट को ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाने हेतु 4 महीने के लिये पुनः खोला जा रहा है।
- वायु सेना का उपयोग:
- LMO के परिवहन में तेज़ी लाने के लिये भारतीय वायु सेना (IAF) खाली ऑक्सीजन टैंकरों को एयरलिफ्ट कर रही है और उन्हें LMO औद्योगिक इकाइयों तक पहुँचा रही है।
- ऑक्सीजन संवर्द्धन इकाई:
- इसे काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च-नेशनल केमिकल लेबोरेटरी (Council of Scientific and Industrial Research-National Chemical Laboratory) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है, जिससे होम केयर, गाँवों और दूरगामी स्थानों में वेंटिलेटर तथा ऑक्सीजन सिलेंडर की आवश्यकता को पूरा करने में मदद मिलेगी।
- कोविड-19 महामारी को देखते हुए ऑक्सीजन संवर्द्धन इकाइयों का विशेष महत्त्व है। इससे रोगी की रिकवरी प्रारंभिक अवस्था में सहायक ऑक्सीजन से तेज़ हो सकती है।