जैविक कृषि : स्वास्थ्य के लिये लाभकारी | 25 Apr 2018
संदर्भ
जैविक कृषि से अभिप्राय कृषि की ऐसी प्रणाली से है, जिसमें रासायनिक खादों एवं कीटनाशक दवाओं का प्रयोग नहीं हो बल्कि उसके स्थान पर जैविक खाद या प्राकृतिक खादों का प्रयोग हो। यह कृषि की एक पारंपरिक विधि है, जिसमें भूमि की उर्वरता में सुधार होने के साथ ही पर्यावरण प्रदूषण भी कम होता है। जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाने से धारणीय कृषि, जैव विविधता संरक्षण आदि लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है। जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिये किसानों को प्रशिक्षण देना महतत्त्वपूर्ण है।
प्रमुख बिंदु
- जैविक कृषि की शुरुआत 14 साल पहले एक छोटे से क्षेत्र में छोटे से बदलाव के रूप में हुई थी और अब यह पूरे देश के लिये सीखने का एक अच्छा उदाहरण बन गया है।
- लेकिन यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि क्या पूरा देश जैविक हो सकता है?
- भारत के पास बहुत अच्छी उपजाऊ और उत्पादक कृषि भूमि है। भारत में 60 प्रतिशत से अधिक भूमि क्षेत्र कृषि कार्यों हेतु उपयुक्त है।
- भारत की कुल ग्रामीण आबादी का लगभग 58 प्रतिशत मुख्य रूप से आजीविका के लिये कृषि पर निर्भर है।
- इस तरह अधिक क्षमता के साथ, स्वस्थ और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने से पूरे देश की कृषि संबंधी प्रोफ़ाइल में बदलाव अपेक्षित है तथा देश का स्वास्थ्य सूचकांक भी बदल सकता है।
- वैश्विक स्तर पर विशेषज्ञों का सुझाव है कि भविष्य में कृषि क्षेत्र में जैविक कृषि के विकास की बहुत अधिक संभावनाएँ विद्यमान है। पश्चिमी दुनिया के लिये भी जैविक कृषि का काफी अधिक महत्त्व है। भारत के लिये जैविक कृषि दोबारा अतीत में वापस लौटने और प्राचीन प्रथाओं को दोबारा अपनाने जैसा है।
- सिक्किम वर्ष 2016 में भारत का पहला पूर्ण जैविक राज्य बना। उसे जैविक राज्य का दर्जा अपनी लगभग 75,000 हेक्टेयर कृषि भूमि पर जैविक प्रथाओं एवं जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाने से प्राप्त हुआ है। सिक्किम में रासायनिक कीटनाशकों, उर्वरकों या आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का कोई उपयोग नहीं किया जाता है। सिक्किम में इस मिशन की शुरुआत और सफलता के लिये कई कारक विद्यमान थे, जैसे कि इसके लिये बुनियादी आवश्यकताओं को प्राप्त करना। जैविक कृषि की शुरुआत एवं विकास के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य किसानों को प्रशिक्षित करना है।
- भारत में जैविक कृषि के बारे में अपेक्षाकृत कम जागरूकता है, जबकि अधिकांश देश पर्यावरण संरक्षण के लिये जैविक कृषि को अपना रहे हैं। भारत भी इस दिशा में प्रयासरत हैं।
- इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर मोमेंट (International Federation of Organic Agriculture Moment) के अनुसार, जैविक कृषि को अपनाने वाले देशों की सूची में भारत का नौवाँ स्थान है।
- अधिकांश किसान रसायन-आधारित खेती के हानिकारक प्रभावों को नहीं जानते हैं, कुछ अन्य किसान जो कि इन हानिकारक प्रभावों को समझते हैं लेकिन वे यह नहीं जानते कि इसमें कितना और किस प्रकार आवश्यक परिवर्तन किया जा सकता है।
- कीटनाशकों का व्यापक स्तर पर प्रयोग, मिट्टी का कटाव और अन्य समस्याएँ जलवायु परिवर्तन में योगदान कर रहे हैं। मिट्टी भी रासायनिक पदार्थो के अत्यधिक उपयोग के चलते काफी अम्लीय हो गई है।
- जैविक कृषि को अपनाने के लिये किसानों को प्रशिक्षित करना कई प्रकार से लाभकारी हो सकता है। जैविक कृषि पद्धति को अपनाने से यह कृषि में कीटनाशकों के उपयोग को कम कर देगा जिससे खेतों में काम करने वाले लोगों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव बहुत कम पड़ेगा।
- किसानों को जैविक कृषि के संदर्भ में शिक्षित किया जाना काफी अधिक महत्त्वपूर्ण है। कृषि में जैविक पद्धतियों को अपनाने का किसानों की आय और लाभप्रदता दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिन किसानों ने भी इसे अपनाया है उनकी उत्पादकता में भारी वृद्धि हुई है इसके साथ ही कृषि भूमि की उर्वरता और उत्पादकता भी बढ़ रही है।
- किसानों को जैविक कृषि के लिये तकनीकी स्तर पर प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने और इस क्षेत्र में नवीनतम तकनीकी तथा वैज्ञानिक विकास के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है।
- किसानों द्वारा अपने दैनिक कृषि कार्यों में कार्बनिक उपकरणों और तकनीकों (organic tools and techniques) का कुशल और प्रभावी तरीके से उपयोग किया जाना, उनके प्रशिक्षण का ही एक हिस्सा है। कृषि कार्यों में कार्बनिक तरीकों पर प्रशिक्षण प्रदान कर कई प्रकार से किसानों को सशक्त बनाया जा सकता है। इससे उन्हें अच्छे वित्तीय निर्णय लेने और कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के नए विकल्पों को खोजने में मदद मिलेगी।
- नवीनतम उपकरणों और तकनीकों को अपनाकर किसान भूमि, पानी और अन्य पारिस्थितिक कारकों को सुसंगत बनाकर कृषि उत्पादन और विपणन में सुधार कर अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं ।
- भारत में जैविक कृषि की सफलता काफी हद तक प्रशिक्षण और प्रमाणन पर निर्भर करती है। किसानों को त्वरित गति से रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को कम कर अपनी पारंपरिक कृषि पद्धतियों को अपनाना होगा। किसानों को उर्वर मिट्टी के निर्माण, कीट प्रबंधन, अंतर-फसल और खाद एवं कम्पोस्ट निर्माण जैसे पहलुओं पर प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
- जैविक कृषि पद्धतियों के महत्त्व और लाभ पर नियमित रूप से किसानों को सलाह देना और उनके साथ विचार-विमर्श करना आवश्यक है।
- कृषि उपज की गुणवत्ता की निगरानी करने और किसानों को समय-समय पर सलाह देने के लिये कृषि क्षेत्र में कृषिविदों (Agronomists) को तैनात किया जाना चाहिये।
- भारत सरकार के नेशनल सेंटर फॉर ऑर्गेनिक फार्मिंग (National Centre for Organic Farming) और भागीदारी गारंटी योजना (Participatory Guarantee Scheme) जैसे प्रमाणन कार्यक्रम अनिवार्य रूप से शुरू किये जाने की आवश्यकता है।
- वर्तमान में जैविक कृषि के बारे में जागरूकता सामान्यतया समृद्ध शहरी भारतीयों तक ही सीमित है। वे स्पष्ट रूप से जैविक भोजन के स्वास्थ्य संबंधी लाभों से अवगत हैं और इससे भी अधिक उनके पास इन्हें खरीदने की क्रयशक्ति भी हैं। किसानों को जैविक कृषि के लाभों से अवगत कराकर इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिये और उन्हें भविष्य में इसमें व्याप्त संभावनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिये प्रेरित करना चाहिये।
- पर्यावरण संबंधी लाभ के साथ-साथ स्वच्छ, स्वस्थ, गैर-रासायनिक उपज किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिये लाभदायक है। जैविक कृषि भारतीय कृषि क्षेत्र के विकास के लिये काफी अधिक महत्त्वपूर्ण है।
जैविक कृषि
जैविक कृषि से अभिप्राय कृषि की ऐसी प्रणाली से है, जिसमें रासायनिक खादों एवं कीटनाशक दवाओं का प्रयोग न हो बल्कि उसके स्थान पर जैविक खाद या प्राकृतिक खादों का प्रयोग हो। जैविक कृषि में रासायनिक कीटनाशकों व उवर्रकों का इस्तेमाल करने की बजाय परंपरागत तरीके अपनाकर पर्यावरण के साथ तालमेल बनाया जाता है। सम्पूर्ण विश्व में बढ़ती जनसंख्या के भोजन की आपूर्ति के लिये मानव द्वारा अधिक-से-अधिक उत्पादन हेतु तरह-तरह की रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति ख़राब हो जाती है। साथ ही, वातावरण दूषित होने से मनुष्य के स्वास्थ्य में भी गिरावट आती है। उपरोक्त समस्याओं से निपटने हेतु टिकाऊ खेती के सिद्धांत को अपनाया गया, जो जैविक कृषि के नाम से प्रचलित हुआ।
जैविक खेती से जैव विविधता के संरक्षण व पर्यावरण की रक्षा के मामलें में दीर्घकाल में मदद मिलती है और साथ ही फसल उत्पादन में भी वृद्धि होती है।