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एनपीए से निपटने के लिये सरकार लाएगी अध्यादेश

  • 05 May 2017
  • 3 min read

समाचारों में क्यों?
विदित हो कि केंद्र सरकार ने बैंक लोन डिफॉल्‍टर्स के खिलाफ सख्‍त कदम उठाने की तैयारी कर ली है। हाल ही में सम्पन्न हुए केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में एनपीए (गैर निष्‍पादित संपत्तियों) की समस्‍या से निपटने के लिये बैंकिंग रेगूलेशन एक्‍ट में संशोधन के लिये अध्‍यादेश को मंजूरी दे दी गई है।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में एनपीए की समस्‍या बढ़ती ही जा रही है, जो सरकार के लिये चिंता का विषय है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए 6 लाख करोड़ रुपए के भारी-भरकम आँकड़े पर पहुँच चुका है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • गौरतलब है कि इस अध्‍यादेश के जरिये बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट में बदलाव किया जाएगा। नए अध्‍यादेश से आरबीआई को यह अधिकार मिलेगा कि एनपीए के मुद्दे पर समय-समय पर बैंकों को निर्देश दे सके।
  • राष्ट्रपति द्वारा इस अध्यादेश को मंजूरी मिलने के बाद एनपीए की समस्या से निपटने के लिये हेयरकट (जितनी राशि एक कर्जदार देने में सक्षम, उतना ही स्वीकार किये जाने से संबंधित प्रावधान) जैसा प्रावधान लागू किया जा सकता है।
  • हेयरकट का सीधा मतलब है कि बैंकों को लोन वसूली में समझौता करना पड़ेगा। डिफॉल्टर कर्ज की जितनी भी राशि दे सकता है, बैंकों को उसे लेकर अपने एनपीए पक्ष को संतुलित करना पड़ेगा। अगर ऐसा होता है तो उसका सीधा असर बैंकों के लाभांश पर देखने को मिलेगा।

अध्यादेश से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • दरअसल, जब संसद या विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा होता है तो केंद्र और राज्य सरकार तात्कालिक ज़रूरतों के आधार पर राष्ट्रपति या राज्यपाल की अनुमति से अध्यादेश जारी करती है।
  • अध्यादेश में संसद/विधानसभा द्वारा पारित कानून जैसी शक्तियाँ होती हैं, लेकिन इस अध्यादेश को छह महीने के भीतर संसद या राज्य विधानसभा के अगले सत्र में सदन में पेश करना अनिवार्य होता है।
  • यदि सदन उस विधेयक को पारित कर दे तो यह कानून बन जाता है, जबकि निर्धारित समय में सदन से पारित नहीं होने की स्थिति में अध्यादेश स्वतः समाप्त हो जाता है। लेकिन कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि सरकारें एक ही अध्यादेश को बार-बार जारी करती रही हैं।
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