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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जल्लीकट्टू के आयोजन के लिये अध्यादेश

  • 21 Jan 2017
  • 5 min read

सन्दर्भ

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जल्लीकट्टू पर लगाए प्रतिबन्ध को हटवाने के लिये तमिलनाडु में जारी बंद से जन-जीवन ठहर जाने को मद्देनज़र रखते हुए केंद्र सरकार ने जल्लीकट्टू का आयोजन जल्द सुनिश्चित करने को लेकर राज्य सरकार के अध्यादेश को मंजूरी दे दी है| इस तरह, अब तमिलनाडु में जल्लीकट्टू के आयोजन का रास्ता साफ दिख रहा है|
  • फिलहाल, सरकार ने अध्यादेश को मंज़ूरी के लिये राष्ट्रपति के पास भेज दिया है, इससे पहले केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने जल्लीकट्टू के आयोजन के लिये तमिलनाडु सरकार के मसौदा अध्यादेश को थोड़े-बहुत बदलाव के बाद मंज़ूरी दे दी थी| बाद में मसौदा अध्यादेश को वापस केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजा गया जहाँ मंत्रालय ने उसे मंज़ूरी दे दी|

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • जल्लीकट्टू के आयोजन के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा पिछले वर्ष एक अध्यादेश मसौदा लाया गया था, जिस पर अभी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है, यही वजह है कि केंद्र सरकार अभी इस संबंध में कोई नया अध्यादेश नहीं ला सकती थी| अतः जल्लीकट्टू का आयोजन जल्द सुनिश्चित करने के लिये राज्य सरकार अध्यादेश मसौदा लेकर आई है|
  • दरअसल, तमिलनाडु में जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध को लेकर जारी विरोध-प्रदर्शनों के चलते कामकाज ठप है, साथ ही, हाल-फिलहाल इन विरोध प्रदर्शनों के रुकने की कोई उम्मीद भी नहीं है|
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय, विधि एवं न्याय मंत्रालय और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने तमिलनाडु के इस मसौदा अध्यादेश की समीक्षा की और संशोधन को मंज़ूरी दे दी, जिसमें ‘‘मनोरंजन के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले जानवरों’’ की सूची से बैलों को गैर-अधिसूचित कर दिया जाएगा| इससे यह सुनिश्चित हो जाएगा कि ‘पशु क्रूरता निवारण अधिनियम’ के प्रावधान बैलों पर लागू नहीं होंगे|

क्या तमिलनाडु द्वारा अध्यादेश लाना वैधानिक है?

  • जल्लीकट्टू का आयोजन सुनिश्चित करने के लिये अध्यादेश लाने संबंधी तमिलनाडु सरकार के प्रयासों के संबंध में विधि-विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी पहल संवैधानिक रूप से अवैध हो सकती है| जल्लीकट्टू के मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकार को अध्यादेश की बज़ाय विचार-विमर्श करके इसका समाधान निकालना चाहिये| 
  • गौरतलब है कि किसी विषय पर अध्यादेश तब जारी किया जाता है जब इसकी अत्यंत ज़रूरत होती है और इस पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता होती है| लोकप्रिय जनभावनाएँ बुनियादी कानून के शासन पर हावी हों, यह किसी भी लोकतंत्र के लिये शुभ संकेत नहीं है|

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को एक हफ्ते के लिये टाल दिया

  • विदित हो कि केंद्र सरकार के निवेदन पर सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू को लेकर अपने फैसले को कम से कम एक हफ्ते के लिये टाल दिया है| हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट के इस कदम को लेकर कानूनविदों में अलग-अलग मत हैं|
  • कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार के अनुरोध को न्यायपालिका द्वारा इसलिये मान लिया गया ताकि अध्यादेश प्रख्यापित कराया जा सके, वस्तुतः यह न्यायपालिका की स्वायत्तता का हनन है, वहीं कुछ कानूनीविदों का विचार है कि इससे न्यायपालिका की साख में कोई अन्तर नहीं आएगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने जनभावनाओं को देखते हुए दोनों पक्षों को थोड़ा इंतज़ार करने के लिये कहा है|
  • बहरहाल स्थिति जो भी हो, एक बात तो तय है कि जल्लीकट्टू के मुद्दे ने इस बहस को हवा दे दी है कि लोकप्रिय जनभावनाएँ, मूलभूत कानूनों को किस हद तक प्रभावित कर सकती हैं|
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