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ओपियम पॉपी स्ट्रॉ

  • 09 Apr 2021
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने चिकित्सा उद्देश्यों के लिये उपयोग किये जाने वाले अल्कलॉइड की उपज को बढ़ावा देने हेतु भारत की अफीम फसल से ‘कंसेंट्रेटेड  पॉपी स्ट्रॉ’ (CPS) का उत्पादन शुरू करने और कई देशों को निर्यात करने के लिये निजी क्षेत्रों पर रोक लगाने का निर्णय लिया है।

अल्केलॉइड्स:

  • अल्केलॉइड्स प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले कार्बनिक यौगिकों के विशाल समूह हैं, जो कि नाइट्रोजन परमाणु से युक्त (कुछ मामलों में एमिनो या एमिडो) होते हैं।
  • ये नाइट्रोजन परमाणु इन यौगिकों की क्षारीयता का कारण बनते हैं।
  • सामान्यतः प्रचलित अल्केलॉइड्स में मॉर्फिन, स्ट्राइकिन, क्विनिन, एफेड्रिन और निकोटीन शामिल हैं।
  • अल्केलॉइड्स के औषधीय गुणों में काफी विविधता होती है। मॉर्फिन दर्द से राहत के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला एक शक्तिशाली मादक पदार्थ है, हालाँकि इसके नशे के गुण के कारण इसका सीमित उपयोग किया जाता है।

प्रमुख बिंदु:

पॉपी स्ट्रॉ:

  • अफीम को बीजकोष से निकाले जाने के बाद इसके खसखस ​​को ‘पॉपी स्ट्रॉ’ कहा जाता है।
  • इस ‘पॉपी स्ट्रॉ’ में बहुत कम मात्रा में मॉर्फिन सामग्री होती है और यदि पर्याप्त मात्रा में इसका उपयोग किया जाता है, तो यह अधिक मात्रा में मॉर्फिन का उत्सर्जन कर सकती है।
  • ‘पॉपी स्ट्रॉ’ का भंडारण, बिक्री, उपयोग आदि राज्य सरकारों द्वारा ‘स्टेट नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस रूल्स’ के तहत विनियमित किया जाता है।
  • किसान ‘पॉपी स्ट्रॉ’ को राज्य सरकारों द्वारा लाइसेंस प्राप्त व्यक्तियों को बेचते हैं।
    • अतिरिक्त ​​‘पॉपी स्ट्रॉ’ को वापस खेत में डाल दिया जाता है।
  • ‘पॉपी स्ट्रॉ’ नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDC अधिनियम) के तहत मादक दवाओं में से एक है।
    • इसलिये बिना लाइसेंस या प्राधिकार के किसी भी स्थिति के उल्लंघन में ​​‘पॉपी स्ट्रॉ’ को रखने, बेचने, खरीदने या उपयोग करने वाला कोई भी व्यक्ति NDPS अधिनियम के तहत अभियोजन के लिये उत्तरदायी है।

वर्तमान में अल्केलॉइड का निष्कर्षण:

  • वर्तमान में केवल वित्त मंत्रालय में राजस्व विभाग द्वारा विनियमित सुविधाओं के अंतर्गत भारत अफीम की गोंद से अल्केलॉइड निकालता है।
    • यह किसानों को अफीम की फली को चीरकर इसका गोंद निकालकर सरकारी कारखानों को बेचने के कार्य की अनुमति देता है।
  • मंत्रालय ने अब नई तकनीकों पर कार्य करने का निर्णय लिया है, दो निजी फर्मों द्वारा परीक्षण खेती के बाद ‘कंसेंट्रेटेड पॉपी स्ट्रॉ’ (CPS) का उपयोग करके अल्केलॉइड का उच्च निष्कर्षण दिखाया गया है। इस प्रकार सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के उपयोग पर विचार कर रही है।

साझेदारी मॉडल:

  • अफीम के ‘पॉपी’ से दो प्रकार के ‘नारकोटिक रॉ मटेरियल’ (NRM) का उत्पादन किया जा सकता है - अफीम गोंद और ‘कंसेंट्रेटेड पॉपी स्ट्रॉ’ (CPS)।
  • भारत में केवल अफीम के गोंद का उत्पादन किया जाता है। अब भारत सरकार ने निर्णय लिया है कि भारत में CPS उत्पादन शुरू किया जाना चाहिये।
  • विभिन्न हितधारक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) सहित एक उपयुक्त मॉडल तैयार करेंगे, निजी निवेश को सुविधाजनक बनाने के लिये नियमों और कानूनों में आवश्यक बदलावों की सलाह देंगे और फसल एवं अंतिम उत्पाद की सुरक्षा के लिये सुरक्षा उपायों की सिफारिश करेंगे।
  • न्यायिक मुकदमों का सामना कर रही फर्मों को अपने परिसरों में थोक रूप से अल्केलॉइड बनाने के लिये राज्य सरकारों से प्रासंगिक लाइसेंस प्राप्त करने के मामले में कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ता है, इस मुद्दे को हल करना होगा।
  • परीक्षण के निष्कर्षों के अनुसार, कुछ CPS किस्मों के आयातित बीजों ने भारतीय क्षेत्रों में प्रभावी रूप से काम किया और उनके ‘नारकोटिक रॉ मटेरियल’ की उपज वर्तमान में उपयोग किये गए आयातित बीजों से बहुत अधिक थी।
  • कुछ फर्मों ने हरितगृह पर्यावरण के अंतर्गत ‘हाइड्रोपोनिक’ और ‘एयरोपोनिक’ तरीकों से भी CPS की खेती की।
    • हाइड्रोपोनिक्स और एयरोपोनिक्स दोनों सतत् जल संरक्षण कृषि के तरीके हैं, ये केवल उन माध्यमों से भिन्न होते हैं जिनका उपयोग पौधों के विकास में किया जाता है।

इस कदम का महत्त्व:

  • वर्तमान अफीम फसल में CPS की अपेक्षा अफीम का गोंद अधिक मात्रा में पाया गया, यदि CPS किस्मों का उपयोग एक इनडोर ग्रीनहाउस वातावरण में किया जाता है तो एक वर्ष में दो या तीन फसल चक्रों का होना संभव है ।
  • भारत की अफीम फसल का क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों से लगातार कम हो रहा है और CPS निष्कर्षण विधि से औषधीय उपयोगों हेतु कोडीन (अफीम से निकाले गए) जैसे उत्पादों के आयात पर सामयिक निर्भरता में कटौती करने में मदद मिलेगी।

भारत में अफीम की खेती:

  • स्वतंत्रता के बाद अफीम की कृषि और इसके प्रसंस्करण क्षेत्र पर नियंत्रण अप्रैल 1950 से केंद्र सरकार का उत्तरदायित्व बन गया।
  • वर्तमान में नारकोटिक्स आयुक्त द्वारा अधीनस्थों के साथ सभी शक्तियों का उपयोग करते हुए और अफीम की खेती तथा इसके उत्पादन के अधीक्षण से संबंधित सभी कार्यों को किया जाता है।
    • आयुक्त इस शक्ति को ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985’ और ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस रूल्स, 1985’ से प्राप्त करता है।
    • नारकोटिक्स आयुक्त कुछ मादक और नशीले पदार्थों के निर्माण के लिये लाइसेंस जारी करने के साथ  मादक पदार्थों के निर्यात और आयात के लिये परमिट तथा इनके अनुमोदन की अनुमति देता है।
  • भारत सरकार हर वर्ष अफीम पोस्ता की खेती के लिये लाइसेंसिंग नीति की घोषणा करती है, और लाइसेंस के नवीनीकरण या नवीनीकरण हेतु न्यूनतम अर्हकारी पैदावार को निर्धारित करते हुए अधिकतम क्षेत्र जिस पर एक व्यक्तिगत कृषक द्वारा खेती की जा सकती है तथा प्राकृतिक कारणों की वजह से होनी वाली क्षतिपूर्ति के लिये एक कृषक को पहुँचाए जाने वाले अधिकतम लाभ आदि का निर्धारण करती है।
  • अफीम पोस्ता ​​की खेती केवल ऐसे भू-भागों में की जा सकती है, जो सरकार द्वारा अधिसूचित हैं।
    • वर्तमान में ये भू-भाग तीन राज्यों तक ही सीमित हैं- मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश।
    • अफीम की खेती के कुल क्षेत्रफल का लगभग 80% हिस्सा मध्य प्रदेश के मंदसौर ज़िले और राजस्थान के चित्तौड़गढ़ और झालावाड़ ज़िलों में है।
  • निर्यात हेतु अफीम की खेती करने के लिये भारत संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुमति प्राप्त कुछ देशों में से एक है।

उपयोग:

  • अफीम का चिकित्सीय महत्त्व अद्वितीय है और चिकित्सा जगत में अपरिहार्य है।
  • इसका उपयोग होम्योपैथी और आयुर्वेद या स्वदेशी दवाओं के यूनानी प्रणालियों में भी किया जाता है।
  • अफीम जिसका उपयोग‘एनाल्जेसिक’ (Analgesics), एंटी-टूसिव (Anti-Tussive), एंटी स्पस्मोडिक (Anti spasmodic) और खाद्य बीज-तेल के स्रोत के रूप में किया जाता है, एक औषधीय जड़ी बूटी के रूप में भी कार्य करती है।

स्रोत- द हिंदू

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