ओपेक+ द्वारा तेल उत्पादन में कटौती | 07 Oct 2022
प्रिलिम्स के लिये:पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन और उसके सहयोगी, क्रूड ऑयल। मेन्स के लिये:ओपेक+ द्वारा तेल उत्पादन में कटौती और इसका प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन और उसके सहयोगियों (ओपेक+) ने तेल उत्पादन में 2 मिलियन बैरल प्रतिदिन (bpd) की कटौती करने का निर्णय लिया है।
- कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से यह सबसे बड़ी कटौती है।
- मई 2022 में अमेरिका ने नो ऑयल प्रोडक्शन एंड एक्सपोर्टिंग कार्टेल (NOPEC) बिल पारित किया, जिसका उद्देश्य अमेरिकी उपभोक्ताओं और व्यवसायों को तेल की कीमतों में होने वाले परिवर्तन से बचाना है।
उत्पादन में कमी का कारण:
- यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद तेल की कीमतें काफी बढ़ गईं और पिछले कुछ महीनों से इसमें कमी आनी शुरू हुई है। यूरोप में मंदी की आशंका और चीन में लॉकडाउन उपायों के कारण सितंबर, 2022 में इनकी कीमत तेजी से गिरकर 90 अमेरिकी डॉलर से कम हो गई।
- इस कटौती से कीमतों में वृद्धि होगी जो मध्य-पूर्वी उन सदस्य देशों के लिये बेहद फायदेमंद होगा, जिनकी तरफ यूरोप ने यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से रूस के खिलाफ प्रतिबंध के कारण तेल के लिये रुख किया है।
- ओपेक+ सदस्य इस बात से चिंतित हैं कि लड़खड़ाती वैश्विक अर्थव्यवस्था, तेल की मांग को कम कर देगी और इस कटौती को मुनाफे को बनाए रखने के तरीके के रूप में देखा जा रहा है।
- यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के साथ शुरू हुई तेल की कीमतों में वृद्धि, ओपेक के संस्थापक सदस्यों में से एक सऊदी अरब को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनाने में सहायक है।
- यह संभव है कि रूस ओपेक को प्रभावित कर सकता है, ताकि पश्चिम के लिये रूस पर ऊर्जा प्रतिबंधों का विस्तार करना अधिक महँगा साबित हो सके।
प्रभाव:
- यूरोपियन देशों पर प्रभाव:
- हाल ही में यूरोपीय संघ ने रूस से तेल निर्यात पर मूल्य सीमा लागू करने की अपनी योजना की घोषणा की थी।
- योजना के तहत देशों को केवल समुद्र के माध्यम से परिवहन किये गए रूसी तेल और पेट्रोलियम उत्पादों को खरीदने की अनुमति होगी जो मूल्य सीमा पर या उससे नीचे बेचे जाते हैं।
- हालाँकि आपूर्ति को कम करने के हालिया निर्णय से वैश्विक तेल की कीमतों में उछाल आने की संभावना है, जिससे रूस को अपने कच्चे तेल के निर्यात से महत्त्वपूर्ण राजस्व का लक्ष्य जारी रखने में मदद मिलेगी।
- संयुक्त राज्य पर प्रभाव:
- संगठन से बार-बार तेल उत्पादन बढ़ाने की मांग करने के कारण यह कदम अमेरिका के लिये बेहद हानिकारक होने की संभावना हैै।
- कटौती में कमी और बाद में तेल की कीमतों में वृद्धि विशेष रूप से अमेरिका के लिये खतरनाक हो सकते हैं, जो नवंबर 2022 में मध्यावधि चुनावों से पहले मुद्रास्फीति दर को कम करने की कोशिश कर रहा है।
- भारत पर प्रभाव:
- भारत अपनी कच्चे तेल की खपत का लगभग 85% आयात करता है, कीमतों में वृद्धि के कारण तेल आयात बिल बढ़ेगा। आयात बिल बढ़ने से न केवल मुद्रास्फीति बढ़ेगी और चालू खाता घाटा (CAD) एवं राजकोषीय घाटा बढ़ेगा, बल्कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमज़ोर होगा तथा शेयर बाज़ार भी प्रभावित होगा।
- निवेश सूचना एवं क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (ICRA) के अनुसार, भारतीय कच्चे तेल के बास्केट की कीमत में प्रत्येक 10 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि के लिये CAD 14-15 बिलियन डॉलर या जीडीपी का 0.4% बढ़ सकता है।
- भारत अपनी कच्चे तेल की खपत का लगभग 85% आयात करता है, कीमतों में वृद्धि के कारण तेल आयात बिल बढ़ेगा। आयात बिल बढ़ने से न केवल मुद्रास्फीति बढ़ेगी और चालू खाता घाटा (CAD) एवं राजकोषीय घाटा बढ़ेगा, बल्कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमज़ोर होगा तथा शेयर बाज़ार भी प्रभावित होगा।
OPEC+/ओपेक+:
- संस्थापक सदस्यों ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला द्वारा वर्ष 1960 में स्थापित, ओपेक/OPEC ने तब से काफी विस्तार किया है और अब इसमें 13 सदस्य राज्य हैं।
- ये सदस्य देश हैं- अल्जीरिया, अंगोला, कांगो, इक्वेटोरियल गिनी, गैबॉन, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात एवं वेनेज़ुएला।
- कतर ने 1 जनवरी, 2019 को इसकी सदस्यता छोड़ दी।
- अन्य 10 संबद्ध प्रमुख तेल उत्पादक देशों के साथ ओपेक को ओपेक+ के रूप में जाना जाता है।
- ओपेक+ देशों में 13 ओपेक सदस्य देश के साथ अज़रबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कज़ाखस्तान, मलेशिया, मेंक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान शामिल हैं।
- इस संगठन का उद्देश्य अपने सदस्य देशों की पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकीकरण करना तथा उपभोक्ता को पेट्रोलियम की कुशल, आर्थिक व नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये तेल बाज़ारों का स्थिरीकरण सुनिश्चित करना है।
- पहले इसे पश्चिमी प्रभुत्व वाली बहुराष्ट्रीय तेल कंपनियों द्वारा नियंत्रित किया जाता था जिन्हें "सेवन सिस्टर्स" के रूप में जाना जाता था, ओपेक ने वैश्विक पेट्रोलियम बाज़ार पर तेल उत्पादक देशों को अधिक तरजीह देने की मांग की।
- वर्ष 2018 के अनुमानों के अनुसार, वे दुनिया के कच्चे तेल का लगभग 40% और दुनिया के तेल भंडार का 80% हिस्सा रखते हैं।
- वे आमतौर पर यह निर्धारित करने के लिये हर महीने मिलते हैं कि सदस्य देश कितने तेल का उत्पादन करेंगे।
- हालाँकि कई लोगों का आरोप है कि ओपेक एक कार्टेल की तरह व्यवहार करता है, जो तेल की आपूर्ति का निर्धारण करता है और विश्व बाज़ार में इसकी कीमत को प्रभावित करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. वेनेज़ुएला के अलावा दक्षिण अमेरिका से निम्नलिखित में से कौन ओपेक का सदस्य है? (2009) (a) अर्जेंटीना उत्तर: (c) |