हाथ से मैला ढोने वालों से संबंधित आधिकारिक रिपोर्ट | 19 Sep 2018
चर्चा में क्यों?
स्वच्छता श्रमिकों के कल्याण के लिये संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित वैधानिक निकाय, सफाई कर्मचारियों के राष्ट्रीय आयोग (NCSK) द्वारा एकत्रित आँकड़ों के अनुसार, देश भर में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय, औसत पाँच दिनों में एक व्यक्ति की मौत हुई है।
प्रमुख बिंदु
- यह आँकड़ा, जो अख़बार की रिपोर्टों और कुछ राज्य सरकारों द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों पर आधारित है, सीवर और सेप्टिक टैंक क्लीनर की मौतों के लिये ज़िम्मेदार पहला ऐसा आधिकारिक प्रयास है।
- NCSK के अनुसार, जनवरी 2017 के बाद से हाथ से मैला ढोने वाले खतरनाक कार्यों में नियोजित 123 लोगों ने काम पर रहते हुए अपनी जान गवाँ दी। पिछले एक हफ्ते में अकेले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कुल छह मौतें देखी गई हैं। हालाँकि, इस अभ्यास में शामिल अधिकारियों ने स्वीकार किया कि आँकड़ों की कमी को देखते हुए भी यह संख्या सकल अनुमान से अधिक हो सकती है।
- सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई में नियोजित लोगों की कोई निश्चित संख्या उपलब्ध नहीं है। आँकड़ों को संकलित करने के सभी पिछले और जारी अभ्यासों को सूखे शौचालयों, खुली नालियों और गाँवों में एकल गड्ढे वाले शौचालयों से मानव उत्सर्जन को हटाने वालों के लिये लेखांकन तक ही सीमित किया गया है।
- मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में ज़हरीले सीवरेज सिस्टम में प्रायः प्रवेश करने के घातक कार्य को शामिल करने वाले अधिक खतरनाक रूपों को आधिकारिक रूप से इसमें दर्ज नहीं किया गया है। यह इसके बावजूद है कि भारत में 1993 के अधिनियम के तहत हाथ से सफाई करने को गैरकानूनी घोषित किया गया था, उसे 2013 में संशोधित किया गया और सीवर तथा सेप्टिक टैंक की सफाई को भी इसमें शामिल किया गया।
- NCSK के पास उपलब्ध आँकड़ों में 28 राज्यों और सात केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 13 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में हुई मौतों की सूचना है।
- यह आंकड़े दर्ज किये गए उन उदाहरणों से स्पष्ट है जो हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और गुजरात में सर्वाधिक मामलों की संख्या के आधार पर इसी क्रम में हैं। दूसरी तरफ, NCSK के आँकड़े महाराष्ट्र में इस अवधि में सिर्फ दो मौतें को दर्शाते हैं।
- सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) 2011 के अनुसार, अकेले महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में 65,181 परिवार हैं जिनमें कम-से-कम एक व्यक्ति हाथ से मैला ढोने के कार्य में नियोजित है, जो कि देश में सर्वाधिक है और ग्रामीण भारत के कुल 1.82 लाख परिवार जो इस कार्य में लगे हैं, का 35 प्रतिशत है।
- SECC डेटा में भारत के शहरी क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया है जहाँ सीवर की सफाई अधिक बार होती है। SECC के अनुसार, मध्य प्रदेश अपने गाँवों में 23,105 की संख्या के साथ हाथ से मैला ढोने वालों की सर्वाधिक संख्या वाला दूसरा राज्य है लेकिन यह NCSK के आँकड़ों में कोई मौत नहीं दर्शाता है।
- NCSK के आँकड़ों के अनुसार, हाथ से मैला ढोने वालों की मौतों के मामले में कानून के तहत अनिवार्य 10 लाख रुपए का मुआवज़ा 123 मामलों में से केवल 70 मामलों में ही चुकाया गया है।
- सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के नेतृत्व में अंतर-मंत्रालयी टास्क फोर्स द्वारा किये जा रहे एक अभ्यास में हाथ से मैला ढोने वाले कार्यों में शामिल लोगों की गणना में आँकड़ों की कमी स्पष्ट देखी जा सकती है । यह गणना 18 राज्यों में केवल 170 ज़िलों तक ही सीमित है। पुनः यह शहरी क्षेत्रों में सीवर साफ करने वालों के साथ-साथ हाथ से मैला ढोने वालों के किसी भी रूप को पूरी तरह से शामिल नहीं करती है।
- गणना प्रक्रिया ज़िलों में सर्वेक्षण शिविर लगाकर केंद्र सरकार की टीमों द्वारा आयोजित की गई, जहाँ हाथ से मैला ढोने में लगे लोग स्व-घोषणा प्रक्रिया के तहत अपना नाम दर्ज करा सकते थे। इसके बाद, राज्यों को पहचान की गई संख्या की पुष्टि करना था।
- हालाँकि जून के अंत तक इस अभ्यास को समाप्त किया जाना था, अधिकारियों ने पुष्टि की कि इसमें इसलिये देर हुई क्योंकि केंद्र सरकार की टीमों और राज्य सरकारों ने अब तक लगभग 50,000 लोगों में से केवल 20,000 लोगों को ही हाथ से मैला ढोने वाले लोगों के रूप में स्वीकार किया है।
- सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA) द्वारा तैयार किये गए आँकड़ों और पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार, इस कार्य में लगे लोगों की मौतों की वास्तविक संख्या जनवरी 2017 से अब तक लगभग 300 है।
क्या है हाथ से मैला ढोना (मैनुअल स्केवेंजिंग)?
- किसी व्यक्ति द्वारा शुष्क शौचालयों या सीवर से मानवीय अपशिष्ट (मल-मूत्र) को हाथ से साफ करने, सिर पर रखकर ले जाने, उसका निस्तारण करने या किसी भी प्रकार की शारीरिक सहायता से उसे संभालने को हाथ से मैला ढोना या मैनुअल स्केवेंजिंग कहते हैं।
- इस प्रक्रिया में अक्सर बाल्टी, झाड़ू और टोकरी जैसे सबसे बुनियादी उपकरणों का उपयोग किया जाता है। इस कुप्रथा का संबंध भारत की जाति व्यवस्था से भी है जहाँ तथाकथित निचली जातियों द्वारा इस काम को करने की उम्मीद की जाती थी।