क्या संरक्षण राशि को कर के दायरे में लाया जाना चाहिये? | 09 Dec 2017
चर्चा में क्यों?
क्या माता-पिता द्वारा अपने छोटे बच्चे के कल्याण के लिये खर्च की गई संरक्षण राशि को आयकर से छूट दी जानी चाहिये अथवा नहीं? यह सवाल सरकार के लिये परेशानी की वज़ह बना हुआ है। इसका कारण यह है कि पिछले कुछ समय से सरकार काले धन और कर चोरी की समस्या को रोकने के तरीके तलाश रही है। ऐसे में ऐसा कोई भी प्रश्न भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
मुद्दा क्या है?
- यह मामला भारतीय कानून आयोग के सामने उस समय आया, जब पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा आयकर अधिनियम की धारा 64 (1ए) 1961 के अंतर्गत माता-पिता द्वारा अपने छोटे बच्चे/बच्ची के कल्याण के लिये खर्च की गई संरक्षण राशि को आयकर के दायरे से बाहर रखने हेतु संशोधन को वांछनीय करार दिया गया।
- पायल मेहता बनाम संजय सरीन (2016) मामले में उच्च न्यायालय के समक्ष पेश की गई याचिका में इस बात पर बल दिया गया कि माता-पिता द्वारा नाबालिग बच्चे के नाम पर रखी गई संरक्षण राशि पर लगने वाले ब्याज पर टैक्स नहीं लिया जाना चाहिये।
- ऐसी आय की माता-पिता के टैक्स में शामिल आय के रूप में गणना नहीं की जानी चाहिये।
आयकर अधिनियम के अनुसार
- आयकर अधिनियम की धारा 64 (1ए) में किसी भी व्यक्ति की कुल आय की गणना किये जाना एक प्रावधान निहित किया गया है। इसके अंतर्गत सभी प्रकार की आय को (व्यक्ति के छोटे बच्चे द्वारा उत्पन्न आय के साथ-साथ उसके लिये संरक्षित धनराशि को भी) शामिल किया जाता है।
- इस अधिनियम में शामिल कर प्रावधान का उद्देश्य टैक्स चोरी को रोकने के लिये व्यवस्था में अंतर्निहित कमियों को समाप्त करना है, क्योंकि इससे राजस्व का भारी नुकसान या रिसाव होने की संभावना रहती है।
न्यायालय द्वारा प्रस्तुत तर्क
- हालाँकि, इस संबंध में उच्च न्यायालय द्वारा ज़ोर देकर यह कहा गया कि इस तरह की छूट की व्यवस्था की जानी चाहिये।
- ऐसे नाबालिग जिनके नाम पर माता-पिता द्वारा कोई व्यवसाय आरंभ किया जाता है अथवा ऐसे बच्चे जिन्हें उन्नत उपहार दिये जाते हैं, की तुलना में सामान्य बच्चे के रखरखाव की परिस्थितियाँ अलग होती हैं।
- अदालत ने कहा कि कर स्कैनर से एक ही माता-पिता के साथ रहने वाले एक छोटे बच्चे के कल्याण के लिए भुगतान किये गए ऐसे पैसे का बहिष्कार उल्लेखनीय है। उच्च न्यायालय ने सुझाव दिया कि विधायिका एक प्रावधान रिकॉर्डिंग को 1 9 61 में इस तरह की छूट में जोड़ती है।
- न्यायालय के अनुसार, एकल अभिभावक के साथ रह रहे बच्चे की संरक्षण राशि के संदर्भ में तो यह और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- अत: इसके संबंध में विधायिका को आयकर अधिनियम 1961 में छूट के प्रवधान को शामिल करने पर विचार करना चाहिये।
कानून आयोग के अनुसार
- हालाँकि कानून आयोग ने अपनी 265वीं रिपोर्ट (Prospects of Exempting Income Arising Out Of The Maintenance Money of Minor) में न्यायालय द्वारा प्रस्तुत इस सुझाव को स्थान नहीं दिया।
- इसके अनुसार, प्रत्येक बच्चे के रखरखाव की प्रकृति अलग-अलग होती है। संरक्षण राशि के संबंध में न्यायालय द्वारा दिया गया वक्तव्य किसी भी बच्चे के माता-पिता को किसी भी प्रकार का कोई अधिकार नहीं देता है।
- साथ ही किसी बच्चे की निगरानी और रखरखाव की राशि के निर्धारण का मुद्दा अस्थायी प्रकृति का होता है। इसके अतिरिक्त सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस तरह की कोई भी छूट कल्याण में भागीदार हो अथवा न हो, परन्तु टैक्स चोरी और कालेधन को बढ़ावा अवश्य प्रदान करेगी।
निष्कर्ष
जिस प्रकार से कालेधन और कर चोरी को रोकने की दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि संरक्षण राशि को कर के दायरे में शामिल किये जाने के मुद्दे पर बहुत गंभीरता से विचार किये जाने की आवश्यकता है। इसका कारण यह है कि यह मुद्दा केवल कर चोरी नहीं है बल्कि यह आम आदमी के समावेशी विकास से भी संबद्ध है। यदि एक आम आदमी अपने छोटे बच्चे के बेहतर भविष्य के लिये कुछ पैसा एकत्रित करता है तो उस पर अधिरोपित कर उसकी भविष्य के लिये धन संरक्षित रखने की योजना पर पानी फेर देगा। परंतु, यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो इससे कर चोरी में वृद्धि होगी। कर चोरी अथवा ऐसी हरकत करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिये अपने कालेधन को सुरक्षित रखना बहुत आसान हो जाएगा। स्पष्ट रूप से इस विषय में जल्दबाज़ी न करते हुए बहुत गंभीरता से विचार- विर्मश करके ही कोई निर्णय लिया जाना चाहिये।