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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बढ़ती तेल कीमतें कर सकती हैं भारत की समष्टि स्थिरता को प्रभावित

  • 09 May 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों ?
अप्रैल माह के प्रारंभ से ही कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें $70 प्रति बैरल (ब्रेंट) से भी अधिक पर बनी हुई हैं। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें से वैश्विक अर्थव्यवस्था में व्यापक आधार पर सुधार, दिसंबर 2018 तक ओपेक देशों द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन पर प्रतिबंधों का विस्तार, अमेरिका द्वारा ईरान पर प्रतिबंधों का अंदेशा, अन्य तेल उत्पादक देशों में भू-राजनीतिक तनाव जैसे कारण प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • अमेरिकी शैल तेल अभी भी वैश्विक तेल भंडारण को बढ़ाने में अपेक्षित योगदान नहीं दे पाया है।
  • आईएमएफ के अप्रैल 2018 के ‘वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलुक’ में भी कच्चे तेल की कीमतों में पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष औसतन 18 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना व्यक्त की गई है।
  • विश्व बैंक के अप्रैल 2018 के ‘कमोडिटी मार्केट आउटलुक’ के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतों में इस वर्ष औसतन 22.6 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। 
  • ब्रेंट कच्चे तेल की कीमतें तो अप्रैल के दूसरे सप्ताह में ही अपेक्षित औसत स्तर से ऊपर जा चुकी हैं।
  • हाल में हुई तेल की कीमतों में वृद्धि जहाँ तेल निर्यातकों के लिये अनुकूल साबित हो रही है, वहीं भारत जैसे आयातक देशों के लिये यह परेशानी का सबब बन सकती है।
  • यदि कच्चे तेल की कीमतें स्थायी आधार पर अधिक बनी रहती हैं, तो भारत के लिये समष्टि स्थिरता को बनाए रखना मुश्किल होगा।
  • क्योंकि, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि का भारत के मुद्रास्फीति, राजकोषीय घाटा, विनिमय दर आदि  समष्टि स्तरीय बुनियादी तत्त्वों पर व्यापक असर होता है, अतः नीति निर्माताओं को इसके नकारात्मक असर को बेअसर करने हेतु कई मोर्चों पर सजग रहने की आवश्यकता है।
  • वर्तमान में , भारत में मुद्रास्फीति में चार कारणों से वृद्धि हो सकती है । ये हैं : कृषि उत्पादों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्यों (एमएसपी) में संभावित वृद्धि, राज्य सरकारों द्वारा हाउस रेंट अलाउंस  (एचआरए) में बढ़ोतरी का कार्यान्वयन, केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर 2018-19 के वित्तीय लक्ष्यों के पूरा न हो पाने की संभावना, कच्चे तेल के वैश्विक स्तर पर दामों में वृद्धि।
  • पहले तीन कारण घरेलू परिस्थितियों के अनुसार नियंत्रित होते हैं, जो प्राधिकारियों को मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने हेतु कुछ स्वतंत्रता प्रदान करते हैं।
  • लेकिन, कच्चे तेल के दामों में उतार-चढ़ाव सरकार/आरबीआई के नियंत्रण से पूरी तरह से बाहर होते हैं। 
  • चावल और गेहूँ जैसी प्रमुख फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) लागत से लगभग डेढ़ गुना अधिक है। अतः इन फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि करने का कोई अनिवार्य कारण प्रतीत  नहीं होता।
  • आरबीआई के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा एचआरए में वृद्धि के मुद्रास्फीति पर पड़ने वाले प्रभाव को सांख्यिकीय आँकड़ों के आधार पर देखा जा सकता है।  केंद्र के इस कदम द्वारा मुद्रास्फीति में 35 आधार अंकों (basis points) की मामूली वृद्धि हुई है, जिसके दिसंबर 2018 तक वापस नियंत्रण में आ जाने की उम्मीद व्यक्त की जा रही है। लेकिन, यदि सभी राज्य सरकारें 2018 में एचआरए में एक साथ वृद्धि कर देती हैं, तो यह प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से 100 आधार अंकों का होगा।
  • कोर सीपीआई मुद्रास्फीति भारत में पहले से ही अधिक है। इनपुट लागत लगातार बढ़ रही है। साथ ही शीर्ष मुद्रास्फीति में तेज़ी से बढ़ोतरी हो सकती है और यह तेल कीमतों में वृद्धि के कारण अपेक्षित स्तर से ऊपर जा सकती है। 
  • सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में बाहरी चालू खाता घाटा (current account deficit) में 2017 -18 में 2 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। जबकि 2016-17 में यह बढ़ोतरी 1 प्रतिशत से भी कम थी। 
  • यदि 2018-19 में कच्चे तेल के दाम अधिक ही बने रहते हैं तो चालू खाता घाटा में और अधिक वृद्धि हो सकती है।
  • रुपया पहले से ही दबाव में बना हुआ है और चालू खाता घाटा में वृद्धि की वजह से इसके 2018-19 में भी दबाव में बने रहने की संभावना है।

आगे की राह 

  • जब कच्चे तेल के दामों में तेज़ गिरावट हुई थी, तो सरकार ने इसका सारा लाभ उपभोक्ताओं को हस्तांतरित नहीं किया था और पेट्रोलियम उत्पादों पर कई कर या शुल्क आरोपित कर दिये थे। उस समय यह माना जा रहा था कि जब तेल के दामों में पुनः वृद्धि होगी, तो सरकार इन करों या शुल्कों को कम कर देगी।
  • यदि $70 प्रति बैरल की कीमत पर सरकार के राजस्व लक्ष्यों की पूर्ति हो पा रही है, तो तेल कीमतों में इस स्तर से अधिक वृद्धि होने के दशा में सरकार को  तेल पर आरोपित करों में कटौती करके कीमतों को स्थिर रखने का प्रयास करना चाहिये।
  • पेट्रोलियम उत्पादों पर करों का निर्धारण इस तरह से किया जाना चाहिये कि उपभोक्ताओं के हितों को भी हानि न पहुँचे और सरकार के राजस्व लक्ष्यों पर भी नकारात्मक असर न पड़े।
  • सरकार को इस संबंध में त्वरित कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि ज़्यादातर समष्टि स्तरीय आर्थिक मानक दाँव पर लगे हुए हैं। 
  • पेट्रोल/डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाना, पेट्रोल/डीज़ल पर करों का अधोगामी (downward) समायोजन जैसे कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। ऐसा न कर पाने की स्थिति में देश की समष्टि स्तरीय स्थिरता खतरे में पड़ सकती है।
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