अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023 | 05 Aug 2023
प्रिलिम्स के लिये:अपतटीय खनन क्षेत्र, MMDR [खान और खनिज (विकास और विनियमन)] अधिनियम, विशेष आर्थिक क्षेत्र मेन्स के लिये:अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023 |
चर्चा में क्यों?
राज्यसभा ने हाल ही में अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023 पारित किया, जिसका उद्देश्य भारत के अपतटीय खनन क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार करना है।
- यह संशोधन मौजूदा अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 2002 को संशोधित करने का प्रयास करता है, ताकि अपतटीय क्षेत्रों में परिचालन अधिकार आवंटित करने की विधि के रूप में नीलामी को सक्षम किया जा सके।
संशोधन विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:
- नीलामी व्यवस्था का परिचय:
- दो प्रकार के परिचालन अधिकार, उत्पादन पट्टा और समग्र लाइसेंस, विशेष रूप से निजी क्षेत्र को प्रतिस्पर्द्धी बोली द्वारा नीलामी के माध्यम से दिये जाएंगे।
- केंद्र सरकार द्वारा आरक्षित खनिज क्षेत्रों में सार्वजनिक उपक्रमों को संचलित करने के अधिकार दिये जाएंगे। सार्वजनिक उपक्रमों को मूलतः परमाणु खनिजों के परिचालन अधिकार भी प्रदान किये जाएंगे।
- परमाणु खनिजों में मुख्य रूप से यूरेनियम, थोरियम, दुर्लभ धातुएँ जैसे खनिज शामिल हैं। निओबियम, टैंटलम, लिथियम, बेरिलियम, टाइटेनियम, ज़िरकोनियम और दुर्लभ मृदा तत्त्व (REE) के साथ-साथ समुद्र तट के रेत खनिज।
- उत्पादन पट्टे (Production Lease) की निर्धारित अवधि:
- उत्पादन पट्टों के नवीनीकरण के प्रावधान को हटा दिया गया है।
- उत्पादन पट्टे की अवधि, खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) के तहत 50 वर्ष निर्धारित की गई है।
- क्षेत्र अधिग्रहण सीमा:
- संपूर्ण अपतटीय क्षेत्र जिसे एक संस्था (One Entity) अधिग्रहीत कर सकती है, को पृथक रखा गया है।
- एक या अधिक परिचालन अधिकारों के तहत किसी भी खनिज या संबंधित खनिजों के निर्धारित समूह के लिये अधिकतम अधिग्रहण क्षेत्र 45 मिनट अक्षांश और 45 मिनट देशांतर तक सीमित है।
- गैर-व्यपगत अपतटीय क्षेत्र खनिज ट्रस्ट:
- अन्वेषण, आपदा राहत, अनुसंधान और प्रभावित पक्षों हेतु लाभ सुनिश्चित करने के लिये एक गैर-व्यपगत अपतटीय क्षेत्र खनिज ट्रस्ट की स्थापना की जाएगी।
- ट्रस्ट को खनिज उत्पादन पर अतिरिक्त लेवी द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा, जो केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित दर के साथ रॉयल्टी के एक-तिहाई से अधिक नहीं होगी।
- व्यवसाय में आसानी तथा समय-सीमा:
- कम्पोज़िट लाइसेंस या उत्पादन पट्टे के आसान हस्तांतरण के प्रावधान।
- उत्पादन की समय पर शुरुआत सुनिश्चित करने के लिये उत्पादन पट्टे के निष्पादन के बाद उत्पादन शुरू करने के साथ प्रेषण के लिये समय-सीमा।
- राजस्व:
- अपतटीय क्षेत्रों में खनिज उत्पादन से रॉयल्टी, नीलामी प्रीमियम तथा अन्य राजस्व भारत सरकार को प्राप्त होंगे।
ऐसे संशोधन विधेयक की आवश्यकता क्यों?
- अपतटीय क्षेत्रों में गतिविधि का अभाव:
- अपतटीय क्षेत्र खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 2002 के अधिनियमन के बावजूद अपतटीय क्षेत्रों में कोई खनन गतिविधि नहीं हुई है।
- यह भारत के लिये उपलब्ध विशाल समुद्री संसाधनों के प्रति रुचि अथवा इसके प्रभावी उपयोग की कमी को दर्शाता है।
- संशोधन विधेयक अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने के साथ इन अपतटीय क्षेत्रों में अन्वेषण तथा खनन को प्रोत्साहित करने का प्रयास करता है।
- विवेक एवं पारदर्शिता का अभाव:
- वर्तमान अधिनियम स्वविवेक की समस्या से ग्रस्त है, साथ ही अपतटीय क्षेत्रों में खनन के परिचालन अधिकारों के आवंटन में पारदर्शिता का अभाव है।
- संशोधन विधेयक का उद्देश्य तटवर्ती क्षेत्रों के लिये MMDR अधिनियम में सफल संशोधनों से प्रेरित होकर परिचालन अधिकार आवंटित करने हेतु एक पारदर्शी नीलामी तंत्र शुरू करना है।
- समुद्री संसाधनों का दोहन:
- भारत एक अद्वितीय समुद्री स्थिति रखता है। इसमें 20 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक का विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) है जो पुनर्प्राप्त करने योग्य संसाधनों से समृद्ध है। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) का अनुमान है कि विभिन्न अपतटीय क्षेत्रों में चूना मिट्टी, निर्माण हेतु रेत, भारी खनिज, फॉस्फोराइट एवं पॉलीमेटेलिक फेरोमैंगनीज़ नोड्यूल और क्रस्ट के महत्त्वपूर्ण भंडार हैं।
- हालाँकि इन संसाधनों की क्षमता काफी हद तक अप्रयुक्त है। संशोधन विधेयक सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों की भागीदारी के माध्यम से अन्वेषण और खनन को बढ़ावा देकर भारत की उच्च विकास अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के लिये इन समुद्री संसाधनों की पूरी क्षमता का उपयोग करना चाहता है।
निष्कर्ष:
- इस विधेयक का उद्देश्य परिचालन अधिकारों के आवंटन करने की विधि के रूप में नीलामी को सक्षम कर पारदर्शिता को बढ़ावा देना, निजी क्षेत्र की भागीदारी को आकर्षित करना तथा आर्थिक विकास महत्त्वाकांक्षाओं का समर्थन करने के लिये भारत के समुद्री संसाधनों को अनुकूलित करना है।
- यह सुधार सतत् और सुरक्षित खनन प्रथाओं को सुनिश्चित करते हुए अपने विशाल समुद्री संसाधनों का दोहन करने के भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है।