शासकीय गोपनीयता अधिनियम के तहत गिरफ्तारी | 06 Oct 2020

प्रिलिम्स के लिये:

शासकीय गोपनीयता अधिनियम (Official Secrets Act), 1923, RTI अधिनियम

मेन्स के लिये:

शासकीय गोपनीयता अधिनियम, 1923 और RTI अधिनियम के बीच विरोधाभास 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में दिल्ली पुलिस ने रणनीतिक मामलों के एक विश्लेषक को  चीनी सीमा पर भारतीय सैनिकों की तैनाती जैसी सूचना उजागर करने के लिये शासकीय गोपनीयता अधिनियम (Official Secrets Act), 1923 के तहत गिरफ्तार किया है।

प्रमुख बिंदु

शासकीय गोपनीयता अधिनियम (OSA):

  • OSA मोटे तौर पर दो पहलुओं से संबंधित है - जासूसी और सरकार की गुप्त जानकारी का खुलासा।
  • हालाँकि OSA गुप्त जानकारी को परिभाषित नहीं करता है किंतु सरकार दस्तावेज़ को गुप्त दस्तावेज़ की श्रेणी में वर्गीकृत करने के लिये विभागीय सुरक्षा निर्देशों, 1994 के मैनुअल का पालन करती है।
  • आमतौर पर गुप्त सूचना में कोई आधिकारिक कोड, पासवर्ड, स्केच, योजना, मॉडल, लेख, नोट, दस्तावेज़ या जानकारी शामिल होती है।
  • यदि कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता  है तो उसे 14 वर्ष तक का कारावास, जुर्माना या दोनों ही सज़ा सकती  है। सूचना को संप्रेषित करने वाले व्यक्ति और सूचना प्राप्त करने वाले व्यक्ति को OSA के तहत दंडित किया जा सकता है।

पृष्ठभूमि:

  • OSA की जड़ें ब्रिटिश औपनिवेशिक युग की हैं। शासकीय गोपनीयता अधिनियम (अधिनियम XIV), वर्ष 1889 में लाया गया था, जिसका उद्देश्य कई भाषाओं में बड़ी संख्या में प्रकाशित अखबारों की आवाज़ को दबाना था जो ब्रिटिश नीतियों का विरोध कर रहे थे।
  • भारत के वायसराय के रूप में लॉर्ड कर्जन के कार्यकाल के दौरान अधिनियम XIV में संशोधन किया गया और द इंडियन ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट, 1904 के रूप में इसे और अधिक कठोर बनाया गया था।
  • वर्ष 1923 में इसका एक नया संस्करण शासकीय गोपनीयता अधिनियम (1923 का अधिनियम XIX) अधिसूचित किया गया।
  • इसका प्रभाव देश में शासकीय गोपनीयता के सभी मामलों तक बढ़ाया गया था।

संबंधित मुद्दे:

सूचना के अधिकार अधिनियम के साथ संघर्ष: अक्सर यह तर्क दिया जाता  है कि OSA सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के साथ सीधे विरोध की स्थिति में है।

  • आरटीआई अधिनियम की धारा 22, OSA सहित अन्य कानूनों को समान प्रावधानों के अंतर्गत प्रधानता प्रदान करती है। इसलिये यदि सूचना प्रस्तुत करने के संबंध में OSA में कोई असंगतता है, तो यह आरटीआई अधिनियम द्वारा दी जाएगी।
  • हालाँकि आरटीआई अधिनियम की धारा 8 और 9 के तहत  सरकार जानकारी देने से मना कर सकती है। प्रभावी रूप से  यदि सरकार OSA के तहत किसी दस्तावेज़ को गुप्त रूप में वर्गीकृत करती है, तो उस दस्तावेज़ को RTI अधिनियम के दायरे से बाहर रखा जा सकता है और सरकार धारा 8 या 9 को लागू कर सकती है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के उल्लंघन की गलत व्याख्या: 

OSA की धारा-5 जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा के संभावित उल्लंघनों से संबंधित है,  की प्रायः गलत व्याख्या की जाती है।

  • यह अनुभाग शत्रु राज्य की मदद हेतु जानकारी साझा करने को एक दंडनीय अपराध बनाता है।
  • जब पत्रकारों द्वारा ऐसी सूचनाओं को प्रचारित किया जाता है जो सरकार या सशस्त्र बलों के लिये शर्मिंदगी का कारण बन सकती हैं, तो ऐसी स्थिति में इस अधिनियम द्वारा उनके विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती है।

सुझाव:

  • विधि आयोग वर्ष 1971 में इस कानून का अवलोकन करने वाला पहला आधिकारिक संस्थान था। आयोग ने कहा, “केवल इसलिये कि कोई परिपत्र गुप्त या गोपनीय है, उसे इस कानून के प्रावधानों के तहत नहीं लाना चाहिये।" हालाँकि विधि आयोग ने इस कानून में किसी भी बदलाव की सिफारिश नहीं की।
  • वर्ष 2006 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (Administrative Reforms Commission-ARC) ने सिफारिश की कि सरकारी गोपनीयता कानून को निरस्त किया जाए और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के उस अध्याय में बदलाव किया जाए जिसमें सरकारी गोपनीयता से संबंधित प्रावधान हैं। आयोग ने इस कानून को लोकतांत्रिक समाज में पारदर्शी शासन की राह में बाधा बताया।
  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के परिप्रेक्ष्य में सरकारी गोपनीयता कानून, 1923 की समीक्षा करने के लिये केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था। इस समिति में गृह मंत्रालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग तथा कानून मंत्रालय के सचिव शामिल थे। इसने 16 जून, 2017 को कैबिनेट सचिवालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें सिफारिश की गई कि सरकारी गोपनीयता कानून को अधिक पारदर्शी और RTI अधिनियम के अनुरूप बनाया जाए।
  •  सरकार ने वर्ष 2015 में आरटीआई अधिनियम के प्रकाश में OSA के प्रावधानों को देखने के लिये एक समिति का गठन किया था जिसने जून 2017 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, इसमें सिफारिश की गई थी कि OSA को अधिक पारदर्शी और आरटीआई अधिनियम के अनुरूप बनाया जाए।

आगे की राह

"गुप्त" की परिभाषा को OSA में स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता है, ताकि गलत व्याख्या की गुंजाइश न हो। इसके अलावा OSA को आरटीआई अधिनियम के अनुरूप लाने की आवश्यकता है।

स्रोत-द हिंदू