भारतीय राजनीति
लाभ का पद
- 04 May 2022
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प्रिलिम्स के लिये:लाभ का पद, चुनाव आयोग, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, सुप्रीम कोर्ट, अनुच्छेद 102 (1), अनुच्छेद 191 (1), अनुच्छेद 164 (4), उच्च न्यायालय। मेन्स के लिये:लाभ का पद और संबंधित संवैधानिक प्रावधान। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चुनाव आयोग ने झारखंड के मुख्यमंत्री को इस संदर्भ में नोटिस जारी किया कि उन्होंने 2021 में खुद को खनन पट्टा देकर "लाभ का पद" धारण किया था।
- मुख्यमंत्री के ऊपर जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने का आरोप है।
'लाभ के पद' की अवधारणा:
- विधायिका के सदस्य के रूप में सांसद और विधायक सरकार को उसके काम के लिये जवाबदेह ठहराते हैं।
- लाभ के पद का कानून के तहत अयोग्यता का अर्थ है कि यदि विधायक सरकार के तहत 'लाभ का पद' धारण करते हैं, तो वे सरकारी प्रभाव के लिये अतिसंवेदनशील हो सकते हैं और अपने संवैधानिक जनादेश का निष्पक्ष रूप से निर्वहन नहीं कर सकते हैं।
- जिसका आशय यह है कि निर्वाचित सदस्य के कर्तव्यों और हितों के बीच कोई टकराव नहीं होना चाहिये।
- इसलिये लाभ का पद कानून केवल संविधान की बुनियादी विशेषता को लागू करने का प्रयास करता है-
- विधायिका और कार्यपालिका के बीच शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत।
लाभ का पद:
- परिचय:
- संविधान में लाभ का पद स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन विभिन्न न्यायालयी फैसलों में की गई व्याख्याओं द्वारा इसका अर्थ अवश्य स्पष्ट हुआ है।
- लाभ के पद की व्याख्या के अनुसार, पद-धारक को कुछ वित्तीय लाभ या बढ़त या हितलाभ प्राप्त होते हैं।
- ऐसे मामलों में इस तरह के लाभ की राशि महत्त्वहीन है।
- सुप्रीम कोर्ट ने 1964 में फैसला सुनाया कि कोई व्यक्ति लाभ का पद रखता है या नहीं, इसका निर्धारण उसकी नियुक्ति की जाँच द्वारा होगी।
- निर्धारक कारक:
- क्या सरकार नियुक्ति प्राधिकारी है
- क्या सरकार के पास नियुक्ति समाप्त करने का अधिकार है
- क्या सरकार पारिश्रमिक निर्धारित करती है
- पारिश्रमिक का स्रोत क्या है
- शक्ति जो पद के साथ प्राप्त होती है
'लाभ का पद' धारण करने के संबंध में संवैधानिक प्रावधान:
- भारत के संविधान में अनुच्छेद 102(1)(a) तथा अनुच्छेद 191(1)(a) में लाभ के पद का उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 102(1)(a) के अंतर्गत संसद सदस्यों के लिये तथा अनुच्छेद 191(1)(a) के तहत राज्य विधानसभा के सदस्यों के लिये ऐसे किसी अन्य लाभ के पद को धारण करने की मनाही है।
- अनुच्छेद स्पष्ट करते हैं कि "किसी व्यक्ति को केवल इस कारण से भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं माना जाएगा कि वह एक मंत्री है"।
- संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 भी किसी सांसद या विधायक को सरकारी पद को ग्रहण करने की अनुमति देते हैं यदि कानून के माध्यम से उन पदों को लाभ के पद से उन्मुक्ति दी गई है।
- संसद ने भी संसद (अयोग्यता निवारण) अधिनियम, 1959 अधिनियमित किया है। जिसमें उन पदों की सूची दी गई है जिन्हें लाभ के पद से बाहर रखा गया है। संसद ने समय-समय पर इस सूची में विस्तार भी किया है।
सर्वोच्च न्यायालय के संबंधित फैसले:
- सर्वोच्च न्यायालय के तीन निर्णयों के मद्देनज़र जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 9ए के तहत मुख्यमंत्री को अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
- इस धारा के तहत माल की आपूर्ति या सरकार द्वारा किये गए किसी भी कार्य के निष्पादन के लिये अनुबंध करना होता है।
- 1964 में सीवीके राव बनाम दंतु भास्कर राव के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने माना है कि एक खनन पट्टा माल की आपूर्ति के अनुबंध की राशि नहीं है।
- 2001 में करतार सिंह भड़ाना बनाम हरि सिंह नलवा और अन्य के मामले में शीर्ष न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि खनन पट्टा सरकार द्वारा किये गए कार्य के निष्पादन की राशि नहीं है।
- यदि मुख्यमंत्री को किसी प्राधिकारी द्वारा अयोग्य घोषित किया जाता है, तो भी वह इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दे सकता है और यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार चार महीने के भीतर पूरा किया जाना चाहिये।
- अनुच्छेद 164(4) के तहत एक व्यक्ति बिना सदस्य बने छह महीने तक मंत्री रह सकता है।
विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (A)
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