ओडिशा में प्राचीन बस्ती की खोज | 05 Aug 2019
चर्चा में क्यों?
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) को ओडिशा के कटक ज़िले के जालारपुर गाँव में लगभग 3,600 साल पहले की ग्रामीण बस्ती का पता चला।
प्रमुख बिंदु
- ASI को पिछले साल ओडिशा के कटक ज़िले के जालारपुर गाँव में भारती हुदा (Bharati Huda) में खुदाई के दौरान प्राचीन कलाकृतियों, चारकोल एवं अनाज का पता चला था।
- आयु का अनुमान लगाने के लिये नई दिल्ली में अंतर-विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र (Inter University Accelerator Centre-IUAC) द्वारा एक्सेलेरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री (Accelerator Mass Spectrometry-AMS) का उपयोग करके साइट पर पाए जाने वाले चारकोल के नमूनों की रेडियो-कार्बन डेटिंग (Radio Carbon Dating) की गई।
- विभिन्न स्तरों पर की गई खुदाई के दौरान पाए गए चारकोल के नमूने के तीसरे स्तर में 1072 ईसा पूर्व, चौथे स्तर में 1099 ईसा पूर्व, पाँचवें स्तर में 1269 ईसा पूर्व तथा सातवें स्तर में 1404 ईसा पूर्व के होने के प्रमाण मिले हैं।
- इस उत्खनन की पुष्टि से चाल्कोलिथिक/ताम्रपाषाण सभ्यता के परिपक्व चरण के दौरान भारती हुदा में ग्रामीण निवासियों के संपर्क में जातीय समूह का एक नया वर्ग आ सकता है।
- चॉकलेट स्लिपड पॉटरी (Chocolate-slipped Pottery) जिसमें सूर्य का चित्र उकेरा गया है, से पता चलता है कि यह प्रकृति की पूजा से संबंधित धार्मिक विश्वास था। इस साक्ष्य को 1099 ईसा पूर्व का मानते हुए प्राची घाटी (Prachi Valley) में सूर्य पूजा की प्राचीनता को भी स्पष्ट किया जा सकता है।
- खुदाई में मिले अवशेष घाटी में ताम्रपाषाण सभ्यता के अस्तित्व का संकेत देते हैं जिससे कीचड़ (Mud) में संरचनात्मक अवशेषों की उपस्थिति, मिट्टी के बर्तनों के ढेर, पॉलिश किये गए पत्थर के औज़ार, हड्डियों से बने औज़ार, अर्द्ध-कीमती पत्थरों की माला, टेराकोटा की वस्तुओं, जले हुए अनाज तथा भारी मात्रा में जीव-जंतुओं की मौजूदगी आदि का पता चलता है।
- इस खुदाई वाले स्थान से लगभग 30 किलोमीटर दूर कोणार्क का विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर स्थित है जो 13वीं शताब्दी ईस्वी में बनाया गया था।
- सूर्य पूजा की परंपरा इस क्षेत्र में मानव बस्तियों के साथ विकसित हुई है।
रेडियो कार्बन डेटिंग
Radio Carbon Dating
- रेडियो कार्बन डेटिंग जंतुओं एवं पौधों के प्राप्त अवशेषों की आयु निर्धारण करने की विधि है। इस कार्य के लिये कार्बन-14 का प्रयोग किया जाता है। यह तत्त्व सभी सजीवों में पाया जाता है।
- कार्बन-14, कार्बन का एक रेडियोधर्मी आइसोटोप है, जिसकी अर्द्ध-आयु लगभग 5,730 वर्ष मानी जाती है।
- आयु निर्धारण करने की इस तकनीक का आविष्कार वर्ष 1949 में शिकागो विश्वविद्यालय (अमेरिका) के विलियर्ड लिबी ने किया था।
एक्सेलेरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री
Accelerator Mass Spectrometry- AMS
- एक्सेलेरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री (Accelerator Mass Spectrometry- AMS) परमाणुओं की गिनती की एक अत्यधिक संवेदनशील विधि है।
- इसके साथ अध्ययन करने में कार्बन-14 (C-14) को व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है।
- इसका उपयोग रेडियोन्यूक्लाइड्स और स्थिर न्यूक्लाइड्स (Radionuclides and Stable Nuclides) के प्राकृतिक आइसोटोपिक बहुतायत की बहुत कम सांद्रता का पता लगाने के लिये किया जाता है।
अंतर-विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र
Inter University Accelerator Centre
- अंतर-विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र वर्ष 1984 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा स्थापित किया जाने वाला पहला अंतर-विश्वविद्यालय केंद्र था।
- इसे पहले परमाणु विज्ञान केंद्र के रूप में जाना जाता था।
- केंद्र का प्राथमिक उद्देश्य विश्वविद्यालय प्रणाली के भीतर त्वरक आधारित अनुसंधान के लिये विश्व स्तरीय सुविधाएँ स्थापित करना है।
- इसका उद्देश्य विश्वविद्यालयों, आईआईटी और अन्य अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर अनुसंधान एवं विकास के आम अनुसंधान कार्यक्रमों को तैयार करना है।
- यह नई दिल्ली में स्थित है।
साइट (जालारपुर गाँव) की विशेषता
- इस साइट की भौतिक संस्कृति सांस्कृतिक विशेषताओं की निरंतरता में बड़े बदलाव के बिना धीरे-धीरे विकसित हुई प्रतीत होती है।
- यह कृषि आधारित बस्ती से पूर्ण कृषि समाज तक संस्कृति के प्रवाह की तरह प्रदर्शित होती है।
- इस साइट में गोलबाई सासन (Golabai Sasan), सुआबरेई (Suabarei) और अन्य उत्खनित स्थानों तथा महानदी डेल्टा में खोजे गए स्थानों में सांस्कृतिक समानता पाई गई है, जबकि मध्य महानदी घाटी तथा मध्य एवं पूर्वी भारत के स्थलों के चाल्कोलिथिक साइटों के साथ इसकी आंशिक समानता है।
- पुरातत्त्वविदों के अनुसार, यहाँ के निवासियों ने कृषि और पशुपालन का अभ्यास किया होगा जो कि चावल एवं जूट की घरेलू विविधता के निष्कर्षों से प्रमाणित होता है
- यहाँ पशुपालकों के बीच पालतू मवेशियों के साक्ष्य के साथ-साथ बैल की टेराकोटा आकृति भी पाई गई है।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण
Archaeological Survey of India- ASI
- भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासतों के पुरातत्त्वीय अनुसंधान तथा संरक्षण के लिये एक प्रमुख संगठन है।
- भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण का प्रमुख कार्य राष्ट्रीय महत्त्व के प्राचीन स्मारकों तथा पुरातत्त्वीय स्थलों और अवशेषों का रखरखाव करना है ।
- इसके अतिरिक्त प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्त्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के अनुसार, यह देश में सभी पुरातत्त्वीय गतिविधियों को विनियमित करता है।
- यह पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 को भी विनियमित करता है।
- भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण संस्कृति मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।