महासागरीय ऊर्जा | 23 Aug 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा महासागरीय ऊर्जा को अक्षय ऊर्जा (Renewable Energy) घोषित करने के एक प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई। अब महासागरीय ऊर्जा के विभिन्न रूपों जैसे- ज्वारीय ऊर्जा, तरंग ऊर्जा, थर्मल ऊर्जा आदि से उत्पादित ऊर्जा को नवीकरणीय ऊर्जा माना जाएगा और ये गैर-सौर नवीकरणीय क्रय बाध्यताओं (RPO) को पूरा करने के लिये पात्र होंगे।
प्रमुख बिंदु
- महासागर धरती की सतह का 70 प्रतिशत भाग घेरे हुए हैं और ज्वार ऊर्जा, तरंग ऊर्जा, थर्मल ऊर्जा आदि रूप ऊर्जा की एक विशाल राशि का प्रतिनिधित्व करते हैं। हमारे समुद्र और महासागरों की ऊर्जा क्षमता हमारी वर्तमान ऊर्जा आवश्यकताओं से कहीं अधिक है।
- वर्तमान में दुनिया भर में विभिन्न तकनीकों का विकास किया जा रहा है ताकि इस ऊर्जा को उसके सभी रूपों में विकसित किया जा सके। वर्तमान में यह सीमित है, लेकिन इस क्षेत्र में विकास से आर्थिक विकास, ईंधन की वृद्धि, कार्बन फुटप्रिंट (Carbon footprint) में कमी और रोज़गार में वृद्धि जैसे सकारात्मक परिणाम मिलेंगे।
- वर्ष 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के भारत सरकार के लक्ष्य में महासागरीय ऊर्जा अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगी।
महासागरीय ऊर्जा की क्षमता
- समुद्रों अथवा महासागरों के पृष्ठ का जल सूर्य द्वारा तप्त हो जाता है जबकि इनके गहराई वाले भाग का जल अपेक्षाकृत ठंडा होता है। ताप में इस अंतर का उपयोग सागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण विद्युत संयंत्र (Ocean Thermal Energy Conversion Plant या OTEC विद्युत संयंत्र) में ऊर्जा प्राप्त करने के लिये किया जाता है। OTEC विद्युत संयंत्र केवल तभी प्रचालित होते हैं जब महासागर के पृष्ठ पर जल का ताप तथा 2 KM तक की गहराई पर जल के ताप में 20 डिग्री सेल्सियस का अंतर हो।
- पृष्ठ के तप्त जल का उपयोग अमोनिया जैसे वाष्पशील द्रवों को उबालने में किया जाता है। इस प्रकार बनी द्रवों की वाष्प फिर जनित्र के टरबाइन को घुमाती है। महासागर की गहराइयों से ठंडे जल को पंपों से खींचकर वाष्प को ठंडा करके फिर से द्रव में संघनित किया जाता है।
- महासागरों की ऊर्जा की क्षमता (ज्वारीय-ऊर्जा, तरंग-ऊर्जा तथा महासागरीय-तापीय ऊर्जा) अति विशाल है, परंतु इसके दक्षतापूर्ण व्यापारिक दोहन में कठिनाइयाँ हैं।
- भारत के समुद्र तट की कुल लंबाई 7516.6 किलोमीटर है, जिससे लगभग 12455 मेगावाट ज्वारीय ऊर्जा, लगभग 40,000 मेगावाट तरंग ऊर्जा तथा लगभग 1,80,000 मेगावाट थर्मल ऊर्जा प्राप्त होने का अनुमान है।
ज्वारीय ऊर्जा (Tidal Energy)
- घूर्णन गति करती पृथ्वी पर मुख्य रूप से चंद्रमा के गुरुत्वीय खिंचाव के कारण सागरों में जल का स्तर चढ़ता व गिरता रहता है। चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force) के कारण प्रत्येक 12 घंटे में एक ज्वारीय चक्र संपन्न होता है। इस परिघटना को ज्वार-भाटा कहते हैं।
- ज्वार-भाटे में जल के स्तर के चढ़ने तथा गिरने से ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त होती है। ज्वारीय ऊर्जा का दोहन सागर के किसी संकीर्ण क्षेत्र पर बाँध का निर्माण करके किया जाता है।
- बाँध के द्वार पर स्थापित टरबाइन ज्वारीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित कर देती है।
- पारंपरिक जल विद्युत के समान, ज्वार के पानी को उच्च ज्वार के दौरान एक बैराज में कैद किया जा सकता है तथा कम ज्वार के दौरान हाइड्रो-टरबाइन (Hydro Turbine) के माध्यम से दबाव दिया जाता है। हालाँकि ज्वारीय ऊर्जा वाले बिजली संयंत्रों की पूंजी लागत बहुत अधिक होती है। ज्वारीय ऊर्जा क्षमता से पर्याप्त शक्ति प्राप्त करने के लिये उच्च ज्वार की ऊँचाई निम्न ज्वार से कम-से-कम पाँच मीटर (16 फीट) अधिक होनी चाहिये। पश्चिमी तट पर कैम्बे की खाड़ी और गुजरात में कच्छ की खाड़ी में यह क्षमता विद्यमान है।
तरंग ऊर्जा (Wave Energy)
- समुद्र तट के निकट विशाल तरंगों की गतिज ऊर्जा को भी विद्युत उत्पन्न करने के लिये ट्रेप किया जा सकता है। महासागरों के पृष्ठ पर आर-पार बहने वाली प्रबल पवन तरंगें उत्पन्न करती है।
- तरंग ऊर्जा का वहीं पर व्यावहारिक उपयोग हो सकता है जहाँ तरंगें अत्यंत प्रबल हों। तरंग ऊर्जा को ट्रेप करने के लिये विविध युक्तियाँ विकसित की गई हैं ताकि टरबाइन को घुमाकर विद्युत उत्पन्न करने के लिये इनका उपयोग किया जा सकें।
- तरंग ऊर्जा एक उपकरण की गति से उत्पन्न होती है जो या तो समुद्र की सतह पर बहती है या समुद्र तल तक जाती है। तरंग ऊर्जा को विद्युत शक्ति में परिवर्तित करने की कई विभिन्न तकनीकों का अध्ययन किया गया है।
- तरंग रूपांतरण उपकरण जो सतह पर तैरते हैं, जोड़ों में एक साथ टिका होता है जो लहरों के साथ झुकता है। यह गतिज ऊर्जा टरबाइनों के माध्यम से द्रव को पंप करती है और विद्युत शक्ति बनाती है।
करेंट ऊर्जा (Current Energy)
- समुद्र के पानी का एक दिशा में बहना समुद्री धारा है। इस सागर की धारा को गल्फ स्ट्रीम (Guif Steam) के नाम से जाना जाता है। ज्वार दो दिशाओं में बहने वाली धाराएँ भी बनाते हैं। गतिज ऊर्जा को खाड़ी स्ट्रीम और जलमग्न टर्बाइनों के साथ अन्य ज्वारीय धाराओं से कैप्चर किया जा सकता है जो लघु पवन टर्बाइनों के समान हैं। पवन टरबाइनों के समान, समुद्री विद्युत प्रवाह उत्पन्न करने के लिये समुद्री प्रवाह की चाल रोटर ब्लेडों को स्थानांतरित करती है।
महासागर तापीय ऊर्जा रूपांतरण
(Ocean Thermal Energy Conversion -OTEC)
- इस तकनीक के अंतर्गत समुद्र की सतह के गर्म जल की ऊष्मा का उपयोग कर विद्युत् उत्पादन किया जाता है। जब गर्म जल का प्रवाह OTEC गैस चेंबर में होता है तब गैस द्वारा समुद्री जल की ऊष्मा का अवशोषण किये जाने के कारण गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है, जिससे गतिज ऊर्जा के कारण टर्बाइन के चलने पर विद्युत ऊर्जा का उत्पादन होता है।
- भारत में विषुवत रेखा के समीप वर्ष भर जल की सतह का तापमान अधिक होने के कारण समुद्री ऊर्जा का उपयोग किया जा सकेगा।