महासागरीय जलधारा एवं यूरोपीय जलवायु | 10 Feb 2020
प्रीलिम्स के लिये:महासागरीय जलधाराएँ, ब्यूफोर्ट गायर मेन्स के लिये :जलवायु परिवर्तन एवं इसके प्रभाव से संबंधित मुद्दे, आर्कटिक क्षेत्र में हिमगलन का अन्य क्षेत्रों में प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक अध्ययन से पता चला है कि आर्कटिक की बर्फ पिघल कर महासागरीय जलधारा (Ocean Current) को बाधित करती है जिससे पश्चिमी यूरोप की जलवायु में व्यापक परिवर्तन हो सकता है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- शोधकर्त्ताओं ने यह पता लगाया है कि आर्कटिक के ताज़े जल के अटलांटिक महासागर में मिलने से अटलांटिक महासागर की धाराओं के प्रवाह में परिवर्तन के कारण इस क्षेत्र की जलवायु में व्यापक स्तर पर बदलाव आ सकता है।
- ध्यातव्य है कि ऐसी जलधाराएँ जो पश्चिमी यूरोप को गर्म रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, आर्कटिक में बर्फ के पिघलने से अटलांटिक महासागर में ठंडे पानी की अत्यधिक मात्रा के कारण इसकी जलधाराओं के सामान्य गुणों में परिवर्तन आ सकता है। जिससे ये जलधाराएँ अपने आस-पास के क्षेत्रों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं।
शोध के मुख्य बिंदु
- अध्ययन के अनुसार, हर पाँच से सात वर्षों में हवाओं की दिशा में परिवर्तन होता है लेकिन दशकों से पश्चिमी हवा आर्कटिक क्षेत्र के लिये अपरिवर्तित रही है।
- किंतु यदि हवा की दिशा बदल जाती है तो यह वामावर्त दिशा में चलने लगेगी तथा धारा की दिशा परिवर्तित हो जाएगी और यहाँ एकत्र पूरा ताज़ा जल अटलांटिक महासागर में प्रवाहित हो जाएगा।
पश्चिमी यूरोप या अटलांटिक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के कारण
- यदि ब्यूफोर्ट गायर से अटलांटिक महासागर में ताज़ा जल प्रवाहित होगा तो इससे अटलांटिक क्षेत्र की जलवायु प्रभावित होगी और पश्चिमी यूरोप में जलवायु परिवर्तन सहित इस गोलार्द्ध में व्यापक प्रभाव प्रदर्शित होंगे।
- गौरतलब है कि आर्कटिक महासागर से उत्तरी अटलांटिक में ताज़े पानी का प्रवाह सतह के जल के घनत्व को परिवर्तित कर देगा। जिससे जलधाराओं की दिशा में परिवर्तन संभव है।
- अध्ययन के अनुसार, समुद्री बर्फ का पिघलना वास्तव में हमारे जलवायु प्रणाली पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। इससे उष्णकटिबंधीय एवं शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों की जलवायु प्रभावित होगी।
- आर्कटिक का जल वायुमंडल में गर्मी और नमी खो देता है और महासागर के नीचे तक चला जाता है, जहाँ यह उत्तरी अटलांटिक महासागर से नीचे कटिबंधों तक जल को एक कन्वेयर-बेल्ट की तरह प्रवाहित करता है, जिसे वर्तमान में अटलांटिक मेरिडिनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (Atlantic Meridional Overturning Circulation) कहा जाता है।
- यह धारा उष्णकटिबंधीय उष्मीय जल को यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे उत्तरी अक्षांशों तक ले जाकर इस क्षेत्र की जलवायु को विनियमित करने में मदद करती है किंतु यदि यह प्रक्रिया धीमी हो जाएगी तो यह जीवन के सभी रूपों विशेषकर समुद्री जीवों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
आर्कटिक एवं अटलांटिक क्षेत्र: सामान्य स्थिति में
- वैज्ञानिकों के अनुसार, एक समुद्री जलधारा जिसे ब्यूफोर्ट गायर (Beaufort Gyre) कहा जाता है, आर्कटिक महासागर की सतह के पास ताज़े जल के भंडारण से ध्रुवीय वातावरण को संतुलित रखती है।
- ध्यातव्य है कि ब्यूफोर्ट गायर आर्कटिक महासागर की प्राथमिक परिसंचरण विशेषताओं में से एक है, जो कनाडा के बेसिन में मीठे पानी, समुद्री बर्फ और ऊष्मा का भंडारण और परिवहन करती है और क्षेत्रीय और वैश्विक जलवायु प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- ब्यूफोर्ट गायर में हवा कनाडा के उत्तर में पश्चिमी आर्कटिक महासागर के चारों ओर दक्षिणावर्त दिशा (Clockwise) में चलती है। ध्यातव्य है कि गायर इन क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से ग्लेशियरों के पिघलने से और नदी अपवाह से ताजा पानी एकत्र करती है।
- शोधकर्त्ताओं के अनुसार, यह ताज़ा जल आर्कटिक के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह जल गर्म एवं नमकीन पानी के ऊपर तैरता है और समुद्री बर्फ को पिघलने से बचाने तथा पृथ्वी की जलवायु को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- शोधकर्त्ताओं के अनुसार, गायर लगभग 8,000 क्यूबिक किलोमीटर ताज़ा जल या अमेरिका में मिशिगन झील में उपलब्ध जल की मात्रा का लगभग दोगुना जल संचय करता है।
- ध्यातव्य है कि मीठे/ताज़े जल की प्राप्ति एवं संकेंद्रण का प्रमुख कारण गर्मियों और शरद ऋतु में समुद्री बर्फ का पिघलना है।
- पश्चिम की ओर चलने वाली तेज़ हवाएँ लगातार 20 वर्षों से अपनी गति और आकार को बढ़ाने के साथ-साथ आर्कटिक महासागर के ताज़े जल को निम्न अक्षांश की ओर जाने से रोकती हैं।
आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ पिघलने के अन्य प्रभाव
- बर्फ पिघलने से समुद्री जल-स्तर में वृद्धि होगी जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है।
- इसके अतिरिक्त ध्रुवीय क्षेत्रों में हिमगलन के कारण वैश्विक जलवायु पर भी प्रभाव पड़ता है जिससे महाद्वीपीय क्षेत्रों में सूखे एवं बाढ़ जैसे अनेक प्रभाव देखे जा सकते हैं।
आगे की राह:
- जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के लिये देशों को पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखकर व्यापक रणनीति बनाने की आवश्यकता है।
- विभिन्न राष्ट्रों को आपसी सहयोग से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की दिशा में कदम उठने की आवश्यकता है।
- राष्ट्रों को विकासात्मक गतिविधियों के साथ-साथ पर्यावरण में संतुलन बनाने की आवश्यकता है तथा वैश्विक तापमान को कम करने की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिये।
- इसके अतिरिक्त लोगों को जलवायु परिवर्तन एवं इसके प्रभावों के प्रति जागरूक कर उन्हें पर्यावरण हितैषी गतिविधियों को अपनाने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये।