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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-इज़राइल के बीच द्विपक्षीय निवेश संधि की बाधाएँ

  • 21 Jul 2017
  • 7 min read

संदर्भ
भारत और इज़राइल के संबंध को फिलिस्तीन के चश्मे से नहीं बल्कि स्वतंत्र तरीके से देखना चाहिये। दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश की बहुत संभावनाएँ हैं। प्रधानमंत्री मोदी की इज़राइल यात्रा के दौरान जारी संयुक्त वक्तव्य में व्यापार और निवेश संबंधों को मज़बूत करने का स्पष्ट उल्लेख हुआ है। द्विपक्षीय निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये दोनों देश द्विपक्षीय निवेश संधि पर वार्ता करने पर सहमत हुए हैं।

इज़राइल कहाँ निवेश कर सकता है 

  • इज़राइल भारत में नवीकरणीय ऊर्जा, जल प्रबंधन ( टपकन सिंचाई और अलवणीकरण ) एवं रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में निवेश कर सकता है।
  • इज़राइल यदि रक्षा उत्पादन में निवेश करता है तो इससे भारत को अरबों डॉलर की  बचत होगी, जो इज़राइल से हथियारों के आयात पर खर्च होता है।
  • गौरतलब है कि अमेरिका और रूस के बाद इज़राइल भारत का तीसरा सबसे बड़ा हथियारों का आपूर्तिकर्त्ता है। 
  • रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में निवेश होने से घरेलू विनिर्माण को लाभ होगा, नौकरशाही के माध्यम से संचालित राज्य के स्वामित्व वाली आयुध कारखानों पर निर्भरता कम होगी तथा नई तकनीक भी प्राप्त होगी। 
  • अभी हाल ही में इज़राइल की एक कंपनी के सहयोग से मध्य प्रदेश में हथियार निर्माण के लिये एक छोटे संयंत्र की स्थापना हुई है।

द्विपक्षीय निवेश संधि ( Bilateral Investment Treaty ) पर वार्ता 

  • भारत और इज़राइल के बीच 1996 में द्विपक्षीय निवेश संधि पर समझौता हुआ था, परन्तु भारत द्वारा हाल ही में 58 द्विपक्षीय निवेश संधियों को रद्द करने के दौरान इसे भी रद्द कर दिया गया।  
  • अब इसे फिर से आरंभ करने के लिये इस पर नये सिरे से वार्ता करनी होगी। हालाँकि दोनों देशों के मॉडल द्विपक्षीय निवेश संधियों में मौजूद कई मौलिक भिन्नताओं के कारण बीआईटी के समक्ष अनेक चुनौतियाँ हैं।

प्रथम चुनौती

  • प्रथम चुनौती निवेशक एवं राज्य के बीच विवाद समाधान के प्रावधान को लेकर है। निवेशक राज्य विवाद निपटान – आईएसडीएस (Investor-State Dispute Settlement ) प्रावधान के तहत विदेशी निवेशक, कथित संधि उल्लंघन की परिस्थिति में मेज़बान राज्य (भारत)  के विरुद्ध दावा प्राप्त करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थ मंचों में जा सकता है।
  • विदेशी निवेशक अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता पसंद करते हैं क्योंकि ये घरेलू न्यायालयों में मुकदमों की तुलना में तेज़ी से और स्वतंत्रता पूर्वक फैसला करते हैं। इज़राइल को भी यही तरीका पसंद है।
  • जबकि भारत का द्विपक्षीय निवेश संधि मॉडल निवेशक के आईएसडीएस से दावा प्राप्त करने के अधिकार पर कई प्रक्रियात्मक एवं क्षेत्राधिकार प्रतिबंध लगाता है। भारतीय मॉडल के अनुसार विदेशी निवेशक को आईएसडीएस में जाने से पहले भारत के किसी न्यायालय में पाँच वर्ष तक मुकदमा लड़ना होगा।

दूसरी चुनौती

  • इज़राइली मॉडल में विदेशी निवेश की परिभाषा एक व्यापक परिसंपत्ति आधारित है, जिसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एवं पोर्ट फोलियो निवेश दोनों शामिल हैं, जबकि 2016 के भारतीय मॉडल में विदेशी निवेश की संकीर्ण परिभाषा दी गई है। इसमें विदेशी निवेश की कुछ विशेषताएँ बताई गई हैं तथा यह भी कहा गया है कि वह निवेश भारत के विकास लिये महत्त्वपूर्ण होना चाहिये।

 तीसरी चुनौती

  • इज़राइल के मॉडल बीआईटी में अति विशिष्ट राज्य ( Most Favoured Nation-MFN ) का प्रावधान है। एमएफएन अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों में गैर-भेदभाव की एक महत्त्वपूर्ण आधारशिला है। यह प्रावधान भारतीय मॉडल बीआईटी में नहीं है।
  • इस प्रावधान के न रहने का अर्थ हुआ कि यदि भारत किसी विदेशी निवेशक के साथ कोई भेदभाव करता है तो वह इसके विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय कानून से कोई सहायता प्राप्त नहीं कर सकता।

 चौथी चुनौती

  • भारतीय बीआईटी मॉडल में कराधान का प्रावधान नहीं है। इसका अर्थ यह हुआ कि भारत यदि बाद में कोई कर लगाता है तो विदेशी निवेशक इसे आईएसडीएस में चुनौती नहीं दे सकते हैं। हालाँकि, इज़राइल के मॉडल में कर-संबंधी उपायों को केवल एमएफएन और राष्ट्रीय उपचार प्रावधानों के लिये एक अपवाद के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • कराधान कानूनों के प्रशासन में भारत की हालिया गतिविधियों  ने विदेशी निवेशकों को परेशान किया है।
  • संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन द्वारा जारी विश्व निवेश रिपोर्ट 2017 में भी यह बताया गया है कि भारत में निवेश करने में टैक्स संबंधी चिंताएँ कुछ विदेशी निवेशकों में भय उत्पन्न करती हैं। 
  • इस प्रकार, यदि कराधान को बीआईटी के दायरे से पूरी तरह बाहर रखा गया तो इज़राइली निवेशकों को इससे परेशानी होगी। 

निष्कर्ष 
बीआईटी पर भारत की स्थिति एक समर्थक राज्य की तरह है। यह विदेशी निवेशकों को सीमित अधिकार और सुरक्षा प्रदान करती है। जबकि इज़राइल की स्थिति इसके  विपरीत है। अतः भारत-इज़राइल के बीच बीआईटी का होना तब तक मुश्किल लगता है, जब तक कि दोनों पक्ष एक-दूसरे की मौजूदा स्थिति से दूर नहीं हो जाते। दोनों पक्षों को एक ऐसी द्विपक्षीय निवेश संधि करनी चाहिये जो राज्य के विनियमन के अधिकार के साथ-साथ निवेश को भी संरक्षण प्रदान करती हो।  

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