शपथ-ग्रहण संबंधी विवाद | 03 Dec 2019
प्रीलिम्स के लिये:
संविधान में शपथ-ग्रहण संबंधी प्रावधान
मेन्स के लिये:
शपथ-ग्रहण संबंधी विवाद तथा संबंधित विषय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा के पहले सत्र के दौरान आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष द्वारा नई सरकार पर संविधान के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है।
मुख्य बिंदु:
- विपक्ष द्वारा नई सरकार पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि मुख्यमंत्री तथा अन्य मंत्रियों ने संविधान में दिये गए प्रारूप के अनुसार शपथ ग्रहण नहीं की है।
- विपक्ष के अनुसार, नवगठित सरकार के मुख्यमंत्री तथा कई मंत्रियों ने राजनीतिक नेताओं तथा ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को अपनी शपथ के पाठ में शामिल किया था।
- महाराष्ट्र के एक पूर्व महाधिवक्ता के अनुसार, शपथ का सार तत्त्व काफी महत्वपूर्ण होता है। यह संविधान में निर्धारित प्रारूप के अनुसार होना चाहिये।
- शपथ से पहले या बाद में कुछ जोड़ना गैर-कानूनी नहीं है जब तक कि शपथ के सार से छेड़छाड़ न की गई हो।
संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 164(3) के अनुसार, किसी मंत्री द्वारा पद ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिये दिये गए प्रारूपों के अनुसार उसको पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएगा।
- तीसरी अनुसूची के अनुसार किसी राज्य के मंत्री की शपथ का प्रारूप यह है- 'मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, [संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित], मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, मैं --------- राज्य के मंत्री के रूप में अपने कर्त्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।'
- अनुच्छेद 164 से यह स्पष्ट होता है कि शपथ का सार तत्त्व पवित्र होता है तथा शपथ लेने वाले व्यक्ति को इसे संविधान में प्रदत्त प्रारूप के अनुसार ही पढ़ना है।
- यदि कोई व्यक्ति शपथ लेने के दौरान शपथ के प्रारूप से भटक जाता है तो शपथ दिलाने वाले व्यक्ति (इस मामले में राज्यपाल) की ज़िम्मेदारी है कि वह शपथ लेने वाले व्यक्ति को रोककर उसे शपथ को सही तरीके से पढ़ने के लिये कहे।
राज्यपाल की भूमिका:
- राज्य के मुख्यमंत्री या मंत्रियों के शपथ संबंधी विवाद में राज्यपाल का अनुमोदन महत्त्वपूर्ण होता है।
- शपथ लेने के तुरंत बाद, जिस व्यक्ति ने शपथ ली है, उसे एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करना होता है। रजिस्टर को राज्यपाल के सचिव द्वारा सत्यापित किया जाता है, जिसका अर्थ होता है कि इसे राज्यपाल द्वारा अनुमोदित किया गया है। इसके बाद यह अधिसूचना राज़पत्र में प्रकाशित हो जाती है तथा शपथ की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है।
- महाराष्ट्र में यह प्रक्रिया 30 नवंबर को संबंधित अधिसूचना जारी होने के बाद पूर्ण हो चुकी है।