जैव विविधता और पर्यावरण
पोषक तत्त्वों में कमी का कारण कार्बन डाईऑक्साइड
- 29 Aug 2018
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चर्चा में क्यों?
हाल में एक शोध से यह उजागर हुआ है कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के स्तर में वृद्धि होने से चावल और चावल जैसे मुख्य फसलों की पौष्टिकता में कमी आई है। इसके मुताबिक फसलों में पोषक तत्त्वों की कमी के कारण यह सन 2050 तक लाखों भारतीयों के लिये संकट उत्पन्न कर सकता है।
प्रमुख बिंदु:
- शोध के मुताबिक मानव गतिविधियों के कारण कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के स्तर में वृद्धि होने के परिणामस्वरूप इस शताब्दी के मध्य तक विश्वभर में लगभग 175 मिलियन आबादी जस्ते की कमी और लगभग 122 मिलियन आबादी के प्रोटीन की कमी से ग्रस्त होने की संभावना है।
- अध्ययन में पाया गया है कि एक अरब से भी अधिक महिलाएँ और बच्चों में आहार से प्राप्त होने वाले आयरन की कमी हो सकती है जो एनीमिया और अन्य बीमारियों चलते इन्हें के जोखिम में डाल सकता है।
- यह भी पाया गया है कि भारत लगभग 50 मिलियन लोगों में जिंक की कमी के साथ सबसे बड़ा बोझ उठाएगा। प्रोटीन की कमी की वजह से भारत में 38 मिलियन लोगों पर जोखिम बन हुआ है और 502 मिलियन महिलाएँ और बच्चे आयरन की कमी से होने वाली बीमारियों के प्रति संवेदनशील हैं।
- दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व के अन्य देशों पर भी काफी प्रभाव पड़ने की संभावना है।
- वर्तमान में दुनिया भर में दो अरब से अधिक लोगों में एक या अधिक पोषक तत्त्वों की कमी होने का अनुमान है।
- आमतौर पर मनुष्य को अधिकांश पोषक तत्त्वों की प्राप्ति पौधों से होती है। आहार प्रोटीन का 63 प्रतिशत, जिंक का 68 प्रतिशत और साथ ही 81 प्रतिशत आयरन वनस्पतियों से ही प्राप्त होता है।
- इस तरह से यह देखा गया है कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के उच्च स्तर की वजह से फसलों में पौष्टिक तत्त्वों की मात्रा में कमी आई है।
- उल्लेखनीय है कि वर्तमान वायुमंडलीय परिस्थिति जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड 400 PPM (parts per million) से कुछ अधिक है की अपेक्षा 550 PPM वाले कार्बन डाईऑक्साइड वाले वातावरण में फसल उगाने से प्रोटीन, लौह और जस्ते की सांद्रता 3-17 फीसदी कम होती है।
निष्कर्ष
इस तरह शोध में यह भी कहा गया है कि वर्तमान में पौष्टिक तत्त्वों की कमी के शिकार लोगों को भविष्य में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अतः यह स्पष्ट है कि हम अपने स्वास्थ्य पर अप्रत्याशित प्रभाव डाले बिना लाखों वर्षों से अनुकूलित जैव-भौतिक तंत्र को अव्यवस्थित नहीं कर सकते हैं।