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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

परमाणु क्षमता संपन्न अग्नि- IV मिसाइल का सफल परीक्षण

  • 24 Dec 2018
  • 3 min read

Agni IV Missile

चर्चा में क्यों?


23 दिसंबर, 2018 को भारत ने परमाणु क्षमता संपन्न लंबी दूरी की इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (Inter Continental Ballistic Missile) अग्नि- IV का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।

प्रमुख बिंदु

  • सतह-से-सतह पर मार करने वाली इस सामरिक मिसाइल का परीक्षण डॉ. अब्दुल कलाम द्वीप पर स्थित एकीकृत परीक्षण रेंज (Integrated Test Range-ITR) के लॉन्च कॉम्प्लेक्स-4 से किया गया। इस द्वीप को पहले व्हीलर द्वीप (Wheeler Island) के नाम से जाना जाता था।
  • मोबाइल लॉन्चर के ज़रिये लॉन्च किये गए इस मिसाइल के उड़ान प्रदर्शन की ट्रैकिंग और निगरानी रडार, ट्रैकिंग सिस्टम और रेंज स्टेशन से की गई।
  • अग्नि- IV मिसाइल का यह 7वाँ परीक्षण था। इससे पहले मिसाइल का परीक्षण 2 जनवरी, 2018 को भारतीय सेना के रणनीतिक बल कमान (strategic force command -SFC) ने इसी बेस से किया था।
  • अग्नि- I, II, III और पृथ्वी जैसी बैलिस्टिक मिसाइलें सशस्त्र बलों के शस्त्रागार में पहले से ही शामिल हैं जो भारत को प्रभावी रक्षा क्षमता प्रदान करती हैं।

अग्नि-IV की विशेषताएँ

  • स्वदेशी तौर पर विकसित व परिष्कृत अग्नि- IV मिसाइल 4,000 किमी की मारक क्षमता के साथ दो चरणों वाली मिसाइल है।
  • इसका वज़न लगभग 17 टन तथा लंबाई 20 मीटर है।
  • यह अत्याधुनिक मिसाइल आधुनिक और कॉम्पैक्ट वैमानिकी या एवियोनिक्स (avionics) से लैस है, ताकि उच्च स्तर की विश्वसनीयता और परिशुद्धता प्रदान की जा सके।
  • अग्नि- IV मिसाइल उन्नत एवियोनिक्स, 5वीं पीढ़ी के ऑन बोर्ड कंप्यूटर (On Board Computer) से सुसज्जित है। इसमें उड़ान के समय गड़बड़ी को ठीक करने और मार्गदर्शन के लिये नवीनतम सुविधाएँ भी हैं।
  • अत्यधिक विश्वसनीय अतिरिक्त माइक्रो नेविगेशन सिस्टम (Micro Navigation System-MINGS) द्वारा समर्थित रिंग लेज़र गायरो-बेस्ड इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (Ring Laser Gyro-based Inertial Navigation System-RINS) यह सुनिश्चित करता है कि मिसाइल सटीकता के साथ लक्ष्य तक पहुँचे।
  • इसका पुन: प्रवेश उष्मा कवच (re-entry heat shield) 4000 डिग्री सेंटीग्रेड तक का तापमान सहन कर यह सुनिश्चित करता है कि अंदर का तापमान 50 डिग्री से कम रहे और इस दौरान वैमानिकी प्रणाली सामान्य ढंग से काम कर सके।

स्रोत : इकोनॉमिक टाइम्स

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