इज़राइली तकनीकी कंपनी एनएसओ (NSO) ग्रुप द्वारा कोरोना ट्रैकर का परीक्षण | 07 Apr 2020

प्रीलिम्स के लिये:

कोरोना ट्रैकर, पेगासस स्पाइवेयर

मेन्स के लिये:

COVID-19 के वैश्विक प्रभाव, COVID-19 पर नियंत्रण के लिये तकनीकी का प्रयोग  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्पाइवेयर पेगासस का निर्माण करने वाली इज़राइल की तकनीकी कंपनी एनएसओ (NSO) ग्रुप ने कोरोनावायरस के प्रसार की निगरानी के लिये एक सॉफ्टवेयर के परीक्षण की जानकारी दी है।

मुख्य बिंदु:   

  • NSO समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के अनुसार, कोरोनावायरस के संक्रमण की निगरानी के लिये तकनीकी के प्रयोग से निजता (या निजी जानकारी की सुरक्षा) के बारे में आशंकाएँ उठ सकती हैं परंतु तकनीकी के सही और अनुपातित प्रयोग से निजता से कोई समझौता किये बगैर लोगों का जीवन बचाया जा सकता है।
  • NSO समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के अनुसार, इस सॉफ्टवेयर के परीक्षण के लिये इज़राइल सरकार ने अपनी अनुमति दे दी है, इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से इज़राइली स्वास्थ्य मंत्रालय को दो महत्त्वपूर्ण जानकारियों (संक्रमित व्यक्ति की लोकेशन और उसके संपर्क में आए लोगों की जानकारी) के आधार पर कोरोनावायरस के प्रसार को नियंत्रित करने में सहायता मिलेगी।  
  • ध्यातव्य है कि नवंबर 2019 में लोकप्रिय मेसेजिंग प्लेटफोर्म व्हाट्सएप ने दावा किया कि NSO द्वारा निर्मित ‘पेगासस’ (Pegasus) नामक स्पाइवेयर के माध्यम से विश्व के कई देशों (जिनमें भारत भी शामिल है) में व्हाट्सएप का प्रयोग करने वाले लोगों की जासूसी की गई थी  
  • NSO के अनुसार, कंपनी केवल सरकारों और संस्थागत खरीदारों को ही अपनी तकनीक बेचती है।  

कैसे काम करता है यह साफ्टवेयर?

  • NSO के अनुसार, एक विश्वसनीय और सरल महामारी-विज्ञान जाँच के लिये दो चीज़ों की आवश्यक है: 
    1. व्यक्ति की जानकारी की आवश्यकता है, जिससे सेलुलर कंपनी से उसका डेटा को प्राप्त किया जा सके 
    2. यह जानने की आवश्यकता है कि संक्रमित व्यक्ति पिछले 14 दिनों में कहाँ-कहाँ गया था।
  • NSO समूह के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के अनुसार, हमारे लिये यह अच्छी बात यह कि वर्तमान में प्रत्येक मोबाइल के लोकेशन की जानकारी सेलुलर कंपनी के पास नियमित रूप से उपलब्ध होती है।
  • किसी व्यक्ति के कोरोनावायरस संक्रमित होने की पुष्टि होने के बाद इस जानकारी के आधार पर पिछले 14 दिनों में मरीज़ द्वारा यात्रा की गई जगहों और उससे एक निश्चित दूरी में रहे लोगों की पहचान की जा सकती है।  
  • मरीज़ के संपर्क में आए लोगों की जानकारी के आधार पर ऐसे लोग जिनके संक्रमित होने की संभावना अधिक हो, को सेल्फ-आइसोलेशन (Self-Isolation) में रहने के लिये निर्देशित किया जा सकता है।
  • साथ ही इसके माध्यम से चिकित्सकों को संक्रमण के स्रोत और संभावित संक्रमित लोगों की विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध कराई जा सकेगी।   
  • इस जानकारी में केवल मोबाइल की सेलुलर लोकेशन (Cellular Location) का डेटा होता है, अतः इस प्रक्रिया में लोकेशन के अतिरिक्त व्यक्ति की कॉल की रिकार्डिंग या मैसेज अथवा अन्य कोई व्यक्तिगत जानकारी नहीं ली जा सकती।   

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस