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शासन व्यवस्था

दवा की कीमतें तय करने में NPPA की भूमिका

  • 21 Mar 2022
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण, थोक मूल्य सूचकांक।

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण और दवाओं के मूल्य निर्धारण में इसकी भूमिका।

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLEM) के तहत सूचीबद्ध दवाओं और उपकरणों की कीमतों में 10% से अधिक वृद्धि की अनुमति दे सकता है।

NPPA और इसका जनादेश:

  • परिचय:
    • ‘राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण’ का गठन वर्ष 1997 में भारत सरकार द्वारा रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के तहत औषधि विभाग (DoP) के एक संलग्न कार्यालय के तौर पर दवाओं के मूल्य निर्धारण हेतु स्वतंत्र नियामक के रूप में और सस्ती कीमतों पर दवाओं की उपलब्धता एवं पहुँच सुनिश्चित करने हेतु किया गया था।
    • इसे ड्रग्स (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 1995-2013 (DPCO) के तहत नियंत्रित थोक दवाओं एवं फॉर्मूलेशन की कीमतों को तय/संशोधित करने तथा देश में दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु बनाया गया था।
      • एक बल्क ड्रग (Bulk drug) जिसे एपीआई (Active Pharmaceutical Ingredient- API) भी कहा जाता है, एक दवा के रूप में रासायनिक अणु हैं जो उत्पाद को चिकित्सीय प्रभाव प्रदान करते हैं।
  • जनादेश:
    • औषधि (मूल्य नियंत्रण) आदेश के प्रावधानों को इसे प्रत्यायोजित शक्तियों के अनुसार लागू और कार्यान्वित करना।
    • एनपीपीए के निर्णयों से उत्पन्न सभी कानूनी मामलों से निपटने के लिये उपाय करना।
    • दवाओं की उपलब्धता की निगरानी करना, कमी की पहचान करना तथा उपचारात्मक कदम उठाना।
    • थोक दवाओं और फॉर्मूलेशन के लिये उत्पादन, निर्यात एवं आयात, अलग-अलग कंपनियों की बाज़ार हिस्सेदारी, कंपनियों की लाभप्रदता आदि पर डेटा एकत्र करना/बनाए रखना तथा दवाओं/ फार्मास्यूटिकल्स के मूल्य निर्धारण के संबंध में प्रासंगिक अध्ययन करना।

मूल्य निर्धारण तंत्र कैसे कार्य करता है?

  • NLEM के तहत सभी दवाएँ मूल्य विनियमन के अधीन हैं। NLEM बुखार, संक्रमण, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, एनीमिया आदि के इलाज़ के लिये इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं को सूचीबद्ध करता है तथा इसमें आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली दवाएँ जैसे- पैरासिटामोल (Paracetamol), एजिथ्रोमाइसिन (Azithromycin) आदि शामिल हैं।
    • स्वास्थ्य मंत्रालय मूल्य विनियमन के योग्य दवाओं की एक सूची तैयार करता है, जिसके बाद फार्मास्युटिकल विभाग उन्हें DPCO की अनुसूची 1 में शामिल करता है।
    • अफोर्डेबल मेडिसिन्स एंड हेल्थ प्रोडक्ट्स (SCAMHP) पर स्थायी समिति ‘ड्रग प्राइस रेगुलेटर नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी’ (NPPA) को सूची की समीक्षा करने की सलाह देगी। NPPA तब इस अनुसूची में दवाओं की कीमतें तय करता है।
  • ड्रग्स (मूल्य) नियंत्रण आदेश 2013 के अनुसार, अनुसूचित दवाएँ जो फार्मा बाज़ार का लगभग 15% हैं, WPI (थोक मूल्य सूचकांक) के अनुसार सरकार द्वारा इनमें वृद्धि की अनुमति है, जबकि शेष 85% के मामले में 10% प्रत्येक वर्ष की स्वचालित वृद्धि की अनुमति है।
    • अनुसूचित दवाओं की कीमतों में वार्षिक परिवर्तन नियंत्रित है और कभी-कभी ही 5% को पार करता है।
    • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (Drugs and Cosmetics Act 1940) के तहत दवाओं को अनुसूचियों में वर्गीकृत किया जाता है तथा उनके भंडारण, प्रदर्शन, बिक्री, वितरण, प्रिस्क्राइबिंग आदि हेतु नियम निर्धारित किये जाते हैं।
  • वर्तमान में फार्मा लॉबी (Pharma Lobby) न केवल डब्ल्यूपीआई पर बल्कि अनुसूचित दवाओं के लिये भी कम-से-कम 10 फीसदी की बढ़ोतरी की मांग कर रही है।
    • पिछले कुछ वर्षों में इनपुट लागत में वृद्धि हुई है इसका एक कारण यह भी है कि देश की 60%-70% दवा की ज़रूरत चीन पर निर्भर है।

स्रोत: द हिंदू

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