गरीबों के लिये याचिका दाखिल करना हुआ आसान | 17 Feb 2017
सन्दर्भ
मध्यम और गरीब आय वर्ग के लोगों के लिये देश की कानूनी सहायता लेना आसान हो गया है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने मध्यम आय समूह योजना लागू की है। यह आत्म समर्थन देने वाली योजना है और इसके तहत 60,000 रुपए प्रति महीने और 7,50,000 रुपए वार्षिक आय से कम आय वाले लोगों के लिये कानूनी सहायता दी जाएगी।
योजना से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु
- सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860(2) के अन्तर्गत सोसायटी के प्रबंधन का दायित्व गवर्निंग बॉडी के सदस्यों को दिया गया है। गवर्निंग बॉडी में भारत के प्रधान न्यायाधीश संरक्षक होंगे। अटार्नी जनरल पदेन उपाध्यक्ष होंगे। सॉलिसीटर जनरल ऑफ इंडिया मानद सदस्य होंगे और उच्चतम न्यायालय के अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता सदस्य होंगे।
- उच्चतम न्यायालय के नियमों के अनुसार न्यायालय के समक्ष याचिका केवल एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के ज़रिये दाखिल की जा सकती है। सेवा शुल्क के रूप में उच्चतम न्यायालय मध्य आय समूह कानूनी सहायता सोसायटी (एससीएमआईजीएलएएस) को 500 रुपए का भुगतान करना होगा। आवेदक को सचिव द्वारा बताई गई फीस जमा करानी होगी।
- यह योजना में संलग्न अनुसूची के आधार पर होगी। एमआईजी कानूनी सहायता के अंतर्गत सचिव याचिका दर्ज करेंगे और इसे पैनल में शामिल एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड/दलील पेश करने वाले वकील/वरिष्ठ अधिवक्ता को भेजेंगे। यदि एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड इस बात से संतुष्ट हैं कि यह याचिका आगे की सुनवाई के लिये उचित है, तो सोसायटी आवेदक के कानूनी सहायता अधिकार पर विचार करेगी। जहाँ तक योजना का लाभ प्राप्त करने के लिये आवेदक की पात्रता का प्रश्न है, तो याचिका के बारे में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड की राय अंतिम राय मानी जाएगी।
- योजना के अंतर्गत मध्यम वर्ग के वैसे लोग जो उच्चतम न्यायालय में मुकद्दमों का खर्च नहीं उठा सकते, वे कम राशि देकर सोसायटी की सेवा ले सकते हैं। इस योजना के लाभ लेने के इच्छुक व्यक्ति को निर्धारित फार्म भरना होगा और इसमें शामिल सभी शर्तों को स्वीकार करना होगा।
- योजना के अनुसार याचिका के संबंध आने वाले विभिन्न खर्चों को पूरा करने के लिये आकस्मिक निधि बनाई जाएगी। याचिका की स्वीकृति के स्तर तक आवेदक को इस आकस्मिक निधिमें से 750 रुपए जमा कराने होंगे। यह सोसायटी में जमा किये गए शुल्क के अतिरिक्त होगा। यदि एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड यह समझते हैं कि याचिका आगे अपील की सुनवाई योग्य नहीं है, तो समिति द्वारा न्यूनतम सेवा शुल्क के तौर पर लिये गए 750 रुपए को घटाकर पूरी राशि चेक से आवेदक को लौटा दी जाएगी।
- यदि योजना के अन्तर्गत नियुक्त अधिवक्ता सौंपे गए केस के मामले में लापरवाह माने जाते हैं तो उन्हें आवेदक से प्राप्त फीस के साथ केस को वापस करना होगा। इस लापरवाही की ज़िम्मेदारी सोसायटी की नहीं होगी बल्कि मुवक्किल से जुड़े अधिवक्ता की होगी, साथ ही अधिवक्ता का नाम पैनल से समाप्त कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि समाज के कम आय वर्ग के लोगों के लिये याचिका दाखिल करने के काम को सहज बनाने के लिये माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह योजना लागू की है।