विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
सेलेनियम-ग्रैफीन उत्प्रेरक
- 17 Jun 2019
- 7 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत की एक बहु-संस्थागत टीम (Multi-Institutional Team) ने सेलेनियम-ग्रैफीन-आधारित उत्प्रेरक (Selenium-Graphene–based catalyst) विकसित किया है। उल्लेखनीय है कि यह उत्प्रेरक प्लैटिनम (Platinum) आधारित उत्प्रेरक की तुलना में उच्च कोटि का है तथा अत्यधिक प्रभावी है एवं इसकी लागत भी कम है।
शोध में शामिल संस्थान
1. इस कार्य में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, हैदराबाद (Tata Institute of Fundamental Research, Hyderabad-TIFR-H);
2. हैदराबाद विश्वविद्यालय (University of Hyderabad); और
3. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (Indian Institute of Science Education and Research-IISER), तिरुवनंतपुरम
इस शोध को अमेरिकन केमिकल सोसाइटी (American Chemical Society): एप्लाइड एनर्जी मैटेरियल्स (Applied Energy Materials) नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस सोसाइटी का लक्ष्य रसायन विज्ञान के क्षेत्र में ऊर्जा रुपांतरण के माध्यम से लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना है।
प्रमुख बिंदु
- आधुनिक ऊर्जा तकनीक के अंतर्गत ऐसे अच्छे उत्प्रेरक (जैसे- हाइड्रोजन ईंधन आधारित कारों में ईंधन सेल जिनका व्यावसायिक उपयोग किया जाता है) की आवश्यकता होती है जिनकी उत्पादकता एवं लागत उचित हो।
- सामान्यतः ईंधन सेल में बहुमूल्य प्लैटिनम का प्रयोग किया जाता है, शुरुआत में महंगी धातु-आधारित प्रौद्योगिकियाँ कुशलतापूर्वक कार्य करती है लेकिन थोड़े-ही समय पश्चात् धीरे-धीरे इनकी उत्पादकता कम हो जाती है।
- ईंधन सेल्स ऑक्सीजन अपचयन अभिक्रिया के आधार पर कार्य करती हैं तथा ग्रैफीन (Graphene) इस अभिक्रिया में ऋणात्मक-उत्प्रेरक (Negative Catalyst) की भूमिका निभाता है।
- इस प्रकार ऑक्सीजन के अपचयन की अभिक्रिया दो चरणों में संपन्न होती है एवं प्रत्येक चरण में दो इलेक्ट्रॉनों का उपभोग होता है, जो न तो मेटल-एयर बैटरियों (Metal-Air Batteries) और न ही ईंधन सेल्स के लिये उपयुक्त है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, अक्सर प्लेटिनम का उपयोग ऑक्सीजन अपचयन अभिक्रिया को उत्प्रेरित करने के लिये किया जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए अनुसंधानकर्त्ताओं ने इसे प्रतिस्थापित करने का प्रयास किया। इसमें ग्रैफीन के परमाणुओं को अल्प मात्रा में सेलेनियम परमाणुओं के साथ प्रतिस्थापित करके जो नया संकर उत्प्रेरक बनता है। वह भी प्लैटिनम उत्प्रेरक की तरह व्यवहार करता है।
- अनुसंधानकर्त्ताओं के अनुसार, न तो सेलेनियम और न ही ग्रैफीन एकल रूप से उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकते है, लेकिन इनका संयोजन (मिश्रण) एक अच्छे उत्प्रेरक की भाँति कार्य करता है। जब सेलेनियम की थोड़ी मात्रा के साथ उच्च मात्रा में कार्बन युक्त ग्रेफीन को मिलाया जाता है तो एक उच्च श्रेणी का उत्प्रेरक प्राप्त होता है, जो सस्ता भी है और उपयोगी भी।
विषाक्त प्रतिरोधी (Poisoning-Resistant)
- सामान्यतः ईंधन सेल्स के रूप में मेथेनॉल सेल्स का प्रयोग किया जाता है। लेकिन इसमें विषाक्त प्रभाव पाया जाता है जिसमें मेथनॉल, अभिक्रिया के दौरान ऋणात्मक इलेक्ट्रोड (Negative Electrode) पर जमा होने लगता है, इस कारण इलेक्ट्रोड कुछ समय पश्चात् अप्रभावी हो जाता है।
- विशेषज्ञों की मानें तो एकल-परमाणु उत्प्रेरक की अवधारणा कोई नई नहीं है। पहले इनके स्थान पर प्लैटिनम, पैलेडियम और सोने, जैसी भारी धातुओं का प्रयोग किया जाता था। लेकिन इस समूह द्वारा सेलेनियम का प्रयोग करना एक असाधारण विचार है।
- शोधकर्त्ताओं के अनुसार, इस प्रकार के उत्प्रेरक को धातु-एयर बैटरी जैसे अन्य क्षेत्रों में भी प्रयोग किया जा सकता है तथा बैटरियों में उच्च ऊर्जा घनत्व वाले उपकरणों के विकास एवं प्रयोग हेतु अनुसंधान जारी है, जो मौजूदा लिथियम आयन-बैटरी से बेहतर होंगे।
- उत्प्रेरक- वे पदार्थ जो रासायनिक अभिक्रिया के दौरान रासायनिक एवं मात्रात्मक रूप में बिना परिवर्तित हुए रासायनिक अभिक्रिया की दर में वृद्धि करते हैं, उत्प्रेरक कहलाते हैं एवं इस परिघटना को उत्प्रेरण कहते हैं।
सेलेनियम
- सेलेनियम एक अधात्विक रासायनिक तत्त्व है, जो आवर्त सारणी के समूह XVI का सदस्य है।
- इसके रासायनिक और भौतिक गुणों की प्रवृत्ति सल्फर और टेल्यूरियम जैसी होती है।
- सेलेनियम में अच्छे फोटोवोल्टिक और फोटोकॉन्डक्टिव गुण होते हैं, तथा इसका उपयोग फोटोसेल, लाइट मीटर एवं सौर सेल जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स में बड़े पैमाने पर किया जाता है।
ग्रैफीन
- यह एक षट्कोणीय जाली में व्यवस्थित कार्बन परमाणुओं की एक मोटी परमाणु परत होती है। यह ग्रेफाइट के निर्माण-खंड है (जिसका उपयोग अन्य चीजों के अलावा पेंसिल में भी किया जाता है)।