जैव विविधता और पर्यावरण
गंगा नदी के लिये पर्यावरणीय प्रवाह से जुड़ी अधिसूचना
- 11 Oct 2018
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने गंगा नदी के लिये उस न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह (Environmental Flow or E-Flow) को अधिसूचित किया जिसे इस नदी में विभिन्न स्थानों पर निश्चित तौर पर बनाए रखना है।
पर्यावरणीय प्रवाह और उसके लाभ
- पर्यावरणीय प्रवाह वास्तव में वह स्वीकार्य प्रवाह है जो किसी नदी को अपेक्षित पर्यावरणीय स्थिति अथवा पूर्व निर्धारित स्थिति में बनाए रखने के लिये आवश्यक होता है।
- गंगा नदी के लिये E-Flow की अधिसूचना जारी हो जाने से इसके ‘अविरल प्रवाह’ को सुनिश्चित करने में काफी मदद मिलेगी।
- सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना से यह सुनिश्चित होगा कि सिंचाई, पनबिजली, घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग इत्यादि से जुड़ी विभिन्न परियोजनाओं एवं संरचनाओं के कारण नदी का प्रवाह किसी अन्य तरफ मुड़ जाने के बावजूद नदी में जल का न्यूनतम अपेक्षित पर्यावरणीय प्रवाह निश्चित रूप से बरकरार रहेगा।
सरकार द्वारा अधिसूचित E-Flow
1. ग्लेशियरों से आरंभ होने वाला और संबंधित संगम से होकर गुजरने के बाद अंत में में देवप्रयाग से हरिद्वार तक मिलने वाला ऊपरी गंगा नदी बेसिन विस्तार:
क्र.सं. | ऋतु | माह | प्रत्येक पूर्ववर्ती 10 दिवसीय अवधि के दौरान प्रेक्षित मासिक औसत प्रवाह का प्रतिशत (%) |
1. | शुष्क | नवंबर से मार्च | 20 |
2. | क्षीण | अक्टूबर, अप्रैल और मई | 30 |
3. | उच्च प्रवाह ऋतु | जून से सितंबर | 30*# |
*# उच्च प्रवाह ऋतु के मासिक प्रवाह का 30 प्रतिशत
2. हरिद्वार (उत्तराखंड) से उन्नाव (उत्तर प्रदेश) तक गंगा नदी के मुख्य मार्ग का विस्तार:
क्र.स. | बैराज की अवस्थिति |
बैराजों के सन्निकट निम्न धारा को निर्मुक्त करने वाला न्यूनतम प्रवाह (क्यूमैक्स में) गैर- मानसून (अक्टूबर से मई) |
बैराजों के सन्निकट निम्न धारा को निर्मुक्त करने वाला न्यूनतम प्रवाह (क्यूमैक्स में) मानसून (जून से सितम्बर) |
1. | भीमगौड़ा (हरिद्वार) | 36 | 57 |
2. | बिजनौर | 24 | 48 |
3. | नरौरा | 24 | 48 |
4. | कानपुर | 24 | 48 |
E-Flow की विशेषताएँ
- न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह का अनुपालन सभी मौजूदा, निर्माणाधीन और भावी परियोजनाओं के लिये मान्य है।
- जो वर्तमान परियोजनाएँ फिलहाल इन मानकों पर खरी नहीं उतर रही हैं उन्हें तीन वर्षों की अवधि के अंदर निश्चित रूप से अपेक्षित पर्यावरणीय प्रवाह मानकों का अनुपालन करना होगा।
- ऐसी लघु एवं सूक्ष्म परियोजनाएँ जिनके कारण नदी की विशेषताओं अथवा उसके प्रवाह में व्यापक बदलाव नहीं होता है, उन्हें इन पर्यावरणीय प्रवाह से मुक्त कर दिया गया है।
- इस नदी विस्तार में प्रवाह की स्थिति पर समय-समय पर हर घंटे करीबी नज़र रखी जाएगी। केंद्रीय जल आयोग संबंधित आँकड़ों का नामित प्राधिकरण एवं संरक्षक होगा और प्रवाह की निगरानी एवं नियमन की ज़िम्मेदारी इसी आयोग पर होगी।
- संबंधित परियोजना डेवलपर्स और प्राधिकरणों को 6 माह के भीतर परियोजना के समुचित स्थानों पर स्वत: डेटा प्राप्ति एवं डेटा संप्रेषण सुविधाएँ स्थापित करनी होंगी।