मुख्य काज़ी द्वारा जारी तलाक प्रमाणपत्र वैध नहीं | 12 Jan 2017

सन्दर्भ 

11 जनवरी को मद्रास उच्च न्यायलय ने एक अंतरिम आदेश जारी करके अपने अगले आदेश तक मुख्य काज़ियों द्वारा ‘तलाक प्रमाणपत्र’ जारी करने पर रोक लगा दी है| ध्यातव्य है कि तलाक प्रमाणपत्र इस्लामिक शरीयत के आधार पर तलाक को वैध करार देने वाला एक प्रमाणपत्र होता है| 

प्रमुख बिंदु 

  • न्यायालय द्वारा यह आदेश वरिष्ठ अधिवक्ता बादर सईद द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) पर जारी किया है| 
  • वरिष्ठ अधिवक्ता बादर सईद ने स्पष्ट किया था कि भारत में विशेषकर तमिलनाडु में, काज़ियों को तलाक प्रमाणपत्र जारी करने की शक्ति नहीं दी गई है|
  • याचिका में यह दावा किया गया था कि काज़ी सामान्यतः तलाक को मान्यता प्रदान करने के लिये सुलह (reconciliation) जैसे कुछ आवश्यक तत्त्वों का अनुसरण किये बिना ही प्रमाणपत्र जारी कर देते हैं| साथ ही, कभी-कभी यह कार्य पत्नी की जानकारी के बिना ही कर दिया जाता है|
  • इस प्रकार, मनमाने ढंग से जारी किये गए इन प्रमाणपत्रों से मुस्लिम महिलाओं को बेहद  परेशानी होती है| 
  • हालाँकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि काज़ियों को एक बार मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत आने वाले न्यायिक अधिकरणों पर विचार करना चाहिये| 
  • ब्रिटिश शासन के समय स्थापित कोर्ट ऑफ लॉ के बाद से वर्तमान समय तक ऐसी शक्तियाँ किसी को नही सौंपी गई हैं| 
  • उनके अनुसार,1880 में बना काज़ी अधिनियम ( The Kazi Act) बहुत ही स्पष्ट था, इसमें काज़ियों को न्यायिक निर्णय देने की कोई शक्ति प्रदान नही की गई थी|
  • सईद ने आरोप लगाया कि इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के आधार पर तलाक संवैधानिक रूप से वैध है, जबकि तीन तलाक के लागू होने की परिस्थितियाँ अनुकूल हैं अथवा नहीं, इसका न्याय-निर्णयन काज़ियों द्वारा नहीं किया जा सकता| यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका संचालन केवल कोर्ट ऑफ लॉ द्वारा किया जा सकता है|
  • उन्होंने न्यायालय के समक्ष कुछ प्रमाणपत्र प्रस्तुत किये तथा यह बताया कि 1997 से इन प्रमाणपत्रों का विषय एकसमान है|
  • याचिकाकर्ता ने यह दलील दी कि हालाँकि अभी तक उस तथ्य का पता नहीं चल पाया है जिसके तहत काज़ियों द्वारा इन प्रमाणपत्रों को जारी किया जाता था| इसके अतिरिक्त, यह भी स्पष्ट नहीं होता कि यह प्रमाणपत्र केवल ‘विचार’ या ‘राय’ की प्रकृति ही रखता है|


मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का पक्ष

मुस्लिम पर्सनल लॉ  बोर्ड ने इस सन्दर्भ में अपना पक्ष  प्रस्तुत करते हुए कहा कि वह उस फॉर्मेट का परीक्षण करने की इच्छा रखता है जिसके आधार पर काज़ियों द्वारा ऐसे प्रमाणपत्र जारी किये जा सकते हैं, ताकि इसके फलस्वरूप कोई अस्पष्टता उत्पन्न न हो| 

जनहित याचिका की दलील पर उच्च न्यायालय का आदेश 

मुख्य न्यायाधीश एस.के. पॉल और न्यायाधीश एम.एम. सुरेश की प्रथम खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया है कि न्यायालयों की कानूनी कार्यवाहियों के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये मुख्य काज़ी द्वारा जारी किया जाने वाला यह प्रमाणपत्र केवल एक विचार है तथा इसकी कोई कानूनी सार्थकता नहीं है|

हालाँकि, खंडपीठ ने इस संबंध में अपने अंतरिम निर्देश तो जारी कर दिये हैं, परन्तु इस मुद्दें को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के विचार के लिए लंबित रखा गया है|