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‘उपादान संदाय’ : उपहार नहीं अपितु एक संपत्ति

  • 20 Oct 2017
  • 4 min read

संदर्भ

हाल ही में नियोक्ता के दायित्वों का उल्लेख करते सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया था कि उपादान (Gratuity ) का भुगतान कर्मचारी को लाभ पहुँचाने के लिये अनावश्यक रूप से नहीं किया जाता है, बल्कि यह नियोक्ता (employer) का दायित्व है। विदित हो कि उपादान संदाय अधिनियम, 1972 के अनुसार 10 अथवा 10 से अधिक कर्मचारी युक्त प्रत्येक संस्था उपादान भुगतान के लिये उत्तरदायी है।

प्रमुख बिंदु

  • इसी अवधारणा को ध्यान में रखते हुए और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के प्रयोजन से विधायिका ने उन लोगों की एक संपूर्ण सूची तैयार की, जिन्हें इस कल्याणकारी कानून से लाभ पहुँच सकता था। इस सूची में फैक्ट्री के कर्मचारियों और खदानों, तेल क्षेत्रों, बागानों, बंदरगाहों, रेलवे कंपनियों और दुकानों में काम करने वाले कामगारों को शामिल किया गया था।
  • इस प्रकार वर्ष 1972 के अधिनियम को उद्योगों, फैक्ट्रियों और संस्थाओं के ‘वेतन-अर्जक लोगों’ के लिये एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुरक्षा कानून के रूप में देखा गया।
  • उपादान कानून सेवानिवृत्त होने के पश्चात् कामगारों (चाहे वह सेवानिवृत्ति के नियमों, शारीरिक विकलांगता अथवा शरीर के किसी भाग में चोट पहुँचने के कारण सेवानिवृत्त हुआ है) को सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराता है।
  • ‘उपादान संदाय’ सेवानिवृत्त होने के पश्चात् होने वाली समस्याओं और असुविधाओं के लिये दी जाने वाली वित्तीय सहायता (financial assistance) है।
  • दरअसल, सरकार ने वेतन वृद्धि और मुद्रास्फीति को संज्ञान में लेते हुए इस कानून में आवधिक उन्नयन (समय-समय पर बदलाव) की आवश्यकता को मान्यता प्रदान की है। इस अधिनियम में नवीनतम बदलाव सितम्बर में किया गया था, जब केंद्र सरकार ने संसद में उपादान संदाय (संशोधन) विधेयक, 2017 को मंजूरी दी थी। इस विधेयक में कर-मुक्त उपादान की वर्तमान अधिकतम सीमा को दोगुना करके 20 लाख रुपए करने प्रस्ताव रखा गया था। 
  • वर्ष 2017 के संशोधन विधेयक में निजी क्षेत्र और सार्वजानिक क्षेत्र के उद्यमों, सरकार के अंतर्गत आने वाले स्वायत्त संगठनों (जो केन्द्रीय सिविल सेवा(पेंशन) के नियमों के अंतर्गत नहीं आते हैं) और केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिये उपादान की अधिकतम सीमा में वृद्धि कर 20 लाख रुपए करने का प्रस्ताव है।

निष्कर्ष

वर्तमान में उपादान राशि की अधिकतम सीमा 10 लाख रुपए है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2010 में की गई थी। इससे पहले उपादान की अधिकतम राशि 3.5 लाख रुपए थी। हालांकि केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिये भी उपादान की अधिकतम राशि 10 लाख ही थी, परन्तु सातवें वेतन आयोग के लागू होने के बाद यह राशि दोगुनी होकर 20 लाख रुपए हो गई, जिसे 1 जनवरी 2016 से लागू किया गया था।

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