शांति के लिये नोबेल पुरस्कार 2019 | 16 Oct 2019
प्रीलिम्स के लिये:
नोबल पुरस्कार, मैप पर इथियोपिया-इरीट्रिया की अवस्थिति,
मेन्स के लिये:
इथियोपिया-इरीट्रिया के बीच संबंध
चर्चा में क्यों
इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद को अंतर्राष्ट्रीय शांति और सहयोग के लिये किये गए उनके प्रयासों (विशेष रूप से शत्रु देश इरीट्रिया के साथ शांति स्थापित करने) के लिये वर्ष 2019 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिये चुना गया है।
मुख्य बिंदु
- इथियोपिया के प्रधान मंत्री अबी अहमद अली ने पड़ोसी देश इरीट्रिया के साथ 20 वर्ष से चल रहे युद्ध का अंत किया।
- दोनों देशों ने व्यापार, कूटनीतिक और यात्रा संबंधों को पुन: स्थापित किया तथा हॉर्न ऑफ अफ्रीका ‘शांति और मित्रता का एक नया युग’ प्रारंभ किया।
इथियोपिया-इरीट्रिया संघर्ष की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- वर्ष 1993 में इरीट्रिया इथियोपिया से अलग होकर एक स्वतंत्र देश बना, जो लाल सागर के तट पर हॉर्न ऑफ अफ्रीका (Horn of Africa) में स्थित था।
- लेकिन इरीट्रिया के स्वतंत्र होने के पाँच वर्ष बाद ही बाडमे (Badme) शहर पर नियंत्रण को लेकर दोनों देशों के बीच फिर से सैन्य गतिरोध शुरू हो गया। उल्लेखनीय है बाडमे एक सीमावर्ती शहर है लेकिन इसका कोई स्पष्ट महत्त्व नहीं है।
- जैसे ही दोनों देशों के बीच संघर्ष एक बड़े शरणार्थी संकट के रूप में विकसित हुआ इरीट्रिया के हज़ारों लोग देश छोड़कर यूरोप भाग गए।
- जून 2000 में दोनों देशों ने एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस समझौते ने औपचारिक रूप से युद्ध को समाप्त कर दिया और विवाद को निपटाने के लिये एक सीमा आयोग की स्थापना की।
- आयोग ने 2002 में अपना "अंतिम और बाध्यकारी" जनादेश दिया और बाडमे इरीट्रिया को सौंप दिया गया।
इथियोपिया-इरीट्रिया के बीच शांति
- इथियोपिया एक स्थलाबद्ध देश है, यही कारण है कि और इरीट्रिया के साथ चले लंबे युद्ध के दौरान यह अदन की खाड़ी और अरब सागर तक पहुँच बनाने के लिये जिबूती पर बहुत अधिक निर्भर हो गया था।
- इथियोपिया-इरीट्रिया के बीच हुए शांति समझौते के परिणामस्वरूप इथियोपिया के लिये इरीट्रिया बंदरगाहों के प्रयोग का मार्ग प्रशस्त कर दिया जिससे जिबूती पर इसकी निर्भरता को संतुलित करने में सहायता मिली।
- दूसरी ओर, इथियोपिया के साथ निरंतर चले युद्ध के कारण इरीट्रिया को भी न केवल आर्थिक स्थिरता बल्कि सामाजिक एवं कूटनीतिक अलगाव का सामना करना पड़ा।
- इरीट्रिया को देश में बार-बार मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिये संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के आरोपों का भी सामना करना पड़ा।