न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने की फिलहाल कोई योजना नहीं | 04 Jan 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विधि और न्याय मंत्रालय ने एक संसदीय स्थायी समिति द्वारा न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने के लिये की गई सिफारिश का जवाब देते हुए यह स्पष्ट किया कि वर्तमान में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने की योजना नहीं है।
क्या थी संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश?
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाकर 67 साल कर दी जानी चाहिये और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाकर 65 साल कर दी जानी चाहिये।
- भूपेन्द्र यादव की अध्यक्षता वाली समिति का मानना है कि ऐसा करने से मौजूदा न्यायाधीशों को बनाए रखने में मदद मिलेगी और इससे न्यायिक रिक्तियों के साथ-साथ लंबित मामलों की संख्या को कम करने में भी मदद मिलेगी।
समिति द्वारा व्यक्त की गई चिंताएँ
- समिति ने संसद में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों की बड़ी संख्या पर चिंता जताई।
- अब तक देश भर के 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के कुल 1,079 स्वीकृत पदों में से केवल 695 पद ही भरे गए हैं।
विधि और न्याय मंत्रालय का रुख
- मंत्रालय ने कहा कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायपालिका और कार्यपालिका की सतत् और सहयोगात्मक प्रक्रिया है।
- मंत्रालय के अनुसार, रिक्त पदों को तेजी से भरने के लिये हर संभव प्रयास किये जाते हैं। किंतु सेवानिवृत्ति, इस्तीफे या न्यायाधीशों की प्रोन्नति और न्यायाधीश की शक्ति में वृद्धि के कारण रिक्तियाँ उत्पन्न होती रहती हैं।
सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने के लिये 2010 में भी हुई थी पहल
- अगस्त 2010 में तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने लोकसभा में संविधान (114वाँ संशोधन) विधेयक, 2010 पेश किया था जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु को बढ़ाकर 65 वर्ष करने का प्रस्ताव था लेकिन संसद में इस पर कोई विचार नहीं किया गया और 15वीं लोकसभा भंग होने के साथ ही यह समाप्त हो गया।