भारत का 'चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल' | 14 Nov 2017
संदर्भ
पिछले कुछ दिनों से चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल के कारण शिलांग के स्थानीय लोगों का हर्षोल्लास चरमोत्कर्ष पर है। विदित हो कि यह त्योहार चे ब्लॉसम के आगमन का प्रतीक है। यह प्रतिवर्ष मनाया जाता है। इस वर्ष त्यौहार की शुरुआत 8 नवंबर को हो चुकी है। यह दूसरा चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल है। अतः इसके आयोजकों ने इसके नाम में अंतर्राष्ट्रीय शब्द जोड़कर इसका नाम ‘इंडिया इंटरनेशनल चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल’ (India International Cherry Blossom Festival) कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
- मेघालय के वन और पर्यावरण मंत्री ने चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल को ‘प्रकृति का उत्सव’ (a celebration of nature) घोषित किया है।
- वर्ष 2014 से ब्लॉसम नवम्बर के प्रथम सप्ताह में ही हो जाता है। ‘जैव संसाधन और सतत् विकास संस्थान’ जो भारत सरकार का संस्थान है, इस त्योहार का आयोजन करता है। इस वर्ष वर्षा का स्वरूप अनियमित था, अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक वर्षा हुई थी। परन्तु चेरी के पेड़ों पर बौर आने के लिये ठंडा मौसम चाहिये। चूँकि शिलांग में दिन और रात के तापमान में काफी अंतर है, अतः बौर आने में देर हो जाती है।
- जापान जैसे देशों में चेरी ब्लॉसम बसंत में दिखाई देते हैं। जापानी चेरी ब्लॉसम वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ‘प्रून्स येदोएंसिस’ (Prunus yedoensis) है जिसे सामान्यतः ‘सोमी योशिमा’ (Somei Yoshima) के नाम से जाना जाना जाता है।
- उत्तर-पूर्वी भारत मुख्यतः शिलांग में चेरी ब्लॉसम का वैज्ञानिक नाम ‘प्रून्स ‘सेरासोइड्स’ (Prunus cerasoides) है। इसे ‘जंगली हिमालयी चेरी ब्लॉसम इन ऑटम’ (Wild Himalayan Cherry and blossoms in autumn) के नाम से भी जाना जाता है।
- इसके फल खाने योग्य होते हैं परन्तु ब्लॉसम के मौसम में ये पेड़ हल्के गुलाबी और सफ़ेद रंग के फूलों से भर जाते हैं।
- पिछले वर्ष नवंबर के दूसरे सप्ताह में इस त्योहार का आयोजन किया गया था। इस समय फूल गिरने लगे थे। अतः इस वर्ष यह त्योहार जल्दी मनाया जा रहा है। इस वर्ष फूलों के न आने पर यह संकेत मिलता है कि जलवायु कारक पौधों की प्रजातियों के जीवन चक्र को प्रभावित कर रहे हैं। चेरी के वृक्ष जंगलों में स्वतः ही उगते हैं परन्तु वनाधिकारियों ने शिलांग में कम से कम 2,000 वृक्ष लगाए हैं।
- मई 2015 से लेकर जून 2017 तक राज्य वन विभाग ने शिलॉग में और उसके आस-पास के क्षेत्रों में लगभग 5,000 चेरी के वृक्ष लगाए। आगामी पाँच वर्षों में ये वृक्ष पूरी तरह से फूलों से भर जाएंगे।
- शिलांग के कुछ स्थानीय नागरिकों का मानना है कि इसके फूल ऊपरी शिलांग में शिलॉग चोटी के निकट लगते हैं। सबसे पहले इन फूलों को ऊँचाई में देखा जाता है और इसके बाद अगले कुछ दिनों में ये शहर में प्रवेश करते हैं।
चुनौतियाँ
- उत्तर-पूर्व में जलवायु परिवर्तन स्थितियों पर कार्य कर रहे विशेषज्ञों ने फूलों (जिनका आर्थिक, सांस्कृतिक और सौन्दर्य के लिये महत्त्व है) की व्यापक आवश्यकता को रेखांकित किया है। उनके अनुसार, कुछ पौधे जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं तथा यह देखा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ब्लॉसम देरी से आते हैं। मानसून के बाद की समयावधि और सर्दियों में होने वाली वर्षा के कारण धान, आलू, सरसों और सब्जियाँ जैसी फसलें भी प्रभावित होती हैं।
- आयोजकों ने अगले वर्ष इस त्योहार की तारीख का निर्धारण करने के लिये जापान से कुछ तकनीकी मदद लेने का निर्णय लिया है, ताकि चेरी की ब्लॉसम अवस्था की भविष्यवाणी की जा सके।