भारतीय समाज
यौन अपराधों पर मृत्यु-दंड संबंधी रिपोर्ट
- 18 Jan 2020
- 5 min read
प्रीलिम्स के लिये:रिपोर्ट से संबंधित आँकड़े मेन्स के लिये:आपराधिक न्याय प्रणाली व समाज पर पड़ने वाले प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (National Law University-NLU) द्वारा जारी रिपोर्ट में ये तथ्य प्रकाश में आए हैं कि पिछले कुछ वर्षों में यौन अपराधों के मामलों में मृत्यु-दंड दिये जाने की संख्या में वृद्धि हुई है।
प्रमुख बिंदु:
- राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के प्रोजेक्ट 39A के द्वारा जारी ‘भारत में मृत्यु-दंड: वार्षिक सांख्यिकी (The Death Penalty in India: Annual Statistics)’ नामक रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2019 में यौन अपराधों में हुई हत्याओं के मामलों में मृत्यु-दंड दिये जाने की संख्या में पिछले 4 वर्षों में सर्वाधिक वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2019 में देश के सत्र न्यायालयों में 102 व्यक्तियों को मृत्यु-दंड की सजा दी गई जबकि वर्ष 2018 में यह संख्या 162 थी।
- इससे प्रतीत होता है कि मृत्यु-दंड की संख्या में महत्त्वपूर्ण गिरावट हुई है परंतु यदि आँकड़ों पर गहन विश्लेषण किया जाए तो यह पता चलता है कि यौन अपराधों के मामलों में मृत्यु दंड की प्रतिशतता में वर्ष 2018 के 41.35 प्रतिशत (162 मामलों में 67) के सापेक्ष वर्ष 2019 में 52.94 प्रतिशत (102 मामलों में 54) की वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने 27 मामलों में मृत्यु-दंड पर सुनवाई की जो वर्ष 2001 के बाद सर्वाधिक है।
- वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने सात मामलों में मृत्यु-दंड की पुष्टि की, जिसमे चार मामले यौन अपराधों से संबंधित थे।
- इस रिपोर्ट में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (The Protection of Children from Sexual Offences, Act- POCSO) पर व्यापक चर्चा करते हुए यह बताया गया है कि बच्चों के प्रति होने वाले यौन अपराधों पर मृत्यु-दंड इस दिशा में उठाया गया अनिवार्य एवं आवश्यक कदम था।
- रिपोर्ट में इस तथ्य पर भी चर्चा की गई है कि यौन अपराधों के दंड और आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) के बीच विद्यमान अंतराल ने जन आक्रोश को बढ़ावा देकर कठोर दंड की माँग में वृद्धि की है।
आपराधिक न्याय प्रणाली
- आपराधिक न्याय प्रणाली एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी अपराध करने वाले व्यक्ति को अपना बचाव करने का पूर्ण अवसर दिया जाता है।
- आपराधिक न्याय प्रणाली के प्राथमिक स्रोत पुलिस, अभियोजन और बचाव पक्ष के अधिवक्ता, न्यायालय तथा कारागार हैं।
- इसका ज्वलंत उदाहरण हैदराबाद में देखने को मिला, जहाँ पर गैंगरेप पीड़िता की मृत्यु के बाद जन आक्रोश भड़कने की आशंका के कारण आंध्र प्रदेश सरकार ने भारतीय दंड संहिता में संशोधन करते हुए रेप के मामलों में मृत्यु-दंड का प्रावधान किया।
- वर्ष 2018 में डेथ वारंट की संख्या में वृद्धि देखी गई, परंतु आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रक्रिया का सही अनुपालन न करने के कारण न्यायालयों द्वारा इन पर रोक लगा दी गई।
- डेथ वारंट के समय पर क्रियान्वयन हेतु आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रक्रिया के सही अनुपालन पर ध्यान देने की आवश्यकता व्यक्त की गई है।
डेथ वारंट
- दंड प्रक्रिया संहिता- 1973 के अंतर्गत 56 श्रेणियों में फॉर्म (Form) होते हैं। इसी में एक श्रेणी फॉर्म नंबर- 42 है। इस फॉर्म नंबर- 42 को ही डेथ वारंट कहा जाता है। इसे ब्लैक वारंट भी कहा जाता है। इसके जारी होने के बाद ही किसी व्यक्ति को फाँसी की सज़ा दी जाती है।