भारतीय राजव्यवस्था
नौवीं अनुसूची
- 15 Nov 2022
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:आरक्षण, सर्वोच्च न्यायालय, संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1951। मेन्स के लिये:संविधान की नौवीं अनुसूची। |
चर्चा में क्यों:
हाल ही में झारखंड विधानसभा ने पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण तथा स्थानीय व्यक्ति विधेयक नामक दो विधेयकों को मंज़ूरी दे दी है।
- हालाँकि इन विधेयकों का क्रियान्वन केंद्र सरकार इन्हें संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिये संशोधन के बाद किया जा सकेगा।
विधेयक
- झारखंड पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022:
- इसके माध्यम से आरक्षण का दायरा 77% तक बढ़ जाएगा।
- इसके तहत आरक्षित श्रेणी के भीतर अनुसूचित जातियों को 10-12%; ओबीसी को पूर्व के 14 % के बजाय 27%, अनुसूचित जनजातियों को पूर्व के 26% के बढ़ाकर 28% और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) को 10% का कोटा प्रदान किया जाएगा।
- झारखंड स्थानीय व्यक्ति विधेयक, 2022:
- इसका उद्देश्य स्थानीय निवासियों को उनकी भूमि पर नदियों, झीलों, मत्स्य पालन के स्थानीय विकास में उनकी हिस्सेदारी में; स्थानीय पारंपरिक और सांस्कृतिक तथा वाणिज्यिक उद्यमों में; कृषि ऋणग्रस्तता पर अधिकार या कृषि ऋण का लाभ उठाने; भूमि रिकॉर्ड के रखरखाव एवं संरक्षण में; या उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिये; निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में रोज़गार में; या राज्य में व्यापार और वाणिज्य के लिये "कुछ अधिकार, लाभ व अधिमान्य उपचार " प्रदान करना है।
- नौवीं अनुसूची में शामिल करने की आवश्यकता:
- 77% आरक्षण वर्ष 1992 के इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय निर्धारित 50% की सीमा को पार करता है।
- हालाँकि, नौवीं अनुसूची में एक कानून रखने से यह न्यायिक समीक्षा से सुरक्षित हो जाता है।
- इससे पहले, तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (शैक्षणिक संस्थानों में सीटों तथा राज्य के तहत सेवाओं में नियुक्तियों या पदों का आरक्षण) अधिनियम, 1993 ने राज्य सरकार में कॉलेजों एवं रोजगारों में 69% सीटें आरक्षित की थीं।
- नौवीं अनुसूची:
- इस अनुसूची में केंद्रीय और राज्य कानूनों को शामिल किया गया है जिसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है और इसको संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1951 द्वारा जोड़ा गया था।
- पहले संशोधन में अनुसूची में 13 कानून जोड़े गए। वर्तमान में इसमें 284 विषयों को शामिल किया है।
- इसका गठन अनुच्छेद 31B द्वारा किया गया था, जिसे अनुच्छेद 31A के साथ सरकार द्वारा कृषि सुधार से संबंधित कानूनों की रक्षा करने और जमींदारी प्रथा को समाप्त करने के लिये लाया गया था।
- जबकि अनुच्छेद 31A कानूनों के 'वर्गों (Classes)' को सुरक्षा प्रदान करता है, अनुच्छेद 31B विशिष्ट कानूनों या अधिनियमों का संरक्षण करता है।
- जबकि अनुसूची के तहत संरक्षित अधिकांश कानून कृषि/भूमि के मुद्दों से संबंधित हैं, इसके अलावा सूची में अन्य विषय शामिल हैं।
- अनुच्छेद 31B में एक पूर्वव्यापी संचालन भी है, जिसका अर्थ है कि यदि कानूनों को असंवैधानिक घोषित किये जाने के बाद नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है, तो उन्हें उनके प्रारंभ के बाद से अनुसूची में शामिल माना जाता है और इस प्रकार वे कानून मान्य है।
- हालाँकि अनुच्छेद 31B न्यायिक समीक्षा से बाहर है, सर्वोच्च न्यायालय ने अतीत में कहा है कि नौवीं अनुसूची के तहत भी कानून जाँच के लिये खुले होंगे यदि वे मौलिक अधिकारों या संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करते हैं।
नौवीं अनुसूची के कानून और न्यायिक जाँच:
- केशवानंद भारती वनाम केरल राज्य (1973): न्यायालय ने गोलकनाथ फैसले को बरकरार रखा और "भारतीय संविधान की मूल संरचना" की एक नई अवधारणा पेश की और कहा कि, "संविधान के सभी प्रावधानों में संशोधन किया जा सकता है लेकिन वे संशोधन जो संविधान के सार या मूल ढाँचे को निरस्त या समाप्त कर सकेंगे, जैसे जिसमें मौलिक अधिकार शामिल हैं उनको न्यायालय द्वारा रद्द किया जा सकता है"।
- वामन राव वनाम भारत संघ (1981): इस महत्त्वपूर्ण निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि "वे संशोधन जो 24 अप्रैल, 1973 से पहले संविधान में किये गए थे (जिस तारीख को केशवानंद भारती में निर्णय दिया गया था) वैध और संवैधानिक हैं लेकिन जो निर्दिष्ट तिथि के बाद किये गए थे उन्हें संवैधानिकता के आधार पर चुनौती दी जा सकती है।
- आई. आर. कोएल्हो वनाम तमिलनाडु राज्य (2007): यह माना गया था कि प्रत्येक कानून को अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत परीक्षण किया जाना चाहिये यदि यह 24 अप्रैल, 1973 के बाद लागू हुआ है।
- इसके अलावा न्यायालय ने अपने पिछले फैसलों को बरकरार रखा और घोषित किया कि किसी भी अधिनियम को चुनौती दी जा सकती है और न्यायपालिका द्वारा जाँच के लिये खुला है यदि यह संविधान की मूल संरचना के अनुरूप नहीं है।
- साथ ही यह भी कहा गया कि यदि नौवीं अनुसूची के तहत किसी कानून की संवैधानिक वैधता को पहले बरकरार रखा गया है, तो भविष्य में इसे फिर से चुनौती नहीं दी जा सकती है।
आगे की राह:
- यद्यपि आरक्षण आवश्यक है लेकिन कार्यपालिका या विधायिका द्वारा किसी भी आकस्मिक अथवा तर्कहीन नीतिगत पहल को बढ़ावा देने से रोकने के लिये न्यायिक समीक्षा का भी प्रावधान होना चाहिये।
- इस विषय पर विभिन्न हितधारकों को शामिल करके आरक्षण नीति में किसी भी खामी या कमियों को दूर किया जाना चाहिये। अभी आवश्यकता है कि आरक्षण नीति को खत्म करने या सीमित करने संबंधी किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के बजाय इस विवादास्पद नीति पर एक तर्कसंगत रूपरेखा विकसित की जानी चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. किस प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान भारत के संविधान में नौवीं अनुसूची को पुर:स्थापित किया गया था? (a) जवारहलाल नेहरू उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. कोहिलो मामले में क्या अभिनिर्धारित किया गया था? इस संदर्भ में, क्या आप कह सकते हैं कि न्यायिक पुनर्विलोकन संविधान के बुनियादी अभिलक्षणों में प्रमुख महत्त्व का है? (2016) |