डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिये सिफारिशें | 04 Jun 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने डिज़िटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिये गठित उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट जारी की है। इन्फोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि की अध्यक्षता में गठित इस समिति ने कारोबारियों, धारकों और ग्राहकों हेतु लागत घटाने एवं इसकी स्वीकार्यता से जुड़े बुनियादी ढाँचे का विस्तार करने की सिफारिश की है ताकि देश के डिजिटल वित्तीय समावेशन में सुधार किया जा सके।
समिति की सिफारिशें
- समिति के अनुसार, डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये सरकार को किये गए किसी भी डिजिटल भुगतान पर लगने वाले शुल्क को हटाना चाहिये।
- राज्य द्वारा संचालित संस्थाओं और केंद्रीय विभागों को किये गए डिजिटल भुगतान के लिये उपभोक्ताओं पर कोई सुविधा शुल्क नहीं होना चाहिये।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) और सरकार को मिलकर डिजिटल भुगतान व्यवस्था की निगरानी के लिये एक उचित व्यवस्था स्थापित करनी चाहिये।
- डिजिटल फाइनेंशियल इनक्लूज़न इंड़ेक्स
- इसके साथ ही समिति ने यह भी कहा है कि एक डिजिटल फाइनेंशियल इनक्लूज़न इंड़ेक्स (Digital Financial Inclusion Index) भी तैयार किया जा सकता है, जिससे कि सामान्य पैमाने के साथ-साथ किसी क्षेत्र विशेष में होने वाली प्रगति के बारे में भी जानकारी हासिल की जा सके और असंतुलन की स्थिति में सुधार के लिये उचित कदम उठाए जा सकें।
- मर्चेंट डिस्काउंट रेट (MDR)
- समिति की सिफारिशों के अनुसार, मर्चेंट डिस्काउंट रेट को कम किया जाना चाहिये।
क्या है MDR?
- मर्चेंट डिस्काउंट रेट (Merchant Discount Rate- MDR) वह शुल्क है, जो कार्ड से भुगतान स्वीकार करने वाले व्यापारी बैंक को चुकाते हैं।
- मास्टरकार्ड, वीज़ा जैसा पेमेंट गेटवे और पॉइंट ऑफ सेल/कार्ड स्वाइप मशीन ज़ारी करने वाले बैंकों को MDR में मुआवज़ा/छूट प्राप्त होता है।
- इसे बैंक और व्यापारी के बीच एक पूर्व निर्धारित अनुपात में साझा किया जाता है एवं लेन-देन के प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
डिजिटल भुगतान पर MDR का प्रभाव
- बैंक ज़्यादा-से-ज़्यादा पॉइंट ऑफ सेल (PoS)/कार्ड स्वाइप मशीन जारी करना चाहते हैं किंतु छोटे व्यापारियों के लिये पॉइंट ऑफ सेल/कार्ड स्वाइप मशीन रखना ज़्यादा खर्चीला है क्योंकि उन्हें बैंकों को MDR के रूप में एक निश्चित राशि का भुगतान करना पड़ता है, जबकि नकद लेन-देन में ऐसी किसी राशि का भुगतान नहीं करना पड़ता है।
- समिति ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये ‘डिजिटल लेन-देन’ पर वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) को कम करने की सिफारिश की है।
कुछ अन्य सिफारिशें
- ध्यातव्य है कि देश में डिजिटल भुगतान के माहौल में उल्लेखनीय प्रगति हुई है इसलिये वर्तमान समय में मांग या स्वीकार्यता के पक्ष में वातावरण तैयार किया जाना चाहिये।
- समिति के अनुसार, नकदी का इस्तेमाल आसान होने, सार्वभौमिक स्वीकार्यता और उपलब्धता, ग्राहकों पर कम लागत तथा KYC की ज़रूरत न होने की इसमें अहम भूमिका है।
- समिति ने यह पाया कि भुगतान में सबसे बड़ी साझेदारी सरकार की होती है, ऐसे में भुगतान के डिजिटलीकरण में सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए पहल की जानी चाहिये।
- वर्तमान स्थिति को दर्शाते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी भी नकदी का दबदबा है, क्योंकि डिजिटल भुगतान की स्वीकार्यता का माहौल नहीं है और यह अल्पविकसित है।
- समिति ने कहा है कि डिजिटल क्रेडिट और डिजिटल डेबिट के बीच अंतर को कम किया जाना चाहिये।
- समिति ने रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) और नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) जैसी प्रणालियों में भी उचित सुधार लाने की सिफारिशें की है।
नीलेकणि समिति
- जनवरी, 2019 में RBI ने नीलेकणि की अध्यक्षता में इस पाँच सदस्यीय समिति का गठन किया था।
- इस समिति का मुख्य उद्देश्य देश में डिजिटलीकरण के ज़रिये वित्तीय समावेशन तथा और डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के संबंध में परामर्श देना था।
रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट
- भारतीय रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (Real Time Gross Settlement- 'RTGS') एक इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली है जिसमें बैंकों के बीच भुगतान निर्देश दिन भर में (रियल टाइम आधार पर) व्यक्तिगत रूप से और लगातार संसाधित (Processed) होते है।
- यह सुविधा 2 लाख रुपए या उससे ज़्यादा की राशि के लेन-देन हेतु उपलब्ध है। देश के उच्च मूल्य लेन-देन वाले 95% भुगतान इसी प्रणाली के माध्यम से किये जाते हैं।
नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड्स ट्रांसफर
- नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (National Electronic Funds Transfer-NEFT) देश के प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक धन हस्तांतरण प्रणालियों में से एक है। इसकी शुरुआत नवंबर 2005 में की गई थी।
कैशलेस अर्थव्यवस्था: एक अवलोकन