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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रोहिंग्याओं को वापस भेजने को लेकर एनएचआरसी का नोटिस

  • 19 Aug 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग (national human rights commission-NHRC) ने रोहिंग्या मुसलमानों को वापस म्यांमार भेजने के संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय को नोटिस जारी किया है। आयोग ने कहा है कि शरणार्थियों के विदेशी नागरिक मानने को लेकर कोई संदेह नहीं है लेकिन वे इंसान भी हैं।

हालिया घटनाक्रम

  • केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल ही में कहा था कि “गैरकानूनी तौर पर रह रहे 40 हज़ार रोहिंग्या देश से बाहर निकाले जाएंगे क्योंकि देश के अलग-अलग जगहों पर रह रहे हैं रोहिंग्या मुसलमान अब समस्या बनते जा रहे हैं।
  • यूएनएचसीआर के मुताबिक भारत में 14,000 से अधिक रोहिंग्या रह रहे हैं। हालाँकि जो दूसरी सूचनाएँ गृह मंत्रालय के पास मौजूद हैं, उनके मुताबिक लगभग 40 हजार रोहिंग्या अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं।
  • दरअसल, अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाना और उन्हें वापस भेज देना एक निरंतर प्रक्रिया है और गृह मंत्रालय ‘विदेशी अधिनियम, 1946’ की धारा 3(2) के तहत अवैध विदेशी नागरिकों को वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू कर रहा है।

क्या है मामला

  • दरअसल म्यांमार सरकार ने 1982 में राष्ट्रीयता कानून बनाया था जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों का नागरिक दर्जा खत्म कर दिया गया था। जिसके बाद से ही म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिये मजबूर करती आ रही है।
  • हालाँकि इस पूरे विवाद की जड़ करीब 100 साल पुरानी है, लेकिन 2012 में म्यांमार के रखाइन राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगों ने इसमें हवा देने का काम किया। उत्तरी रखाइन में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्ध धर्म के लोगों के बीच हुए इस दंगे में 50 से ज्यादा मुस्लिम और करीब 30 बौद्ध लोग मारे गए थे। इसी क्रम में कई रोहिंग्या मुसलमानों ने भारत में शरण ली थी।

क्या होना चाहिये ?

  • म्यांमार के रखाइन प्रांत में रहने वाला रोहिंग्या समुदाय दुनिया के सबसे ज़्यादा सताए हुए समुदायों में एक है। भारत में दस्तावेजों के अभाव में इनके बच्चों को स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता है। साथ ही, न तो इन्हें पीने का साफ पानी मयस्सर है, न ही कोई इनकी सफाई का ध्यान रखता है।
  • भारत ने 1951 के ‘यूनाइटेड नेशंस रिफ्यूजी कन्वेंशन’ और 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। दरअसल, इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने वाले देश की यह कानूनी बाध्यता हो जाती है कि वह शरणार्थियों की मदद करेगा। इसी की वजह से वर्तमान में भारत के पास कोई राष्ट्रीय शरणार्थी नीति नहीं है, लिहाज़ा शरणार्थियों की वैधानिक स्थिति बहुत अनिश्चित है, जो अंतर्राष्ट्रीय मानकों के विरुद्ध है।
  • फिर भी एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र होने के नाते भारत का यह दायित्व बनता है कि वह संकटग्रस्त लोगों के लिये अपने दरवाज़े खुले रखे। जिस शरणार्थी को शरण देने की अनुमति दे दी गई है, उसे बाकायदा वैधानिक दस्तावेज़ मुहैया कराए जाएँ ताकि वह सामान्य ढंग से जीवन-यापन कर सके। साथ ही, शरणार्थियों को  शिक्षा, रोज़गार और आवास चुनने का हक भी दिया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

  • हालाँकि, देशहित सर्वोपरि होता है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता। शरणार्थियों के कारण संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, कानून व्यवस्था के लिये चुनौती उत्पन्न होती है, साथ ही, राष्ट्रीय शरणार्थी नीति के अभाव में न तो ये पंजीकृत हो पाते हैं और न ही इनका कोई स्थायी पता होता है। ऐसे में यदि कोई शरणार्थी अपराध करने के बाद भाग जाए तो उसको कानून की गिरफ्त में लेना मुश्किल हो जाता है।
  • अतः शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजने से ज़्यादा उचित एक पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था का निर्माण करना है, ताकि शरणार्थियों का प्रबंधन ठीक से हो सके।
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