NHRC द्वारा हीराकुंड विस्थापन मामले में नोटिस | 03 Mar 2021
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने ओडिशा और छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिवों को छह दशक पहले महानदी पर निर्मित हीराकुंड बाँध के कारण विस्थापित लोगों की पीड़ा को कम करने के लिये की गई कार्रवाई के संबंध में नोटिस जारी किया है।
- हीराकुंड बाँध के निर्माण के कारण लगभग 111 गाँव डूब गए और लगभग 22,000 परिवार इससे प्रभावित हुए, जबकि लगभग 19,000 परिवार विस्थापित हो गए थे।
प्रमुख बिंदु:
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हीराकुंड बाँध परियोजना:
- स्थापना:
- इस परियोजना की कल्पना महानदी में विनाशकारी बाढ़ की पुनरावृत्ति देखने के बाद एम. विश्वेश्वरैया द्वारा वर्ष 1937 में की गई। इसकी पहली हाइड्रो पॉवर परियोजना को वर्ष 1956 में अधिकृत किया गया।
- अवस्थिति:
- यह बाँध ओडिशा राज्य के संबलपुर शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर महानदी पर बनाया गया है।
- उद्देश्य:
- सिंचाई: इस परियोजना के माध्यम से संबलपुर, बरगढ़, बोलनगीर और सुबरनपुर ज़िलों में 1,55,635 हेक्टेयर खरीफ और 1,08,385 हेक्टेयर रबी फसलों के लिये सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
- पॉवर हाउस के माध्यम से छोड़े गए पानी से महानदी के डेल्टा में 4,36,000 हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई की जाती है।
- विद्युत निर्माण: इस बाँध से 22 किलोमीटर नीचे दाहिने किनारे पर स्थित बुरला और चिपलिमा में दो पॉवर हाउसों की बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता 347.5 मेगावाट है।
- बाढ़ नियंत्रण: यह परियोजना कटक और पुरी ज़िलों में 9500 वर्ग किलोमीटर डेल्टा क्षेत्र सहित महानदी बेसिन को बाढ़ से सुरक्षा प्रदान करती है।
- स्थापना:
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महानदी नदी:
- महानदी नदी प्रणाली गोदावरी और कृष्णा के बाद प्रायद्वीपीय भारत की तीसरी सबसे बड़ी और ओडिशा राज्य की सबसे बड़ी नदी है।
- नदी का जलग्रहण क्षेत्र छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड और महाराष्ट्र तक फैला हुआ है।
- इसका बेसिन उत्तर में मध्य भारत की पहाड़ियों, दक्षिण और पूर्व में पूर्वी घाट तथा पश्चिम में मैकाल रेंज से घिरा है।
- स्रोत:
- यह छत्तीसगढ़ राज्य में अमरकंटक के दक्षिण में सिहावा के पास बस्तर पहाड़ियों से निकलती है।
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- महानदी की सहायक नदियाँ:
- शिवनाथ नदी
- हसदेव नदी
- बोराई नदी
- मांड नदी
- इब नदी
- जोंक नदी
- तेल नदी
- महानदी विवाद: केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया।
- महानदी की सहायक नदियाँ:
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग:
- यह मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (PHRA), 1993 के तहत 12 अक्तूबर, 1993 को स्थापित एक वैधानिक निकाय है। इसे मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 और मानवाधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा संशोधित किया गया।
- PHRA अधिनियम राज्य स्तर पर एक राज्य मानवाधिकार आयोग के गठन का भी प्रावधान करता है।अंतर्राष्ट्रीय दायित्व: ‘संयुक्त राष्ट्र पेरिस सिद्धांतों ’ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मानदंड स्थापित किये गए हैं जो यह तय करते हैं कि किस राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थान को ‘राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के वैश्विक गठबंधन’ (GANHRI) द्वारा मान्यता प्राप्त हो सकती है। भारत में PHRA अधिनियम, 1993 को पारित करके पेरिस सिद्धांतों (1993) को लागू किया गया।
- मानवाधिकारों का रक्षक: NHRC का निर्माण मानवाधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण के लिये किया गया है।
- PHRA की धारा 2 (1) (d) मानवाधिकारों को जीवन से संबंधित अधिकारों, स्वतंत्रता, समानता और संविधान द्वारा गारंटीकृत व्यक्ति की गरिमा या अंतर्राष्ट्रीय वाचाओं में सन्निहित तथा भारत में न्यायालयों द्वारा लागू किये जाने के रूप में परिभाषित करती है।
- संघटन: NHRC एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसमें एक अध्यक्ष और चार सदस्य होते हैं। कोई व्यक्ति जो भारत का मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो, इसका अध्यक्ष होता है।
- नियुक्ति: जिसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा गठित छः सदस्यीय समिति की सिफारिशों पर की जाती है, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा उपसभापति , संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता और केंद्रीय गृह मंत्री शामिल होते हैं। ।
- कार्यकाल: इसके अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष की अवधि या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक (जो भी पहले हो) होता है।
- राष्ट्रपति कुछ परिस्थितियों में अध्यक्ष या किसी भी सदस्य को पद से हटा सकता है।
- कार्य:
- सिविल कोर्ट की शक्तियाँ:
- इसके पास सिविल कोर्ट की सभी शक्तियाँ होती हैं और इसकी कार्यवाही का स्वरूप न्यायिक होता है।
- इसे मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों की जाँच के उद्देश्य से केंद्र सरकार या राज्य सरकार के किसी अधिकारी या जाँच एजेंसी की सेवाओं का उपयोग करने का अधिकार है।
- यह किसी घटना के एक वर्ष के भीतर उससे संबंधित मामलों को देख सकता है, अर्थात् आयोग को किसी भी ऐसे मामले में पूछताछ का अधिकार नहीं है, जिसमें उस तिथि से एक वर्ष की समाप्ति के बाद मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया हो।
- सिफारिश करने की शक्ति:
- आयोग के कार्य मुख्य रूप से सिफारिशी प्रकृति के होते हैं। इसके पास मानवाधिकारों के उल्लंघन करने वालों को दंडित करने की कोई शक्ति नहीं है, न ही यह पीड़ित को मौद्रिक राहत सहित कोई राहत दे सकता है।
- इसकी सिफारिशें संबंधित सरकार या प्राधिकरण के लिये बाध्यकारी नहीं हैं। लेकिन एक महीने के भीतर इसकी सिफारिशों पर की गई कार्रवाई के बारे में सूचित किया जाना चाहिये।
- सशस्त्र बलों के सदस्यों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में इसकी भूमिका, शक्तियाँ और अधिकार क्षेत्र सीमित है।
- निजी क्षेत्र द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन किये जाने पर इसे कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।
- सिविल कोर्ट की शक्तियाँ: