जैव विविधता और पर्यावरण
राष्ट्रीय नदी कायाकल्प तंत्र को लेकर NGT का सुझाव
- 01 Mar 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने जल शक्ति मंत्रालय को जल प्रदूषण पर लगाम लगाने और देश भर में सभी प्रदूषित नदियों के कायाकल्प के लिये उठाए गए कदमों की प्रभावी निगरानी के लिये एक उपयुक्त राष्ट्रीय नदी कायाकल्प तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) का आकलन
- निष्कर्ष
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के वर्ष 2016-17 के आकलन के अनुसार, देश में प्रदूषित नदी क्षेत्रों की संख्या बढ़कर 351 हो गई है, जो कि दो वर्ष पूर्व 302 थी और इस दौरान गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों (जहाँ जल की गुणवत्ता सबसे खराब है) की संख्या 34 से बढ़कर 45 हो गई है।
- इसमें से तकरीबन 117 क्षेत्र अकेले असम, गुजरात और महाराष्ट्र में हैं।
- CPCB मूल्यांकन का आधार:
- 1990 के दशक के बाद से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) मुख्य रूप से बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) के आधार पर नदियों की गुणवत्ता की निगरानी कर रहा है। BOD की मात्रा जितनी अधिक होती है नदी की गुणवत्ता उतनी ही खराब मानी जाती है।
- ऑक्सीजन की वह मात्रा जो जल में कार्बनिक पदार्थों के जैव रासायनिक अपघटन के लिये आवश्यक होती है, BOD कहलाती है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) 3 मिलीग्राम/लीटर से कम बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) को स्वच्छ एवं स्वस्थ नदी का संकेतक मानता है।
- 1990 के दशक के बाद से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) मुख्य रूप से बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) के आधार पर नदियों की गुणवत्ता की निगरानी कर रहा है। BOD की मात्रा जितनी अधिक होती है नदी की गुणवत्ता उतनी ही खराब मानी जाती है।
- संबंधित प्रयास
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने देश भर में 350 से अधिक प्रदूषित क्षेत्रों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिये एक राष्ट्रीय योजना तैयार कर उसे लागू करने हेतु केंद्रीय निगरानी समिति का गठन किया था क्योंकि इसके कारण जल एवं पर्यावरण की सुरक्षा पर गंभीर खतरा उत्पन्न होता है।
- निष्कर्ष
- नवीनतम दिशा
- अवलोकन
- वर्ष 1974 में लागू किये गए जल अधिनियम के बावजूद नदियों के जल की गुणवत्ता में गिरावट दर्ज की गई है।
- इस अधिनियम का उद्देश्य जल्द की गुणवत्ता में सुधार लाना था।
- वर्ष 1974 में लागू किये गए जल अधिनियम के बावजूद नदियों के जल की गुणवत्ता में गिरावट दर्ज की गई है।
- NRRM की स्थापना:
- NGT द्वारा दिये गए सुझाव के मुताबिक, इस तंत्र को ‘राष्ट्रीय नदी कायाकल्प तंत्र’ (NRRM) कहा जा सकता है। NRRM एक प्रभावी निगरानी रणनीति के रूप में राष्ट्रीय, राज्य या ज़िला स्तर पर पर्यावरण डेटा ग्रिड स्थापित करने पर विचार कर सकता है।
- NRRM के दायरे का विस्तार:
- नदियों के कायाकल्प की प्रक्रिया को केवल 351 क्षेत्रों तक सीमित नहीं किया जाना चाहिये, बल्कि देश भर की सभी छोटी, मध्यम व बड़ी प्रदूषित नदियों के अलावा सूखी नदियों के मामले में भी इसे लागू किया जा सकता है।
- कार्यान्वयन
- सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों द्वारा प्रदूषण की समाप्ति और नदियों के कायाकल्प के लिये कार्य योजनाओं के प्रभावी उपाय किये जाने चाहिये।
- सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को प्रत्येक माह कम-से-कम एक बार व्यक्तिगत रूप से प्रगति की निगरानी करनी होगी।
- मुआवज़े के भुगतान से संबंधित दिशा-निर्देशों के पालन की विफलता की स्थिति में जवाबदेही संबंधित मुख्य सचिवों की होगी।
- अवलोकन
- प्रदूषित नदी क्षेत्रों की वृद्धि का कारण
- तीव्र शहरीकरण और कुशल अपशिष्ट निपटान प्रणालियों का अभाव।
- नदियों के किनारे औद्योगिक शहरों की संख्या में बढ़ोतरी।
- कृषि गतिविधियों आदि में कमी।
- प्रदूषण का प्रभाव
- विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत में जल प्रदूषण की स्वास्थ्य लागत भारत की कुल GDP के तीन प्रतिशत के बराबर है।
- भारत में सभी बीमारियों का 80 प्रतिशत और कुल मौतों के एक-तिहाई हिस्से के लिये जल-जनित बीमारियाँ उत्तरदायी हैं।
- गंगा के प्रदूषित जल के कारण केवल इंसानों को ही नहीं, बल्कि जानवरों को भी खतरा है। प्रदूषण के कारण जिन प्रजातियों पर खतरा उत्पन्न हुआ है, उनमें 140 से अधिक मछली प्रजातियाँ, 90 उभयचर प्रजातियाँ, सरीसृप जैसे कि घड़ियाल, और स्तनधारी जैसे- दक्षिण एशियाई नदी डॉल्फिन आदि शामिल हैं।
- विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत में जल प्रदूषण की स्वास्थ्य लागत भारत की कुल GDP के तीन प्रतिशत के बराबर है।
- संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 21: स्वच्छ पर्यावरण और प्रदूषण मुक्त जल आदि को जीवन के अधिकार के व्यापक दायरे के तहत संरक्षण प्रदान किया गया है।
- अनुच्छेद 51-A (G): वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना व इसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
- जल प्रदूषण से निपटने संबंधी प्रयास
- राष्ट्रीय जल नीति (2012)
- इसका उद्देश्य मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में एकीकृत कानूनों और संस्थानों की एक प्रणाली के निर्माण के लिये रूपरेखा और कार्य योजना पर निर्णय लेना है।
- जल संसाधन मंत्रालय की यह नीति मानव अस्तित्व के साथ-साथ आर्थिक विकास संबंधी गतिविधियों के लिये जल के महत्त्व पर प्रकाश डालती है।
- यह इष्टतम, किफायती, टिकाऊ और न्यायसंगत साधनों के माध्यम से जल संसाधनों के संरक्षण के लिये एक रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
- राष्ट्रीय जल मिशन (2010): यह जल के संरक्षण, कम अपव्यय और समान वितरण के लिये बेहतर जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करता है।
- राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन: यह मिशन गंगा नदी में पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और न्यूनीकरन के लिये उपाय करने हेतु राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर पाँच स्तरीय संरचना की परिकल्पना करता है।
- इसका उद्देश्य गंगा नदी के कायाकल्प के लिये निरंतर पर्याप्त जल प्रवाह सुनिश्चित करना है।
- नमामि गंगे परियोजना: यह गंगा नदी को व्यापक रूप से स्वच्छ एवं संरक्षित करने के प्रयासों को एकीकृत करती है।
- राष्ट्रीय जल नीति (2012)